انجیل مقدس

خدا کا فضل تحفہ

زبُور باب 49

1 ऐ सब उम्मतो, यह सुनो। ऐ जहान के सब बाशिन्दो, कान लगाओ! 2 क्या अदना क्या आ'ला, क्या अमीर क्या फ़कीर। 3 मेरे मुँह से हिकमत की बातें निकलेंगी, और मेरे दिल का ख़याल पुर ख़िरद होगा। 4 मैं तम्सील की तरफ़ कान लगाऊँगा, मैं अपना राज़ सितार पर बयान करूँगा। 5 मैं मुसीबत के दिनों में क्यूँ डरूं, जब मेरा पीछा करने वाली बदी मुझे घेरे हो? 6 जो अपनी दौलत पर भरोसा रखते, और अपने माल की कसरत पर फ़ख़्र करते हैं; 7 उनमें से कोई किसी तरह अपने भाई का फ़िदिया नहीं दे सकता, न ख़ुदा को उसका मु'आवज़ा दे सकता है। 8 क्यूँकि उनकी जान का फ़िदिया बेश क़ीमत है; वह हमेशा तक अदा न होगा। 9 ताकि वह हमेशा तक ज़िन्दा रहे और क़ब्र को न देखे। 10 क्यूँकि वह देखता है, कि दानिशमंद मर जाते हैं, बेवकू़फ़ व हैवान ख़सलत एक साथ हलाक होते हैं, और अपनी दौलत औरों के लिए छोड़ जाते हैं। 11 उनका दिली ख़याल यह है कि उनके घर हमेशा तक, और उनके घर नसल दर नसल बने रहेंगे; वह अपनी ज़मीन अपने ही नाम नामज़द करते हैं। 12 पर इंसान इज़्ज़त की हालत में क़ाईम नहीं रहता वह जानवरों की तरह है, जो फ़ना हो, जाते हैं। 13 उनकी यह चाल उनकी बेवक़ूफ़ी है, तोभी उनके बाद लोग उनकी बातों को पसंद करते हैं। सिलाह 14 वह जैसे पाताल का रेवड़ ठहराए गए हैं; मौत उनकी पासबान होगी; दियानतदार सुबह को उन पर मुसल्लत होगा, और उनका हुस्न पाताल का लुक़्मा होकर बेठिकाना होगा। 15 लेकिन ख़ुदा मेरी जान को पाताल के इख़्तियार से छुड़ा लेगा, क्यूँकि वही मुझे कु़बूल करेगा। सिलाह 16 जब कोई मालदार हो जाए जब उसके घर की हश्मत बढ़े, तो तू ख़ौफ़ न कर। 17 क्यूँकि वह मरकर कुछ साथ न ले जाएगा; उसकी हश्मत उसके साथ न जाएगी। 18 चाहे जीते जी वह अपनी जान को मुबारक कहता रहा हो और जब तू अपना भला करता है तो लोग तेरी तारीफ़ करते हैं 19 तोभी वह अपने बाप दादा की गिरोह से जा मिलेगा, वह रोशनी को हरगिज़ न देखेंगे। 20 आदमी जो 'इज़्ज़त की हालत में रहता है, लेकिन 'अक़्ल नहीं रखता जानवरों की तरह है, जो फ़ना हो जाते हैं।
1 ऐ सब उम्मतो, यह सुनो। ऐ जहान के सब बाशिन्दो, कान लगाओ! .::. 2 क्या अदना क्या आ'ला, क्या अमीर क्या फ़कीर। .::. 3 मेरे मुँह से हिकमत की बातें निकलेंगी, और मेरे दिल का ख़याल पुर ख़िरद होगा। .::. 4 मैं तम्सील की तरफ़ कान लगाऊँगा, मैं अपना राज़ सितार पर बयान करूँगा। .::. 5 मैं मुसीबत के दिनों में क्यूँ डरूं, जब मेरा पीछा करने वाली बदी मुझे घेरे हो? .::. 6 जो अपनी दौलत पर भरोसा रखते, और अपने माल की कसरत पर फ़ख़्र करते हैं; .::. 7 उनमें से कोई किसी तरह अपने भाई का फ़िदिया नहीं दे सकता, न ख़ुदा को उसका मु'आवज़ा दे सकता है। .::. 8 क्यूँकि उनकी जान का फ़िदिया बेश क़ीमत है; वह हमेशा तक अदा न होगा। .::. 9 ताकि वह हमेशा तक ज़िन्दा रहे और क़ब्र को न देखे। .::. 10 क्यूँकि वह देखता है, कि दानिशमंद मर जाते हैं, बेवकू़फ़ व हैवान ख़सलत एक साथ हलाक होते हैं, और अपनी दौलत औरों के लिए छोड़ जाते हैं। .::. 11 उनका दिली ख़याल यह है कि उनके घर हमेशा तक, और उनके घर नसल दर नसल बने रहेंगे; वह अपनी ज़मीन अपने ही नाम नामज़द करते हैं। .::. 12 पर इंसान इज़्ज़त की हालत में क़ाईम नहीं रहता वह जानवरों की तरह है, जो फ़ना हो, जाते हैं। .::. 13 उनकी यह चाल उनकी बेवक़ूफ़ी है, तोभी उनके बाद लोग उनकी बातों को पसंद करते हैं। सिलाह .::. 14 वह जैसे पाताल का रेवड़ ठहराए गए हैं; मौत उनकी पासबान होगी; दियानतदार सुबह को उन पर मुसल्लत होगा, और उनका हुस्न पाताल का लुक़्मा होकर बेठिकाना होगा। .::. 15 लेकिन ख़ुदा मेरी जान को पाताल के इख़्तियार से छुड़ा लेगा, क्यूँकि वही मुझे कु़बूल करेगा। सिलाह .::. 16 जब कोई मालदार हो जाए जब उसके घर की हश्मत बढ़े, तो तू ख़ौफ़ न कर। .::. 17 क्यूँकि वह मरकर कुछ साथ न ले जाएगा; उसकी हश्मत उसके साथ न जाएगी। .::. 18 चाहे जीते जी वह अपनी जान को मुबारक कहता रहा हो और जब तू अपना भला करता है तो लोग तेरी तारीफ़ करते हैं .::. 19 तोभी वह अपने बाप दादा की गिरोह से जा मिलेगा, वह रोशनी को हरगिज़ न देखेंगे। .::. 20 आदमी जो 'इज़्ज़त की हालत में रहता है, लेकिन 'अक़्ल नहीं रखता जानवरों की तरह है, जो फ़ना हो जाते हैं।
