انجیل مقدس

خدا کا فضل تحفہ
1. {किसी बगीचे के मालियों के बारे में एक तमसील } [PS] [SCJ]“क्यूँकि आस्मान की बादशाही उस घर के मालिक की तरह है, जो सवेरे निकला ताकि अपने बाग़ में मज़दूर लगाए।[SCJ.]
2. [SCJ]उसने मज़दूरों से एक दीनार रोज़ तय करके उन्हें अपने बाग़ में भेज दिया।[SCJ.]
3. [SCJ]फिर पहर दिन चढ़ने के क़रीब निकल कर उसने औरों को बाज़ार में बेकार खड़े देखा,[SCJ.]
4. [SCJ]और उन से कहा, 'तुम भी बाग़ में चले जाओ, जो वाजिब है तुम को दूँगा। पस वो चले गए।[SCJ.]
5. [SCJ]फिर उसने दोपहर और तीसरे पहर के क़रीब निकल कर वैसा ही किया।[SCJ.]
6. [SCJ]और कोई एक घंटा दिन रहे फिर निकल कर औरों को खड़े पाया, और उनसे कहा, 'तुम क्यूँ यहाँ तमाम दिन बेकार खड़े हो?'[SCJ.]
7. [SCJ]उन्होंने उससे कहा, 'इस लिए कि किसी ने हम को मज़दूरी पर नहीं लगाया। उस ने उनसे कहा, 'तुम भी बाग़ में चले जाओ।”[SCJ.] [PE]
8. [PS] [SCJ]“जब शाम हुई तो बाग़ के मालिक ने अपने कारिन्दे से कहा, 'मज़दूरों को बुलाओ और पिछलों से लेकर पहलों तक उनकी मज़दूरी दे दो।[SCJ.]
9. [SCJ]जब वो आए जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उनको एक — एक दीनार मिला।[SCJ.]
10. [SCJ]जब पहले मज़दूर आए तो उन्होंने ये समझा कि हम को ज़्यादा मिलेगा; और उनको भी एक ही दीनार मिला।[SCJ.]
11. [SCJ]जब मिला तो घर के मालिक से ये कह कर शिकायत करने लगे,[SCJ.]
12. [SCJ]'इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया है और तूने इनको हमारे बराबर कर दिया जिन्होंने दिन भर बोझ उठाया और सख़्त धूप सही?'[SCJ.]
13. [SCJ]उसने जवाब देकर उन में से एक से कहा, 'मियाँ, मैं तेरे साथ बे इन्साफ़ी नहीं करता; क्या तेरा मुझ से एक दीनार नहीं ठहरा था?[SCJ.]
14. [SCJ]जो तेरा है उठा ले और चला जा मेरी मर्ज़ी ये है कि जितना तुझे देता हूँ इस पिछले को भी उतना ही दूँ।[SCJ.]
15. [SCJ]क्या मुझे ठीक नहीं कि अपने माल से जो चाहूँ सो करूँ? तू इसलिए कि मैं नेक हूँ बुरी नज़र से देखता है।[SCJ.]
16. [SCJ]इसी तरह आख़िर पहले हो जाएँगे और पहले आख़िर।”[SCJ.] [PE]
17. [PS]और येरूशलेम जाते हुए ईसा बारह शागिर्दों को अलग ले गया; और रास्ते में उनसे कहा।
18. [SCJ]“देखो; हम येरूशलेम को जाते हैं; और इबने आदम सरदार काहिनों और फ़क़ीहों के हवाले किया जाएगा; और वो उसके क़त्ल का हुक्म देंगे।[SCJ.]
