1. {दुसरो पर ईल्ज़ाम मत लगाओ } [PS] [SCJ]बुराई न करो, कि तुम्हारी भी बुराई न की जाए।[SCJ.]
2. [SCJ]क्यूँकि जिस तरह तुम बुराई करते हो उसी तरह तुम्हारी भी बुराई की जाएगी और जिस पैमाने से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा।[SCJ.] [PE]
3. [PS] [SCJ]तू क्यूँ अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है और अपनी आँख के शहतीर पर ग़ौर नहीं करता?[SCJ.]
4. [SCJ]और जब तेरी ही आँख में शहतीर है तो तू अपने भाई से क्यूँ कर कह सकता है, 'ला, तेरी आँख में से तिनका निकाल दूँ?[SCJ.]
5. [SCJ]ऐ रियाकार, पहले अपनी आँख में से तो शहतीर निकाल, फिर अपने भाई की आँख में से तिनके को अच्छी तरह देख कर निकाल सकता है।[SCJ.] [PE]
6.
7. [PS] [SCJ]पाक चीज़ कुत्तों को ना दो, और अपने मोती सुअरों के आगे न डालो, ऐसा न हो कि वो उनको पाँव के तले रौंदें और पलट कर तुम को फाड़ें।[SCJ.] [PE][PS] [SCJ]माँगो तो तुम को दिया जाएगा। ढूँडो तो पाओगे; दरवाज़ा खटखटाओ तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा।[SCJ.]
8. [SCJ]क्यूँकि जो कोई माँगता है उसे मिलता है; और जो ढूँडता है वो पाता है और जो खटखटाता है उसके लिए खोला जाएगा।[SCJ.] [PE]
9. [PS] [SCJ]तुम में ऐसा कौन सा आदमी है, कि अगर उसका बेटा उससे रोटी माँगे तो वो उसे पत्थर दे?[SCJ.]
10. [SCJ]या अगर मछली माँगे तो उसे साँप दे![SCJ.]
11. [SCJ]पस जबकि तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें देना जानते हो, तो तुम्हारा बाप जो आसमान पर है; अपने माँगने वालों को अच्छी चीज़ें क्यूँ न देगा।[SCJ.]
12. [SCJ]पस जो कुछ तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें वही तुम भी उनके साथ करो; क्यूँकि तौरेत और नबियों की ता'लीम यही है।[SCJ.] [PE]
13. [PS] [SCJ]तंग दरवाज़े से दाख़िल हो, क्यूँकि वो दरवाज़ा चौड़ा है, और वो रास्ता चौड़ा है जो हलाकत को पहुँचाता है; और उससे दाख़िल होने वाले बहुत हैं।[SCJ.]
14. [SCJ]क्यूँकि वो दरवाज़ा तंग है और वो रास्ता सुकड़ा है जो ज़िन्दगी को पहुँचाता है और उस के पाने वाले थोड़े हैं।[SCJ.] [PE]
15. [PS] [SCJ]झूठे नबियों से ख़बरदार रहो! जो तुम्हारे पास भेड़ों के भेस में आते हैं; मगर अन्दर से फाड़ने वाले भेड़िये की तरह हैं।[SCJ.]
16. [SCJ]उनके फलों से तुम उनको पहचान लोगे; क्या झाड़ियों से अंगूर या ऊँट कटारों से अंजीर तोड़ते हैं?[SCJ.]
17. [SCJ]इसी तरह हर एक अच्छा दरख़्त अच्छा फल लाता है और बुरा दरख़्त बुरा फल लाता है।[SCJ.]
18. [SCJ]अच्छा दरख़्त बुरा फल नहीं ला सकता, न बुरा दरख़्त अच्छा फल ला सकता है।[SCJ.]
19. [SCJ]जो दरख़्त अच्छा फल नहीं लाता वो काट कर आग में डाला जाता है।[SCJ.]
20. [SCJ]पस उनके फलों से तुम उनको पहचान लोगे।[SCJ.] [PE]
21. [PS] [SCJ]“जो मुझ से ऐ ख़ुदावन्द! ‘ऐ ख़ुदावन्द!’ कहते हैं उन में से हर एक आस्मान की बादशाही में दाख़िल न होगा। मगर वही जो मेरे आस्मानी बाप की मर्ज़ी पर चलता है।[SCJ.]
22. [SCJ]उस दिन बहुत से मुझसे कहेंगे, ‘ऐ ख़ुदावन्द! ख़ुदावन्द! क्या हम ने तेरे नाम से नबुव्वत नहीं की, और तेरे नाम से बदरूहों को नहीं निकाला और तेरे नाम से बहुत से मोजिज़े नहीं दिखाए?’[SCJ.]
23. [SCJ]उस दिन मैं उन से साफ़ कह दूँगा, मेरी तुम से कभी वाक़फ़ियत न थी, ऐ बदकारो! मेरे सामने से चले जाओ।”[SCJ.] [PE]
24. [PS] [SCJ]“पस जो कोई मेरी यह बातें सुनता और उन पर अमल करता है वह उस अक़्लमन्द आदमी की तरह ठहरेगा जिस ने चट्टान पर अपना घर बनाया।[SCJ.]
25. [SCJ]और मेंह बरसा और पानी चढ़ा और आन्धियाँ चलीं और उस घर पर टक्करें लगीं; लेकिन वो न गिरा क्यूँकि उस की बुनियाद चट्टान पर डाली गई थी।[SCJ.]
26. [SCJ]और जो कोई मेरी यह बातें सुनता है और उन पर अमल नहीं करता वह उस बेवक़ूफ़ आदमी की तरह ठहरेगा जिस ने अपना घर रेत पर बनाया।[SCJ.]
27. [SCJ]और मेंह बरसा और पानी चढ़ा और आन्धियाँ चलीं, और उस घर को सदमा पहुँचा और वो गिर गया, और बिल्कुल बरबाद हो गया।” [SCJ.] [PE]
28. [PS]जब ईसा ने यह बातें ख़त्म कीं तो ऐसा हुआ कि भीड़ उस की तालीम से हैरान हुई।
29. क्यूँकि वह उन के आलिमों की तरह नहीं बल्कि साहिब — ए — इख़्तियार की तरह उनको ता'लीम देता था। [PE]