  • زبُور باب 1  
  • زبُور باب 2  
  • زبُور باب 3  
  • زبُور باب 4  
  • زبُور باب 5  
  • زبُور باب 6  
  • زبُور باب 7  
  • زبُور باب 8  
  • زبُور باب 9  
  • زبُور باب 10  
  • زبُور باب 11  
  • زبُور باب 12  
  • زبُور باب 13  
  • زبُور باب 14  
  • زبُور باب 15  
  • زبُور باب 16  
  • زبُور باب 17  
  • زبُور باب 18  
  • زبُور باب 19  
  • زبُور باب 20  
  • زبُور باب 21  
  • زبُور باب 22  
  • زبُور باب 23  
  • زبُور باب 24  
  • زبُور باب 25  
  • زبُور باب 26  
  • زبُور باب 27  
  • زبُور باب 28  
  • زبُور باب 29  
  • زبُور باب 30  
  • زبُور باب 31  
  • زبُور باب 32  
  • زبُور باب 33  
  • زبُور باب 34  
  • زبُور باب 35  
  • زبُور باب 36  
  • زبُور باب 37  
  • زبُور باب 38  
  • زبُور باب 39  
  • زبُور باب 40  
  • زبُور باب 41  
  • زبُور باب 42  
  • زبُور باب 43  
  • زبُور باب 44  
  • زبُور باب 45  
  • زبُور باب 46  
  • زبُور باب 47  
  • زبُور باب 48  
  • زبُور باب 49  
  • زبُور باب 50  
  • زبُور باب 51  
  • زبُور باب 52  
  • زبُور باب 53  
  • زبُور باب 54  
  • زبُور باب 55  
  • زبُور باب 56  
  • زبُور باب 57  
  • زبُور باب 58  
  • زبُور باب 59  
  • زبُور باب 60  
  • زبُور باب 61  
  • زبُور باب 62  
  • زبُور باب 63  
  • زبُور باب 64  
  • زبُور باب 65  
  • زبُور باب 66  
  • زبُور باب 67  
  • زبُور باب 68  
  • زبُور باب 69  
  • زبُور باب 70  
  • زبُور باب 71  
  • زبُور باب 72  
  • زبُور باب 73  
  • زبُور باب 74  
  • زبُور باب 75  
  • زبُور باب 76  
  • زبُور باب 77  
  • زبُور باب 78  
  • زبُور باب 79  
  • زبُور باب 80  
  • زبُور باب 81  
  • زبُور باب 82  
  • زبُور باب 83  
  • زبُور باب 84  
  • زبُور باب 85  
  • زبُور باب 86  
  • زبُور باب 87  
  • زبُور باب 88  
  • زبُور باب 89  
  • زبُور باب 90  
  • زبُور باب 91  
  • زبُور باب 92  
  • زبُور باب 93  
  • زبُور باب 94  
  • زبُور باب 95  
  • زبُور باب 96  
  • زبُور باب 97  
  • زبُور باب 98  
  • زبُور باب 99  
  • زبُور باب 100  
  • زبُور باب 101  
  • زبُور باب 102  
  • زبُور باب 103  
  • زبُور باب 104  
  • زبُور باب 105  
  • زبُور باب 106  
  • زبُور باب 107  
  • زبُور باب 108  
  • زبُور باب 109  
  • زبُور باب 110  
  • زبُور باب 111  
  • زبُور باب 112  
  • زبُور باب 113  
  • زبُور باب 114  
  • زبُور باب 115  
  • زبُور باب 116  
  • زبُور باب 117  
  • زبُور باب 118  
  • زبُور باب 119  
  • زبُور باب 120  
  • زبُور باب 121  
  • زبُور باب 122  
  • زبُور باب 123  
  • زبُور باب 124  
  • زبُور باب 125  
  • زبُور باب 126  
  • زبُور باب 127  
  • زبُور باب 128  
  • زبُور باب 129  
  • زبُور باب 130  
  • زبُور باب 131  
  • زبُور باب 132  
  • زبُور باب 133  
  • زبُور باب 134  
  • زبُور باب 135  
  • زبُور باب 136  
  • زبُور باب 137  
  • زبُور باب 138  
  • زبُور باب 139  
  • زبُور باب 140  
  • زبُور باب 141  
  • زبُور باب 142  
  • زبُور باب 143  
  • زبُور باب 144  
  • زبُور باب 145  
  • زبُور باب 146  
  • زبُور باب 147  
  • زبُور باب 148  
  • زبُور باب 149  
  • زبُور باب 150  
×

Alert

×

Urdu Letters Keypad References