انجیل مقدس

خدا کا فضل تحفہ
1. {येसु को मारने की चाल } [PS]जब ईसा ये सब बातें ख़त्म कर चुका, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने शागिर्दों से कहा।
2. [SCJ]“तुम जानते हो कि दो दिन के बाद ईद — ए — फ़सह[SCJ.][* ईद — ए — फ़सह ख़ुदा ने इस्राईल ओ जिस दिन मिस्र की ग़ुलामी से निकाला उसी दिन को ख़ुदा ने फ़सह का ईद ठहराया (छुटकारे आ दिन) ][SCJ]होगी। और इब्न — ए — आदम मस्लूब होने को पकड़वाया जाएगा।”[SCJ.]
3. उस वक़्त सरदार काहिन और क़ौम के बुज़ुर्ग काइफ़ा नाम सरदार काहिन के दिवान खाने में जमा हुए।
4. और मशवरा किया कि ईसा को धोखे से पकड़ कर क़त्ल करें।
5. मगर कहते थे, “ईद में नहीं, ऐसा न हो कि लोगों में बलवा हो जाए।” [PE]
6. [PS]और जब ईसा बैत अन्नियाह में शमौन जो पहले कौढ़ी था के घर में था।
7. तो एक 'औरत संग — मरमर के इत्रदान में क़ीमती इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वो खाना खाने बैठा तो उस के सिर पर डाला।
8. शागिर्द ये देख कर ख़फ़ा हुए और कहने लगे, “ये किस लिए बरबाद किया गया?
9. ये तो बड़ी क़ीमत में बिक कर ग़रीबों को दिया जा सकता था।”
10. ईसा' ने ये जान कर उन से कहा, [SCJ]“इस 'औरत को क्यूँ दुखी करते हो? इस ने तो मेरे साथ भलाई की है।[SCJ.]
11. [SCJ]क्यूँकि ग़रीब ग़ुरबे तो हमेशा तुम्हारे पास हैं लेकिन मैं तुम्हारे पास हमेशा न रहूँगा।[SCJ.]
12. [SCJ]और इस ने तो मेरे दफ़्न की तैयारी के लिए इत्र मेरे बदन पर डाला।[SCJ.]
13. [SCJ]मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तमाम दुनिया में जहाँ कहीं इस ख़ुशख़बरी का एलान किया जाएगा, ये भी जो इस ने किया; इस की यादगारी में कहा जाएगा।”[SCJ.] [PE]
14. [PS]उस वक़्त उन बारह में से एक ने जिसका नाम यहूदाह इस्करियोती था; सरदार काहिनों के पास जा कर कहा,
15. “अगर मैं उसे तुम्हारे हवाले कर दूँ तो मुझे क्या दोगे? उन्होंने उसे तीस रुपऐ तौल कर दे दिया।”
16. और वो उस वक़्त से उसके पकड़वाने का मौक़ा ढूँडने लगा। [PE]
17. [PS]ईद — 'ए — फ़ितर के पहले दिन शागिर्दों ने ईसा के पास आकर कहा, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिए फ़सह के खाने की तैयारी करें।”
18. उस ने कहा, [SCJ]“शहर में फ़लाँ शख़्स के पास जा कर उससे कहना ‘उस्ताद फ़रमाता है’ कि मेरा वक़्त नज़दीक है मैं अपने शागिर्दों के साथ तेरे यहाँ ईद'ए फ़सह करूँगा।”[SCJ.]
19. और जैसा ईसा ने शागिर्दों को हुक्म दिया था, उन्होंने वैसा ही किया और फ़सह तैयार किया। [PE]
20. [PS]जब शाम हुई तो वो बारह शागिर्दों के साथ खाना खाने बैठा था।
21. जब वो खा रहा था, तो उसने कहा, [SCJ]“मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।”[SCJ.]
22. वो बहुत ही ग़मगीन हुए और हर एक उससे कहने लगे “ख़ुदावन्द, क्या मैं हूँ?”
