1. {येसु का बेथेन में मसह होना } [PS]दो दिन के बाद फ़सह और 'ईद — ए — फ़ितर होने वाली थी और सरदार काहिन और फ़क़ीह मौक़ा ढूँड रहे थे कि उसे क्यूँकर धोखे से पकड़ कर क़त्ल करें।
2. क्यूँकि कहते थे ई'द में नहीं “ऐसा न हो कि लोगों में बलवा हो जाए” [PE]
3. [PS]जब वो बैत अन्नियाह में शमौन जो पहले कौढ़ी था उसके घर में खाना खाने बैठा तो एक औरत जटामासी का बेशक़ीमती इत्र संगे मरमर के इत्र दान में लाई और इत्र दान तोड़ कर इत्र को उसके सिर पर डाला।
4. मगर कुछ अपने दिल में ख़फ़ा हो कर कहने लगे “ये इत्र किस लिए ज़ाया किया गया।
5. क्यूँकि ये इत्र तक़रीबन तीन सौ दिन की मज़दूरी से ज़्यादा की क़ीमत में बिक कर ग़रीबों को दिया जा सकता था” और वो उसे मलामत करने लगे।
6. ईसा ने कहा [SCJ]“उसे छोड़ दो उसे क्यूँ दिक़ करते हो उसने मेरे साथ भलाई की है।[SCJ.]
7. [SCJ]क्यूँकि ग़रीब और ग़ुरबा तो हमेशा तुम्हारे पास हैं जब चाहो उनके साथ नेकी कर सकते हो; लेकिन मैं तुम्हारे पास हमेशा न रहूँगा।[SCJ.]
8. [SCJ]जो कुछ वो कर सकी उसने किया उसने दफ़्न के लिए मेरे बदन पर पहले ही से इत्र मला।[SCJ.]
9. [SCJ]मैं तुम से सच कहता हूँ कि, तमाम दुनिया में जहाँ कहीं इन्जील की मनादी की जाएगी, ये भी जो इस ने किया उस की यादगारी में बयान किया जाएगा।”[SCJ.] [PE]
10. [PS]फिर यहूदाह इस्करियोती जो उन बारह में से था, सरदार काहिन के पास चला गया ताकि उसे उनके हवाले कर दे।
11. वो ये सुन कर ख़ुश हुए और उसको रुपऐ देने का इक़रार किया और वो मौक़ा ढूँडने लगा कि किस तरह क़ाबू पाकर उसे पकड़वा दे। [PE]
12. [PS]ई'द 'ए फ़ितर के पहले दिन या'नी जिस रोज़ फ़सह को ज़बह किया करते थे “उसके शागिर्दों ने उससे कहा? तू कहाँ चाहता है कि हम जाकर तेरे लिए फ़सह खाने की तैयारी करें।”
13. उसने अपने शागिर्दो में से दो को भेजा और उनसे कहा [SCJ]“शहर में जाओ एक शख़्स पानी का घड़ा लिए हुए तुम्हें मिलेगा, उसके पीछे हो लेना।[SCJ.]
14. [SCJ]और जहाँ वो दाख़िल हो उस घर के मालिक से कहना ‘उस्ताद कहता है? मेरा मेहमानख़ाना जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह खाउँ कहाँ है।’[SCJ.]
15. [SCJ]वो आप तुम को एक बड़ा मेहमानख़ाना आरास्ता और तैयार दिखाएगा वहीं हमारे लिए तैयारी करना।”[SCJ.]
16. पस शागिर्द चले गए और शहर में आकर जैसा ईसा ने उन से कहा था वैसा ही पाया और फ़सह को तैयार किया।
17. जब शाम हुई तो वो उन बारह के साथ आया।
18. और जब वो बैठे खा रहे थे तो ईसा ने कहा [SCJ]“मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुम में से एक जो मेरे साथ खाता है मुझे पकड़वाएगा।”[SCJ.]
19. वो दुखी होकर और एक एक करके उससे कहने लगे, “क्या मैं हूँ?”
20. उसने उनसे कहा, [SCJ]“वो बारह में से एक है जो मेरे साथ थाल में हाथ डालता है।[SCJ.]
21. [SCJ]क्यूँकि इब्न — ए आदम तो जैसा उसके हक़ में लिखा है जाता ही है लेकिन उस आदमी पर अफ़सोस जिसके वसीले से इब्न — ए आदम पकड़वाया जाता है, अगर वो आदमी पैदा ही न होता तो उसके लिए अच्छा था।”[SCJ.] [PE]
22. [PS]और वो खा ही रहे थे कि उसने रोटी ली और बर्क़त देकर तोड़ी और उनको दी और कहा [SCJ]“लो ये मेरा बदन है।”[SCJ.]
