1. {येसु का एक फ़ालिज के मरीज़ को ठीक करना } [PS]फिर वो नाव पर चढ़ कर पार गया; और अपने शहर में आया।
2. और देखो, लोग एक फ़ालिज के मारे हुए को जो चारपाई पर पड़ा हुआ था उसके पास लाए; ईसा ने उसका ईमान देखकर मफ़्लूज से कहा [SCJ]“बेटा, इत्मीनान रख। तेरे गुनाह मुआफ़ हुए।”[SCJ.]
3. और देखो कुछ आलिमों ने अपने दिल में कहा, “ये कुफ़्र बकता है”
4. ईसा ने उनके ख़याल मा'लूम करके कहा, [SCJ]“तुम क्यूँ अपने दिल में बुरे ख़याल लाते हो?[SCJ.]
5. [SCJ]आसान क्या है? ये कहना तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए; या ये कहना; उठ और चल फिर।[SCJ.]
6. [SCJ]लेकिन इसलिए कि तुम जान लो कि इबने आदम को ज़मीन पर गुनाह मु'आफ़ करने का इख़्तियार है,”[SCJ.] उसने फ़ालिज का मारे हुए से कहा, [SCJ]“उठ, अपनी चारपाई उठा और अपने घर चला जा।”[SCJ.]
7. वो उठ कर अपने घर चला गया।
8. लोग ये देख कर डर गए; और ख़ुदा की बड़ाई करने लगे; जिसने आदमियों को ऐसा इख़्तियार बख़्शा। [PE]
9. [PS]ईसा ने वहाँ से आगे बढ़कर मत्ती नाम एक शख़्स को महसूल की चौकी पर बैठे देखा; और उस से कहा, [SCJ]“मेरे पीछे हो ले।”[SCJ.] वो उठ कर उसके पीछे हो लिया।
10. जब वो घर में खाना खाने बैठा; तो ऐसा हुआ कि बहुत से महसूल लेने वाले और गुनहगार आकर ईसा और उसके शागिर्दों के साथ खाना खाने बैठे।
11. फ़रीसियों ने ये देख कर उसके शागिर्दों से कहा, “तुम्हारा उस्ताद महसूल लेने वालों और गुनहगारों के साथ क्यूँ खाता है?”
12. उसने ये सुनकर कहा, [SCJ]“तन्दरुस्तों को हकीम की ज़रुरत नहीं बल्कि बीमारों को।[SCJ.]
13. [SCJ]मगर तुम जाकर उसके मा'ने मा'लूम करो:मैं क़ुर्बानी नहीं बल्कि रहम पसन्द करता हूँ। क्यूँकि मैं रास्तबाज़ों को नहीं बल्कि गुनाहगारों को बुलाने आया हूँ।”[SCJ.] [PE]
14. [PS]उस वक़्त यूहन्ना के शागिर्दों ने उसके पास आकर कहा, “क्या वजह है कि हम और फ़रीसी तो अक्सर रोज़ा रखते हैं, और तेरे शागिर्द रोज़ा नहीं रखते?”
15. ईसा ने उस से कहा, [SCJ]“क्या बाराती जब तक दुल्हा उनके साथ है, मातम कर सकते हैं? मगर वो दिन आएँगे; कि दुल्हा उनसे जुदा किया जाएगा; उस वक़्त वो रोज़ा रखेंगे।[SCJ.]
16. [SCJ]कोरे कपड़े का पैवन्द पुरानी पोशाक में कोई नहीं लगाता क्यूँकि वो पैवन्द पोशाक में से कुछ खींच लेता है और वो ज़्यादा फट जाती है।[SCJ.]