23. उस ने जवाब में कहा, [SCJ]“जिस ने मेरे साथ रक़ाबी में हाथ डाला है वही मुझे पकड़वाएगा।[SCJ.]
24. [SCJ]इबने आदम तो जैसा उसके हक़ में लिखा है जाता ही है लेकिन उस आदमी पर अफ़सोस जिसके वसीले से इबने आदम पकड़वाया जाता है अगर वो आदमी पैदा न होता तो उसके लिए अच्छा होता।”[SCJ.]
25. उसके पकड़वाने वाले यहूदाह ने जवाब में कहा “ऐ रब्बी क्या मैं हूँ?” उसने उससे कहा [SCJ]“तूने ख़ुद कह दिया।”[SCJ.] [PE]
26. [PS]जब वो खा रहे थे तो ईसा' ने रोटी ली और — और बर्क़त देकर तोड़ी और शागिर्दों को देकर कहा, [SCJ]“लो, खाओ, ये मेरा बदन है।”[SCJ.]
27. फिर प्याला लेकर शुक्र किया और उनको देकर कहा [SCJ]“तुम सब इस में से पियो।[SCJ.]
28. [SCJ]क्यूँकि ये मेरा वो अहद का ख़ून है जो बहुतों के गुनाहों की मु'आफ़ी के लिए बहाया जाता है।[SCJ.]
29. [SCJ]मैं तुम से कहता हूँ, कि अंगूर का ये शीरा फिर कभी न पियूँगा, उस दिन तक कि तुम्हारे साथ अपने बाप की बादशाही में नया न पियूँ।”[SCJ.]
30. फिर वो हम्द करके बाहर ज़ैतून के पहाड़ पर गए। [PE]
31. [PS]उस वक़्त ईसा' ने उनसे कहा [SCJ]“तुम सब इसी रात मेरी वजह से ठोकर खाओगे क्यूँकि लिखा है; मैं चरवाहे को मारूँगा और गल्ले की भेंड़े बिखर जाएँगी।[SCJ.]
32. [SCJ]लेकिन मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।”[SCJ.]
33. पतरस ने जवाब में उससे कहा, “चाहे सब तेरी वजह से ठोकर खाएँ, लेकिन में कभी ठोकर न खाऊँगा।”
34. ईसा' ने उससे कहा, [SCJ]“मैं तुझसे सच कहता हूँ, इसी रात मुर्ग़ के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।”[SCJ.]
35. पतरस ने उससे कहा, “अगर तेरे साथ मुझे मरना भी पड़े। तोभी तेरा इन्कार हरगिज़ न करूँगा।” और सब शागिर्दो ने भी इसी तरह कहा। [PE]
36. [PS]उस वक़्त ईसा' उनके साथ गतसिमनी नाम एक जगह में आया और अपने शागिर्दों से कहा। [SCJ]“यहीं बैठे रहना जब तक कि मैं वहाँ जाकर दुआ करूँ।”[SCJ.]
37. और पतरस और ज़ब्दी के दोनों बेटों को साथ लेकर ग़मगीन और बेक़रार होने लगा।
38. उस वक़्त उसने उनसे कहा, [SCJ]“मेरी जान निहायत ग़मगीन है यहाँ तक कि मरने की नौबत पहुँच गई है, तुम यहाँ ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।”[SCJ.]
39. फिर ज़रा आगे बढ़ा और मुँह के बल गिर कर यूँ दुआ की, [SCJ]“ऐ मेरे बाप, अगर हो सके तो ये दुःख का प्याला मुझ से टल जाए, तोभी न जैसा मैं चाहता हूँ; बल्कि जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।”[SCJ.]
40. फिर शागिर्दों के पास आकर उनको सोते पाया और पतरस से कहा, [SCJ]“क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके?[SCJ.]
41. [SCJ]जागते और दुआ करते रहो ताकि आज़्माइश में न पड़ो, रूह तो मुस्त'इद है मगर जिस्म कमज़ोर है।”[SCJ.]