23. फिर उसने प्याला लेकर शुक्र किया और उनको दिया और उन सभों ने उस में से पिया।
24. उसने उनसे कहा [SCJ]“ये मेरा वो अहद का ख़ून है जो बहुतेरों के लिए बहाया जाता है।[SCJ.]
25. [SCJ]मैं तुम से सच कहता हूँ कि अंगूर का शीरा फिर कभी न पिऊँगा; उस दिन तक कि ख़ुदा की बादशाही में नया न पिऊँ।”[SCJ.]
26. फिर हम्द गा कर बाहर ज़ैतून के पहाड़ पर गए। [PE]
27. [PS]और ईसा ने उनसे कहा [SCJ]“तुम सब ठोकर खाओगे क्यूँकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा और भेड़ें इधर उधर हो जाएँगी।’[SCJ.]
28. [SCJ]मगर मैं अपने जी उठने के बाद तुम से पहले गलील को जाऊँगा।”[SCJ.]
29. पतरस ने उससे कहा, “चाहे सब ठोकर खाएँ लेकिन मैं न खाउँगा।”
30. ईसा ने उससे कहा, [SCJ]“मैं तुझ से सच कहता हूँ। कि तू आज इसी रात मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले तीन बार मेरा इन्कार करेगा।”[SCJ.]
31. लेकिन उसने बहुत ज़ोर देकर कहा, “अगर तेरे साथ मुझे मरना भी पड़े तोभी तेरा इन्कार हरगिज़ न करूँगा।” इसी तरह और सब ने भी कहा। [PE]
32. [PS]फिर वो एक जगह आए जिसका नाम गतसिमनी था और उसने अपने शागिर्दों से कहा, [SCJ]“यहाँ बैठे रहो जब तक मैं दुआ करूँ।”[SCJ.]
33. और पतरस और या'क़ूब और यूहन्ना को अपने साथ लेकर निहायत हैरान और बेक़रार होने लगा।
34. और उसने कहा [SCJ]“मेरी जान निहायत ग़मगीन है यहाँ तक कि मरने की नौबत पहुँच गई है तुम यहाँ ठहरो और जागते रहो।”[SCJ.]
35. और वो थोड़ा आगे बढ़ा और ज़मीन पर गिर कर दुआ करने लगा, कि अगर हो सके तो ये वक़्त मुझ पर से टल जाए।
36. और कहा [SCJ]“ऐ अब्बा ऐ बाप तुझ से सब कुछ हो सकता है इस प्याले को मेरे पास से हटा ले तोभी जो मैं चाहता हूँ वो नहीं बल्कि जो तू चाहता है वही हो।”[SCJ.]
37. फिर वो आया और उन्हें सोते पाकर पतरस से कहा [SCJ]“ऐ शमौन तू सोता है? क्या तू एक घड़ी भी न जाग सका।[SCJ.]
38. [SCJ]जागो और दुआ करो, ताकि आज़माइश में न पड़ो रूह तो मुसतैद है मगर जिस्म कमज़ोर है।”[SCJ.]
39. वो फिर चला गया और वही बात कह कर दुआ की।
40. और फिर आकर उन्हें सोते पाया क्यूँकि उनकी आँखें नींद से भरी थीं और वो न जानते थे कि उसे क्या जवाब दें।
41. फिर तीसरी बार आकर उनसे कहा [SCJ]“अब सोते रहो और आराम करो बस वक़्त आ पहुँचा है देखो; इब्न — ए आदम गुनाहगारों के हाथ में हवाले किया जाता है।[SCJ.]
42. [SCJ]उठो चलो देखो मेरा पकड़वाने वाला नज़दीक आ पहुँचा है।”[SCJ.] [PE]
43. [PS]वो ये कह ही रहा था कि फ़ौरन यहूदाह जो उन बारह में से था और उसके साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए सरदार काहिनों और फ़क़ीहों की तरफ़ से आ पहुँची।
44. और उसके पकड़वाने वाले ने उन्हें ये निशान दिया था जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ कर हिफ़ाज़त से ले जाना।
45. वो आकर फ़ौरन उसके पास गया और कहा, “ऐ रब्बी!” और उसके बोसे लिए।
46. उन्होंने उस पर हाथ डाल कर उसे पकड़ लिया।
47. उन में से जो पास खड़े थे एक ने तलवार खींचकर सरदार काहिन के नौकर पर चलाई और उसका कान उड़ा दिया।
48. ईसा ने उनसे कहा [SCJ]“क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू की तरह पकड़ने निकले हो?[SCJ.]