17. [SCJ]और नई मय पुरानी मश्कों में नहीं भरते वर्ना मश्कें फट जाती हैं; और मय बह जाती है, और मश्कें बरबाद हो जाती हैं; बल्कि नई मय नई मश्कों में भरते हैं; और वो दोनों बची रहती हैं।”[SCJ.] [PE]
18. [PS]वो उन से ये बातें कह ही रहा था, कि देखो एक सरदार ने आकर उसे सज्दा किया और कहा, “मेरी बेटी अभी मरी है लेकिन तू चलकर अपना हाथ उस पर रख तो वो ज़िन्दा हो जाएगी।”
19. ईसा उठ कर अपने शागिर्दों समेत उस के पीछे हो लिया।
20. और देखो; एक 'औरत ने जिसके बारह बरस से ख़ून जारी था; उसके पीछे आकर उस की पोशाक का किनारा छुआ।
21. क्यूँकि वो अपने जी में कहती थी; अगर सिर्फ़ उसकी पोशाक ही छू लूँगी “तो अच्छी हो जाऊँगी।”
22. ईसा ने फिर कर उसे देखा और कहा, [SCJ]“बेटी, इत्मीनान रख! तेरे ईमान ने तुझे अच्छा कर दिया।”[SCJ.] पस वो 'औरत उसी घड़ी अच्छी हो गई।
23. जब ईसा सरदार के घर में आया और बाँसुरी बजाने वालों को और भीड़ को शोर मचाते देखा।
24. तो कहा, [SCJ]“हट जाओ! क्यूँकि लड़की मरी नहीं बल्कि सोती है।”[SCJ.] वो उस पर हँसने लगे।
25. मगर जब भीड़ निकाल दी गई तो उस ने अन्दर जाकर उसका हाथ पकड़ा और लड़की उठी।
26. और इस बात की शोहरत उस तमाम इलाक़े में फैल गई। [PE]
27. [PS]जब ईसा वहाँ से आगे बढ़ा तो दो अन्धे उसके पीछे ये पुकारते हुए चले “ऐ इब्न — ए — दाऊद, हम पर रहम कर।”
28. जब वो घर में पहुँचा तो वो अन्धे उसके पास आए और 'ईसा ने उनसे कहा [SCJ]“क्या तुम को यक़ीन है कि मैं ये कर सकता हूँ?”[SCJ.] उन्हों ने उस से कहा “हाँ ख़ुदावन्द।”
29. फिर उस ने उन की आँखें छू कर कहा, [SCJ]“तुम्हारे यक़ीन के मुताबिक़ तुम्हारे लिए हो।”[SCJ.]
30. और उन की आँखें खुल गईं और ईसा ने उनको ताकीद करके कहा, [SCJ]“ख़बरदार, कोई इस बात को न जाने!”[SCJ.]
31. मगर उन्होंने निकल कर उस तमाम इलाक़े में उसकी शोहरत फैला दी। [PE]
32. [PS]जब वो बाहर जा रहे थे, तो देखो लोग एक गूँगे को जिस में बदरूह थी उसके पास लाए।
33. और जब वो बदरूह निकाल दी गई तो गूँगा बोलने लगा; और लोगों ने ता'अज्जुब करके कहा, “इस्राईल में ऐसा कभी नहीं देखा गया।”
34. मगर फ़रीसियों ने कहा, “ये तो बदरूहों के सरदार की मदद से बदरूहों को निकालता है।” [PE]
35. [PS]ईसा सब शहरों और गाँव में फिरता रहा, और उनके इबादतख़ानों में ता'लीम देता और बादशाही की ख़ुशख़बरी का एलान करता और — और हर तरह की बीमारी और हर तरह की कमज़ोरी दूर करता रहा।
36. और जब उसने भीड़ को देखा तो उस को लोगों पर तरस आया; क्यूँकि वो उन भेड़ों की तरह थे जिनका चरवाहा न हो बुरी हालत में पड़े थे।
37. उस ने अपने शागिर्दों से कहा, [SCJ]“फ़सल बहुत है, लेकिन मज़दूर थोड़े हैं।[SCJ.]
38. [SCJ]पस फ़सल के मालिक से मिन्नत करो कि वो अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूर भेज दे।”[SCJ.] [PE]