42. फिर दोबारा उसने जाकर यूँ दुआ की [SCJ]“ऐ मेरे बाप अगर ये मेरे पिए बग़ैर नहीं टल सकता तो तेरी मर्ज़ी पूरी हो।”[SCJ.]
43. और आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्यूँकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं।
44. और उनको छोड़ कर फिर चला गया, और फिर वही बात कह कर तीसरी बार दुआ की।
45. तब शागिर्दों के पास आकर उसने कहा [SCJ]“अब सोते रहो, और आराम करो, देखो वक़्त आ पहुँचा है, और इबने आदम गुनाहगारों के हवाले किया जाता है।[SCJ.]
46. [SCJ]उठो चलें, देखो, मेरा पकड़वाने वाला नज़दीक आ पहुँचा है।”[SCJ.] [PE]
47. [PS]वो ये कह ही रहा था, कि यहूदाह जो उन बारह में से एक था, आया, और उसके साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए सरदार काहिनों और क़ौम के बुज़ुर्गों की तरफ़ से आ पहुँची।
48. और उसके पकड़वाने वाले ने उनको ये निशान दिया था, जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ लेना।
49. और फ़ौरन उसने ईसा के पास आ कर कहा, “ऐ रब्बी सलाम!” और उसके बोसे लिए।
50. ईसा' ने उससे कहा, [SCJ]“मियाँ! जिस काम को आया है वो कर ले”।[SCJ.] इस पर उन्होंने पास आकर ईसा' पर हाथ डाला और उसे पकड़ लिया।
51. और देखो, ईसा के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ा कर अपनी तलवार खींची और सरदार काहिन के नौकर पर चला कर उसका कान उड़ा दिया।
52. ईसा' ने उससे कहा, [SCJ]“अपनी तलवार को मियान में कर क्यूँकि जो तलवार खींचते हैं वो सब तलवार से हलाक किए जाएँगे।[SCJ.]
53. [SCJ]क्या तू नहीं समझता कि मैं अपने बाप से मिन्नत कर सकता हूँ, और वो फ़रिश्तों के बारह पलटन से ज़्यादा मेरे पास अभी मौजूद कर देगा?[SCJ.]
54. [SCJ]मगर वो लिखे हुए का यूँ ही होना ज़रूर है क्यूँ कर पूरे होंगे?”[SCJ.]
55. उसी वक़्त ईसा' ने भीड़ से कहा, [SCJ]“क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू की तरह पकड़ने निकले हो? मैं हर रोज़ हैकल में बैठकर ता'लीम देता था, और तुमने मुझे नहीं पकड़ा।[SCJ.]
56. [SCJ]मगर ये सब कुछ इसलिए हुआ कि नबियों की नबुव्वत पूरी हों।”[SCJ.] इस पर सब शागिर्द उसे छोड़ कर भाग गए। [PE]
57. [PS]और ईसा के पकड़ने वाले उसको काइफ़ा नाम सरदार काहिन के पास ले गए, जहाँ आलिम और बुज़ुर्ग जमा हुए थे।
58. और पतरस दूर — दूर उसके पीछे — पीछे सरदार काहिन के दिवानख़ाने तक गया, और अन्दर जाकर प्यादों के साथ नतीजा देखने को बैठ गया।
59. सरदार काहिन और सब सद्रे — ए 'अदालत वाले ईसा को मार डालने के लिए उसके ख़िलाफ़ झूठी गवाही ढूँडने लगे।
60. मगर न पाई, गरचे बहुत से झूठे गवाह आए, लेकिन आख़िरकार दो गवाहों ने आकर कहा,
61. “इस ने कहा है, कि मैं ख़ुदा के मक़दिस को ढा सकता और तीन दिन में उसे बना सकता हूँ।” [PE]
62. [PS]और सरदार काहिन ने खड़े होकर उससे कहा, “तू जवाब नहीं देता? ये तेरे ख़िलाफ़ क्या गवाही देते हैं?”