19. [SCJ]और उसे ग़ैर क़ौमों के हवाले करेंगे ताकि वो उसे ठठ्ठों में उड़ाएँ, और कोड़े मारें और मस्लूब करें और वो तीसरे दिन ज़िन्दा किया जाएगा।”[SCJ.] [PE]
20. [PS]उस वक़्त ज़ब्दी की बीवी ने अपने बेटों के साथ उसके सामने आकर सिज्दा किया और उससे कुछ अर्ज़ करने लगी।
21. उसने उससे कहा, [SCJ]“तू क्या चाहती है?”[SCJ.] उस ने उससे कहा, “फ़रमा कि ये मेरे दोनों बेटे तेरी बादशाही में तेरी दहनी और बाईं तरफ़ बैठें।”
22. ईसा ने जवाब में कहा, [SCJ]“तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो? जो प्याला मैं पीने को हूँ क्या तुम पी सकते हो?”[SCJ.] उन्होंने उससे कहा, “पी सकते हैं।”
23. उसने उनसे कहा [SCJ]“मेरा प्याला तो पियोगे, लेकिन अपने दहने बाएँ किसी को बिठाना मेरा काम नहीं; मगर जिनके लिए मेरे बाप की तरफ़ से तैयार किया गया उन्हीं के लिए है।”[SCJ.] [PE]
24. [PS]जब शागिर्दों ने ये सुना तो उन दोनों भाइयों से ख़फ़ा हुए।
25. मगर ईसा ने उन्हें पास बुलाकर कहा [SCJ]“तुम जानते हो कि ग़ैर क़ौमों के सरदार उन पर हुक्म चलाते और अमीर उन पर इख़्तियार जताते हैं।[SCJ.]
26. [SCJ]तुम में ऐसा न होगा; बल्कि जो तुम में बड़ा होना चाहे वो तुम्हारा ख़ादिम बने।[SCJ.]
27. [SCJ]और जो तुम में अव्वल होना चाहे वो तुम्हारा ग़ुलाम बने।[SCJ.]
28. [SCJ]चुनाँचे; इबने आदम इसलिए नहीं आया कि ख़िदमत ले; बल्कि इसलिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान बहुतों के बदले फ़िदया में दें।”[SCJ.] [PE]
29. [PS]जब वो यरीहू से निकल रहे थे; एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली।
30. और देखो; दो अँधों ने जो रास्ते के किनारे बैठे थे ये सुनकर कि 'ईसा जा रहा है चिल्ला कर कहा, “ऐ ख़ुदावन्द इब्न — ए — दाऊद हम पर रहम कर।”
31. लोगों ने उन्हें डाँटा कि चुप रहें; लेकिन वो और भी चिल्ला कर कहने लगे, “ऐ ख़ुदावन्द इबने दाऊद हम पर रहम कर।”
32. ईसा ने खड़े होकर उन्हें बुलाया और कहा, [SCJ]“तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूँ?”[SCJ.]
33. उन्होंने उससे कहा “ऐ ख़ुदावन्द हमारी आँखें खुल जाएँ।”
34. ईसा को तरस आया। और उसने उन की आँखों को छुआ और वो फ़ौरन देखने लगे और उसके पीछे हो लिए। [PE]
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1 {किसी बगीचे के मालियों के बारे में एक तमसील } “क्यूँकि आस्मान की बादशाही उस घर के मालिक की तरह है, जो सवेरे निकला ताकि अपने बाग़ में मज़दूर लगाए। 2 उसने मज़दूरों से एक दीनार रोज़ तय करके उन्हें अपने बाग़ में भेज दिया। 3 फिर पहर दिन चढ़ने के क़रीब निकल कर उसने औरों को बाज़ार में बेकार खड़े देखा, 4 और उन से कहा, 'तुम भी बाग़ में चले जाओ, जो वाजिब है तुम को दूँगा। पस वो चले गए। 5 फिर उसने दोपहर और तीसरे पहर के क़रीब निकल कर वैसा ही किया। 6 और कोई एक घंटा दिन रहे फिर निकल कर औरों को खड़े पाया, और उनसे कहा, 'तुम क्यूँ यहाँ तमाम दिन बेकार खड़े हो?' 7 उन्होंने उससे कहा, 'इस लिए कि किसी ने हम को मज़दूरी पर नहीं लगाया। उस ने उनसे कहा, 'तुम भी बाग़ में चले जाओ।” 8 “जब शाम हुई तो बाग़ के मालिक ने अपने कारिन्दे से कहा, 'मज़दूरों को बुलाओ और पिछलों से लेकर पहलों तक उनकी मज़दूरी दे दो। 