49. [SCJ]मैं हर रोज़ तुम्हारे पास हैकल में ता'लीम देता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा लेकिन ये इसलिए हुआ कि लिखा हुआ पूरा हों।”[SCJ.]
50. इस पर सब शगिर्द उसे छोड़कर भाग गए।
51. मगर एक जवान अपने नंगे बदन पर महीन चादर ओढ़े हुए उसके पीछे हो लिया, उसे लोगों ने पकड़ा।
52. मगर वो चादर छोड़ कर नंगा भाग गया। [PE]
53. [PS]फिर वो ईसा को सरदार काहिन के पास ले गए; और अब सरदार काहिन और बुज़ुर्ग और फ़क़ीह उसके यहाँ जमा हुए।
54. पतरस फ़ासले पर उसके पीछे पीछे सरदार काहिन के दिवानख़ाने के अन्दर तक गया और सिपाहियों के साथ बैठ कर आग तापने लगा।
55. और सरदार काहिन सब सद्रे — अदालत वाले ईसा को मार डालने के लिए उसके ख़िलाफ़ गवाही ढूँडने लगे मगर न पाई।
56. क्यूँकि बहुतेरों ने उस पर झूठी गवाहियाँ तो दीं लेकिन उनकी गवाहियाँ सहीह न थीं।
57. फिर कुछ ने उठकर उस पर ये झूठी गवाही दी।
58. “हम ने उसे ये कहते सुना है मैं इस मक़दिस को जो हाथ से बना है ढाऊँगा और तीन दिन में दूसरा बनाऊँगा जो हाथ से न बना हो।”
59. लेकिन इस पर भी उसकी गवाही सही न निकली।
60. “फिर सरदार काहिन ने बीच में खड़े हो कर ईसा से पूछा तू कुछ जवाब नहीं देता? ये तेरे ख़िलाफ़ क्या गवाही देते हैं।”
61. “मगर वो ख़ामोश ही रहा और कुछ जवाब न दिया? सरदार काहिन ने उससे फिर सवाल किया और कहा क्या तू उस यूसुफ़ का बेटा मसीह है।”
62. ईसा ने कहा, [SCJ]“हाँ मैं हूँ। और तुम इब्न — ए आदम को क़ादिर ए मुतल्लिक़ की दहनी तरफ़ बैठे और आसमान के बादलों के साथ आते देखोगे।”[SCJ.]
63. सरदार काहिन ने अपने कपड़े फाड़ कर कहा “अब हमें गवाहों की क्या ज़रूरत रही।
64. तुम ने ये कुफ़्र सुना तुम्हारी क्या राय है? उन सब ने फ़तवा दिया कि वो क़त्ल के लायक़ है।”
65. तब कुछ उस पर थूकने और उसका मुँह ढाँपने और उसके मुक्के मारने और उससे कहने लगे “नबुव्वत की बातें सुना! और सिपाहियों ने उसे तमाचे मार मार कर अपने क़ब्ज़े में लिया।” [PE]
66. [PS]जब पतरस नीचे सहन में था तो सरदार काहिन की लौंडियों में से एक वहाँ आई।
67. और पतरस को आग तापते देख कर उस पर नज़र की और कहने लगी “तू भी उस नासरी ईसा के साथ था।”
68. उसने इन्कार किया और कहा “मैं तो न जानता और न समझता हूँ।” कि तू क्या कहती है फिर वो बाहर सहन में गया [और मुर्ग़ ने बाँग दी]।
69. वो लौंडी उसे देख कर उन से जो पास खड़े थे, फिर कहने लगी “ये उन में से है।”
70. “मगर उसने फिर इन्कार किया और थोड़ी देर बाद उन्होंने जो पास खड़े थे पतरस से फिर कहा बेशक तू उन में से है क्यूँकि तू गलीली भी है।”
71. “मगर वो ला'नत करने और क़सम खाने लगा में इस आदमी को जिसका तुम ज़िक्र करते हो नहीं जानता।”
72. और फ़ौरन मुर्ग़ ने दूसरी बार बाँग दी पतरस को वो बात जो ईसा ने उससे कही थी याद आई [SCJ]“मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार इन्कार करेगा”[SCJ.] और उस पर ग़ौर करके रो पड़ा। [PE]