63. मगर ईसा ख़ामोश ही रहा, सरदार काहिन ने उससे कहा, “मैं तुझे ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम देता हूँ, कि अगर तू ख़ुदा का बेटा मसीह है तो हम से कह दे?”
64. ईसा' ने उससे कहा, [SCJ]“तू ने ख़ुद कह दिया बल्कि मैं तुम से कहता हूँ, कि इसके बाद इबने आदम को क़ादिर — ए मुतल्लिक़ की दहनी तरफ़ बैठे और आसमान के बादलों पर आते देखोगे।”[SCJ.]
65. इस पर सरदार काहिन ने ये कह कर अपने कपड़े फाड़े “उसने कुफ़्र बका है अब हम को गवाहों की क्या ज़रूरत रही? देखो, तुम ने अभी ये कुफ़्र सुना है।
66. तुम्हारी क्या राय है? उन्होंने जवाब में कहा, वो क़त्ल के लायक़ है।”
67. इस पर उन्होंने उसके मुँह पर थूका और उसके मुक्के मारे और कुछ ने तमाचे मार कर कहा।
68. “ऐ मसीह, हमें नुबुव्वत से बता कि तुझे किस ने मारा।” [PE]
69. [PS]पतरस बाहर सहन में बैठा था, कि एक लौंडी ने उसके पास आकर कहा, “तू भी ईसा गलीली के साथ था।”
70. उसने सबके सामने ये कह कर इन्कार किया “मैं नहीं जानता तू क्या कहती है।”
71. और जब वो डेवढ़ी में चला गया तो दूसरी ने उसे देखा, और जो वहाँ थे, उनसे कहा, “ये भी ईसा नासरी के साथ था।”
72. उसने क़सम खा कर फिर इन्कार किया “मैं इस आदमी को नहीं जानता।”
73. थोड़ी देर के बाद जो वहाँ खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर कहा, “बेशक तू भी उन में से है, क्यूँकि तेरी बोली से भी ज़ाहिर होता है।”
74. इस पर वो ला'नत करने और क़सम खाने लगा “मैं इस आदमी को नहीं जानता!” और फ़ौरन मुर्ग़ ने बाँग दी।
75. पतरस को ईसा' की वो बात याद आई जो उसने कही थी: [SCJ]“मुर्ग़ के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।”[SCJ.] और वो बाहर जाकर ज़ार ज़ार रोया। [PE]
Total 28 ابواب, Selected باب 26 / 28
1 {येसु को मारने की चाल } जब ईसा ये सब बातें ख़त्म कर चुका, तो ऐसा हुआ कि उसने अपने शागिर्दों से कहा। 2 “तुम जानते हो कि दो दिन के बाद ईद — ए — फ़सह[* ईद — ए — फ़सह ख़ुदा ने इस्राईल ओ जिस दिन मिस्र की ग़ुलामी से निकाला उसी दिन को ख़ुदा ने फ़सह का ईद ठहराया (छुटकारे आ दिन) ]होगी। और इब्न — ए — आदम मस्लूब होने को पकड़वाया जाएगा।” 3 उस वक़्त सरदार काहिन और क़ौम के बुज़ुर्ग काइफ़ा नाम सरदार काहिन के दिवान खाने में जमा हुए। 4 और मशवरा किया कि ईसा को धोखे से पकड़ कर क़त्ल करें। 5 मगर कहते थे, “ईद में नहीं, ऐसा न हो कि लोगों में बलवा हो जाए।” 6 और जब ईसा बैत अन्नियाह में शमौन जो पहले कौढ़ी था के घर में था। 7 तो एक 'औरत संग — मरमर के इत्रदान में क़ीमती इत्र लेकर उसके पास आई, और जब वो खाना खाने बैठा तो उस के सिर पर डाला। 8 शागिर्द ये देख कर ख़फ़ा हुए और कहने लगे, “ये किस लिए बरबाद किया गया? 9 ये तो बड़ी क़ीमत में बिक कर ग़रीबों को दिया जा सकता था।” 