9 जब वो आए जो घंटा भर दिन रहे लगाए गए थे, तो उनको एक — एक दीनार मिला। 10 जब पहले मज़दूर आए तो उन्होंने ये समझा कि हम को ज़्यादा मिलेगा; और उनको भी एक ही दीनार मिला। 11 जब मिला तो घर के मालिक से ये कह कर शिकायत करने लगे, 12 'इन पिछलों ने एक ही घंटा काम किया है और तूने इनको हमारे बराबर कर दिया जिन्होंने दिन भर बोझ उठाया और सख़्त धूप सही?' 13 उसने जवाब देकर उन में से एक से कहा, 'मियाँ, मैं तेरे साथ बे इन्साफ़ी नहीं करता; क्या तेरा मुझ से एक दीनार नहीं ठहरा था? 14 जो तेरा है उठा ले और चला जा मेरी मर्ज़ी ये है कि जितना तुझे देता हूँ इस पिछले को भी उतना ही दूँ। 15 क्या मुझे ठीक नहीं कि अपने माल से जो चाहूँ सो करूँ? तू इसलिए कि मैं नेक हूँ बुरी नज़र से देखता है। 16 इसी तरह आख़िर पहले हो जाएँगे और पहले आख़िर।” 17 और येरूशलेम जाते हुए ईसा बारह शागिर्दों को अलग ले गया; और रास्ते में उनसे कहा। 18 “देखो; हम येरूशलेम को जाते हैं; और इबने आदम सरदार काहिनों और फ़क़ीहों के हवाले किया जाएगा; और वो उसके क़त्ल का हुक्म देंगे। 19 और उसे ग़ैर क़ौमों के हवाले करेंगे ताकि वो उसे ठठ्ठों में उड़ाएँ, और कोड़े मारें और मस्लूब करें और वो तीसरे दिन ज़िन्दा किया जाएगा।” 20 उस वक़्त ज़ब्दी की बीवी ने अपने बेटों के साथ उसके सामने आकर सिज्दा किया और उससे कुछ अर्ज़ करने लगी। 21 उसने उससे कहा, “तू क्या चाहती है?” उस ने उससे कहा, “फ़रमा कि ये मेरे दोनों बेटे तेरी बादशाही में तेरी दहनी और बाईं तरफ़ बैठें।” 22 ईसा ने जवाब में कहा, “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो? जो प्याला मैं पीने को हूँ क्या तुम पी सकते हो?” उन्होंने उससे कहा, “पी सकते हैं।” 23 उसने उनसे कहा “मेरा प्याला तो पियोगे, लेकिन अपने दहने बाएँ किसी को बिठाना मेरा काम नहीं; मगर जिनके लिए मेरे बाप की तरफ़ से तैयार किया गया उन्हीं के लिए है।” 24 जब शागिर्दों ने ये सुना तो उन दोनों भाइयों से ख़फ़ा हुए। 25 मगर ईसा ने उन्हें पास बुलाकर कहा “तुम जानते हो कि ग़ैर क़ौमों के सरदार उन पर हुक्म चलाते और अमीर उन पर इख़्तियार जताते हैं। 26 तुम में ऐसा न होगा; बल्कि जो तुम में बड़ा होना चाहे वो तुम्हारा ख़ादिम बने। 27 और जो तुम में अव्वल होना चाहे वो तुम्हारा ग़ुलाम बने। 28 चुनाँचे; इबने आदम इसलिए नहीं आया कि ख़िदमत ले; बल्कि इसलिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान बहुतों के बदले फ़िदया में दें।” 29 जब वो यरीहू से निकल रहे थे; एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। 30 और देखो; दो अँधों ने जो रास्ते के किनारे बैठे थे ये सुनकर कि 'ईसा जा रहा है चिल्ला कर कहा, “ऐ ख़ुदावन्द इब्न — ए — दाऊद हम पर रहम कर।” 31 लोगों ने उन्हें डाँटा कि चुप रहें; लेकिन वो और भी चिल्ला कर कहने लगे, “ऐ ख़ुदावन्द इबने दाऊद हम पर रहम कर।” 32 ईसा ने खड़े होकर उन्हें बुलाया और कहा, “तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए करूँ?” 33 उन्होंने उससे कहा “ऐ ख़ुदावन्द हमारी आँखें खुल जाएँ।” 34 ईसा को तरस आया। और उसने उन की आँखों को छुआ और वो फ़ौरन देखने लगे और उसके पीछे हो लिए।
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