1. {येसु का एक कोढ़ी को ठीक करना } [PS]जब वो उस पहाड़ से उतरा तो बहुत सी भीड़ उस के पीछे हो ली।
2. और देखो:एक कौढ़ी ने पास आकर उसे सज्दा किया और कहा, “ऐ ख़ुदावन्द! अगर तू चाहे तो मुझे पाक साफ़ कर सकता है।”
3. उसने हाथ बढ़ा कर उसे छुआ और कहा, [SCJ]“मैं चाहता हूँ, तू पाक — साफ़ हो जा।”[SCJ.] वह फ़ौरन कौढ़ से पाक — साफ़ हो गया।
4. ईसा ने उस से कहा, [SCJ]“ख़बरदार! किसी से न कहना बल्कि जाकर अपने आप को काहिन को दिखा; और जो नज़्र मूसा ने मुक़र्रर की है उसे गुज़रान; ताकि उन के लिए गवाही हो।”[SCJ.] [PE]
5. [PS]जब वो कफ़रनहूम में दाख़िल हुआ तो एक सूबेदार उसके पास आया; और उसकी मिन्नत करके कहा।
6. “ऐ ख़ुदावन्द, मेरा ख़ादिम फ़ालिज का मारा घर में पड़ा है; और बहुत ही तकलीफ़ में है।”
7. उस ने उस से कहा, [SCJ]“मैं आ कर उसे शिफ़ा दूँगा।”[SCJ.]
8. सूबेदार ने जवाब में कहा “ऐ ख़ुदावन्द, मैं इस लायक़ नहीं कि तू मेरी छत के नीचे आए; बल्कि सिर्फ़ ज़बान से कह दे तो मेरा ख़ादिम शिफ़ा पाएगा।
9. क्यूँकि मैं भी दूसरे के इख़्तियार में हूँ; और सिपाही मेरे मातहत हैं; जब एक से कहता हूँ, जा! तो वह जाता है और दूसरे से ‘आ!’ तो वह आता है। और अपने नौकर से‘ ये कर’ तो वह करता है।” [PE]
10. [PS]ईसा ने ये सुनकर त'अज्जुब किया और पीछे आने वालों से कहा, [SCJ]“मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मैं ने इस्राईल में भी ऐसा ईमान नहीं पाया।[SCJ.]
11. [SCJ]और मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत सारे पूरब और पश्चिम से आ कर अब्रहाम, इज़्हाक़ और याक़ूब के साथ आसमान की बादशाही की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे।[SCJ.]
12. [SCJ]मगर बादशाही के बेटे बाहर अंधेरे में डाले जाँएगे; जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।”[SCJ.]
13. और ईसा ने सूबेदार से कहा, [SCJ]“जा! जैसा तू ने यक़ीन किया तेरे लिए वैसा ही हो।”[SCJ.] और उसी घड़ी ख़ादिम ने शिफ़ा पाई। [PE]
14. [PS]और ईसा ने पतरस के घर में आकर उसकी सास को बुख़ार में पड़ी देखा।
15. उस ने उसका हाथ छुआ और बुख़ार उस पर से उतर गया; और वो उठ खड़ी हुई और उसकी ख़िदमत करने लगी।
16. जब शाम हुई तो उसके पास बहुत से लोगों को लाए; जिन में बदरूहें थी उसने बदरूहों को ज़बान ही से कह कर निकाल दिया; और सब बीमारों को अच्छा कर दिया।
17. ताकि जो यसायाह नबी के ज़रिए कहा गया था, वो पूरा हो: “उसने आप हमारी कमज़ोरियाँ ले लीं और बीमारियाँ उठा लीं।” [PE]
18. [PS]जब ईसा ने अपने चारों तरफ़ बहुत सी भीड़ देखी तो पार चलने का हुक्म दिया।
19. और एक आलिम ने पास आकर उस से कहा “ऐ उस्ताद, जहाँ कहीं भी तू जाएगा मैं तेरे पीछे चलूँगा।”
20. ईसा ने उस से कहा, [SCJ]“लोमड़ियों के भठ होते हैं और हवा के परिन्दों के घोंसले, मगर इबने आदम के लिए सर रखने की भी जगह नहीं।”[SCJ.]
21. एक और शागिर्द ने उस से कहा, “ऐ ख़ुदावन्द, मुझे इजाज़त दे कि पहले जाकर अपने बाप को दफ़्न करूँ।”
22. ईसा ने उससे कहा, [SCJ]“तू मेरे पीछे चल और मुर्दों को अपने मुर्दे दफ़्न करने दे।”[SCJ.] [PE]
23. [PS]जब वो नाव पर चढ़ा तो उस के शागिर्द उसके साथ हो लिए।
24. और देखो झील में ऐसा बड़ा तूफ़ान आया कि नाव लहरों से छिप गई, मगर वो सोता रहा।
25. उन्होंने पास आकर उसे जगाया और कहा “ऐ ख़ुदावन्द, हमें बचा, हम हलाक हुए जाते हैं”।
26. उसने उनसे कहा, [SCJ]“ऐ कम ईमान वालो! डरते क्यूँ हो?”[SCJ.] तब उसने उठकर हवा और पानी को डाँटा और बड़ा अम्न हो गया।
27. और लोग ता'अज्जुब करके कहने लगे “ये किस तरह का आदमी है कि हवा और पानी सब इसका हुक्म मानते हैं।” [PE]
28. [PS]जब वो उस पार गदरीनियों के मुल्क में पहुँचा तो दो आदमी जिन में बदरूहें थी; क़ब्रों से निकल कर उससे मिले: वो ऐसे तंग मिज़ाज थे कि कोई उस रास्ते से गुज़र नहीं सकता था।
29. और देखो उन्होंने चिल्लाकर कहा “ऐ ख़ुदा के बेटे हमें तुझ से क्या काम? क्या तू इसलिए यहाँ आया है कि वक़्त से पहले हमें ऐज़ाब में डाले?”
30. उनसे कुछ दूर बहुत से सूअरों का ग़ोल चर रहा था।
31. पस बदरूहों ने उसकी मिन्नत करके कहा “अगर तू हम को निकालता है तो हमें सूअरों के ग़ोल में भेज दे।”
32. उसने उनसे कहा [SCJ]“जाओ।”[SCJ.] वो निकल कर सुअरों के अन्दर चली गईं; और देखो; सारा ग़ोल किनारे पर से झपट कर झील में जा पड़ा और पानी में डूब मरा।
33. और चराने वाले भागे और शहर में जाकर सब माजरा और उनके हालात जिन में बदरूहें थी बयान किया।
34. और देखो सारा शहर ईसा से मिलने को निकला और उसे देख कर मिन्नत की, कि हमारी सरहदों से बाहर चला जा। [PE]