10 ईसा' ने ये जान कर उन से कहा, “इस 'औरत को क्यूँ दुखी करते हो? इस ने तो मेरे साथ भलाई की है। 11 क्यूँकि ग़रीब ग़ुरबे तो हमेशा तुम्हारे पास हैं लेकिन मैं तुम्हारे पास हमेशा न रहूँगा। 12 और इस ने तो मेरे दफ़्न की तैयारी के लिए इत्र मेरे बदन पर डाला। 13 मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तमाम दुनिया में जहाँ कहीं इस ख़ुशख़बरी का एलान किया जाएगा, ये भी जो इस ने किया; इस की यादगारी में कहा जाएगा।” 14 उस वक़्त उन बारह में से एक ने जिसका नाम यहूदाह इस्करियोती था; सरदार काहिनों के पास जा कर कहा, 15 “अगर मैं उसे तुम्हारे हवाले कर दूँ तो मुझे क्या दोगे? उन्होंने उसे तीस रुपऐ तौल कर दे दिया।” 16 और वो उस वक़्त से उसके पकड़वाने का मौक़ा ढूँडने लगा। 17 ईद — 'ए — फ़ितर के पहले दिन शागिर्दों ने ईसा के पास आकर कहा, “तू कहाँ चाहता है कि हम तेरे लिए फ़सह के खाने की तैयारी करें।” 18 उस ने कहा, “शहर में फ़लाँ शख़्स के पास जा कर उससे कहना ‘उस्ताद फ़रमाता है’ कि मेरा वक़्त नज़दीक है मैं अपने शागिर्दों के साथ तेरे यहाँ ईद'ए फ़सह करूँगा।” 19 और जैसा ईसा ने शागिर्दों को हुक्म दिया था, उन्होंने वैसा ही किया और फ़सह तैयार किया। 20 जब शाम हुई तो वो बारह शागिर्दों के साथ खाना खाने बैठा था। 21 जब वो खा रहा था, तो उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।” 22 वो बहुत ही ग़मगीन हुए और हर एक उससे कहने लगे “ख़ुदावन्द, क्या मैं हूँ?” 23 उस ने जवाब में कहा, “जिस ने मेरे साथ रक़ाबी में हाथ डाला है वही मुझे पकड़वाएगा। 24 इबने आदम तो जैसा उसके हक़ में लिखा है जाता ही है लेकिन उस आदमी पर अफ़सोस जिसके वसीले से इबने आदम पकड़वाया जाता है अगर वो आदमी पैदा न होता तो उसके लिए अच्छा होता।” 25 उसके पकड़वाने वाले यहूदाह ने जवाब में कहा “ऐ रब्बी क्या मैं हूँ?” उसने उससे कहा “तूने ख़ुद कह दिया।” 26 जब वो खा रहे थे तो ईसा' ने रोटी ली और — और बर्क़त देकर तोड़ी और शागिर्दों को देकर कहा, “लो, खाओ, ये मेरा बदन है।” 27 फिर प्याला लेकर शुक्र किया और उनको देकर कहा “तुम सब इस में से पियो। 28 क्यूँकि ये मेरा वो अहद का ख़ून है जो बहुतों के गुनाहों की मु'आफ़ी के लिए बहाया जाता है। 29 मैं तुम से कहता हूँ, कि अंगूर का ये शीरा फिर कभी न पियूँगा, उस दिन तक कि तुम्हारे साथ अपने बाप की बादशाही में नया न पियूँ।” 30 फिर वो हम्द करके बाहर ज़ैतून के पहाड़ पर गए। 31 उस वक़्त ईसा' ने उनसे कहा “तुम सब इसी रात मेरी वजह से ठोकर खाओगे क्यूँकि लिखा है; मैं चरवाहे को मारूँगा और गल्ले की भेंड़े बिखर जाएँगी। 32 लेकिन मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।” 33 पतरस ने जवाब में उससे कहा, “चाहे सब तेरी वजह से ठोकर खाएँ, लेकिन में कभी ठोकर न खाऊँगा।” 34 ईसा' ने उससे कहा, “मैं तुझसे सच कहता हूँ, इसी रात मुर्ग़ के बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” 35 पतरस ने उससे कहा, “अगर तेरे साथ मुझे मरना भी पड़े। तोभी तेरा इन्कार हरगिज़ न करूँगा।” और सब शागिर्दो ने भी इसी तरह कहा। 36 उस वक़्त ईसा' उनके साथ गतसिमनी नाम एक जगह में आया और अपने शागिर्दों से कहा। “यहीं बैठे रहना जब तक कि मैं वहाँ जाकर दुआ करूँ।” 37 और पतरस और ज़ब्दी के दोनों बेटों को साथ लेकर ग़मगीन और बेक़रार होने लगा। 38 उस वक़्त उसने उनसे कहा, “मेरी जान निहायत ग़मगीन है यहाँ तक कि मरने की नौबत पहुँच गई है, तुम यहाँ ठहरो, और मेरे साथ जागते रहो।” 39 फिर ज़रा आगे बढ़ा और मुँह के बल गिर कर यूँ दुआ की, “ऐ मेरे बाप, अगर हो सके तो ये दुःख का प्याला मुझ से टल जाए, तोभी न जैसा मैं चाहता हूँ; बल्कि जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” 40 फिर शागिर्दों के पास आकर उनको सोते पाया और पतरस से कहा, “क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके? 41 जागते और दुआ करते रहो ताकि आज़्माइश में न पड़ो, रूह तो मुस्त'इद है मगर जिस्म कमज़ोर है।” 42 फिर दोबारा उसने जाकर यूँ दुआ की “ऐ मेरे बाप अगर ये मेरे पिए बग़ैर नहीं टल सकता तो तेरी मर्ज़ी पूरी हो।” 43 और आकर उन्हें फिर सोते पाया, क्यूँकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं। 44 और उनको छोड़ कर फिर चला गया, और फिर वही बात कह कर तीसरी बार दुआ की। 45 तब शागिर्दों के पास आकर उसने कहा “अब सोते रहो, और आराम करो, देखो वक़्त आ पहुँचा है, और इबने आदम गुनाहगारों के हवाले किया जाता है। 46 उठो चलें, देखो, मेरा पकड़वाने वाला नज़दीक आ पहुँचा है।” 47 वो ये कह ही रहा था, कि यहूदाह जो उन बारह में से एक था, आया, और उसके साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए सरदार काहिनों और क़ौम के बुज़ुर्गों की तरफ़ से आ पहुँची। 48 और उसके पकड़वाने वाले ने उनको ये निशान दिया था, जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ लेना। 49 और फ़ौरन उसने ईसा के पास आ कर कहा, “ऐ रब्बी सलाम!” और उसके बोसे लिए। 50 ईसा' ने उससे कहा, “मियाँ! जिस काम को आया है वो कर ले”। इस पर उन्होंने पास आकर ईसा' पर हाथ डाला और उसे पकड़ लिया। 51 और देखो, ईसा के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ा कर अपनी तलवार खींची और सरदार काहिन के नौकर पर चला कर उसका कान उड़ा दिया। 52 ईसा' ने उससे कहा, “अपनी तलवार को मियान में कर क्यूँकि जो तलवार खींचते हैं वो सब तलवार से हलाक किए जाएँगे। 53 क्या तू नहीं समझता कि मैं अपने बाप से मिन्नत कर सकता हूँ, और वो फ़रिश्तों के बारह पलटन से ज़्यादा मेरे पास अभी मौजूद कर देगा? 54 मगर वो लिखे हुए का यूँ ही होना ज़रूर है क्यूँ कर पूरे होंगे?” 55 उसी वक़्त ईसा' ने भीड़ से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू की तरह पकड़ने निकले हो? मैं हर रोज़ हैकल में बैठकर ता'लीम देता था, और तुमने मुझे नहीं पकड़ा। 56 मगर ये सब कुछ इसलिए हुआ कि नबियों की नबुव्वत पूरी हों।” इस पर सब शागिर्द उसे छोड़ कर भाग गए। 57 और ईसा के पकड़ने वाले उसको काइफ़ा नाम सरदार काहिन के पास ले गए, जहाँ आलिम और बुज़ुर्ग जमा हुए थे। 58 और पतरस दूर — दूर उसके पीछे — पीछे सरदार काहिन के दिवानख़ाने तक गया, और अन्दर जाकर प्यादों के साथ नतीजा देखने को बैठ गया। 59 सरदार काहिन और सब सद्रे — ए 'अदालत वाले ईसा को मार डालने के लिए उसके ख़िलाफ़ झूठी गवाही ढूँडने लगे। 60 मगर न पाई, गरचे बहुत से झूठे गवाह आए, लेकिन आख़िरकार दो गवाहों ने आकर कहा, 61 “इस ने कहा है, कि मैं ख़ुदा के मक़दिस को ढा सकता और तीन दिन में उसे बना सकता हूँ।” 62 और सरदार काहिन ने खड़े होकर उससे कहा, “तू जवाब नहीं देता? ये तेरे ख़िलाफ़ क्या गवाही देते हैं?” 63 मगर ईसा ख़ामोश ही रहा, सरदार काहिन ने उससे कहा, “मैं तुझे ज़िन्दा ख़ुदा की क़सम देता हूँ, कि अगर तू ख़ुदा का बेटा मसीह है तो हम से कह दे?” 64 ईसा' ने उससे कहा, “तू ने ख़ुद कह दिया बल्कि मैं तुम से कहता हूँ, कि इसके बाद इबने आदम को क़ादिर — ए मुतल्लिक़ की दहनी तरफ़ बैठे और आसमान के बादलों पर आते देखोगे।” 65 इस पर सरदार काहिन ने ये कह कर अपने कपड़े फाड़े “उसने कुफ़्र बका है अब हम को गवाहों की क्या ज़रूरत रही? देखो, तुम ने अभी ये कुफ़्र सुना है। 66 तुम्हारी क्या राय है? उन्होंने जवाब में कहा, वो क़त्ल के लायक़ है।” 67 इस पर उन्होंने उसके मुँह पर थूका और उसके मुक्के मारे और कुछ ने तमाचे मार कर कहा। 68 “ऐ मसीह, हमें नुबुव्वत से बता कि तुझे किस ने मारा।” 69 पतरस बाहर सहन में बैठा था, कि एक लौंडी ने उसके पास आकर कहा, “तू भी ईसा गलीली के साथ था।” 70 उसने सबके सामने ये कह कर इन्कार किया “मैं नहीं जानता तू क्या कहती है।” 71 और जब वो डेवढ़ी में चला गया तो दूसरी ने उसे देखा, और जो वहाँ थे, उनसे कहा, “ये भी ईसा नासरी के साथ था।” 72 उसने क़सम खा कर फिर इन्कार किया “मैं इस आदमी को नहीं जानता।” 73 थोड़ी देर के बाद जो वहाँ खड़े थे, उन्होंने पतरस के पास आकर कहा, “बेशक तू भी उन में से है, क्यूँकि तेरी बोली से भी ज़ाहिर होता है।” 74 इस पर वो ला'नत करने और क़सम खाने लगा “मैं इस आदमी को नहीं जानता!” और फ़ौरन मुर्ग़ ने बाँग दी। 75 पतरस को ईसा' की वो बात याद आई जो उसने कही थी: “मुर्ग़ के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” और वो बाहर जाकर ज़ार ज़ार रोया।
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