انجیل مقدس

خدا کا فضل تحفہ
1. उस वक़्त कुछ लोग हाज़िर थे, जिन्होंने उसे उन ग़लतियों की ख़बर दी जिनका ख़ून पिलातुस ने उनके ज़बीहों के साथ मिलाया था।
2. उसने जवाब में उनसे कहा, “इन ग़लतियों ने ऐसा दुःख पाया, क्या वो इसलिए तुम्हारी समझ में और सब ग़लतियों से ज़्यादा गुनहगार थे?
3. मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं; बल्कि अगर तुम तौबा न करोगे, तो सब इसी तरह हलाक होंगे।
4. या, क्या वो अठारह आदमी जिन पर शिलोख़ का गुम्बद गिरा और दब कर मर गए, तुम्हारी समझ में येरूशलेम के और सब रहनेवालों से ज़्यादा क़ुसूरवार थे?
5. मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं; बल्कि अगर तुम तौबा न करोगे, तो सब इसी तरह हलाक होगे।” [PE][PS]
6. फिर उसने ये मिसाल कही, “किसी ने अपने बाग़ में एक अंजीर का दरख़्त लगाया था। वो उसमें फल ढूँडने आया और न पाया।
7. इस पर उसने बाग़बान से कहा, 'देख तीन बरस से मैं इस अंजीर के दरख़्त में फल ढूँडने आता हूँ और नहीं पाता। इसे काट डाल, ये ज़मीन को भी क्यूँ रोके रहे?
8. उसने जवाब में उससे कहा, 'ऐ ख़ुदावन्द, इस साल तू और भी उसे रहने दे, ताकि मैं उसके चारों तरफ़ थाला खोदूँ और खाद डालूँ।
9. अगर आगे फला तो ख़ैर, नहीं तो उसके बाद काट डालना।” [PE][PS]
10. फिर वो सबत के दिन किसी 'इबादतख़ाने में ता'लीम देता था।
11. और देखो, एक 'औरत थी जिसको अठारह बरस से किसी बदरूह की वजह से कमज़ोरी थी; वो झुक गई थी और किसी तरह सीधी न हो सकती थी।
12. ईसा ने उसे देखकर पास बुलाया और उससे कहा, “ऐ 'औरत, तू अपनी कमज़ोरी से छूट गई।”
13. और उसने उस पर हाथ रख्खे, उसी दम वो सीधी हो गई और ख़ुदा की बड़ाई करने लगी।
14. 'इबादतख़ाने का सरदार, इसलिए कि ईसा ने सबत के दिन शिफ़ा बख़्शी, ख़फ़ा होकर लोगों से कहने लगा, “छ: दिन हैं जिनमें काम करना चाहिए, पस उन्हीं में आकर शिफ़ा पाओ न कि सबत के दिन।”
15. ख़ुदावन्द ने उसके जवाब में कहा, “'ऐ रियाकारो! क्या हर एक तुम में से सबत के दिन अपने बैल या गधे को खूंटे से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता?
16. पस क्या वाजिब न था कि ये जो अब्रहाम की बेटी है जिसको शैतान ने अठारह बरस से बाँध कर रख्खा था, सबत के दिन इस क़ैद से छुड़ाई जाती?”
17. जब उसने ये बातें कहीं तो उसके सब मुख़ालिफ़ शर्मिन्दा हुए, और सारी भीड़ उन 'आलीशान कामों से जो उससे होते थे, ख़ुश हुई। [PE][PS]
18. पस वो कहने लगा, “ख़ुदा की बादशाही किसकी तरह है? मैं उसको किससे मिसाल दूँ?”
19. वो राई के दाने की तरह है, जिसको एक आदमी ने लेकर अपने बाग़ में डाल दिया: वो उगकर बड़ा दरख़्त हो गया, और हवा के परिन्दों ने उसकी डालियों पर बसेरा किया।“
20. उसने फिर कहा, “मैं ख़ुदा की बादशाही को किससे मिसाल दूँ?”
21. वो ख़मीर की तरह है, जिसे एक 'औरत ने तीन पैमाने आटे में मिलाया, और होते होते सब ख़मीर हो गया।“ [PE][PS]
22. वो शहर — शहर और गाँव — गाँव ता'लीम देता हुआ येरूशलेम का सफ़र कर रहा था।
23. किसी शख़्स ने उससे पुछा, “ऐ ख़ुदावन्द! क्या नजात पाने वाले थोड़े हैं?”
24. उसने उनसे कहा, “मेहनत करो कि तंग दरवाज़े से दाख़िल हो, क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत से दाख़िल होने की कोशिश करेंगे और न हो सकेंगे।
25. जब घर का मालिक उठ कर दरवाज़ा बन्द कर चुका हो, और तुम बाहर खड़े दरवाज़ा खटखटाकर ये कहना शुरू' करो, 'ऐ ख़ुदावन्द! हमारे लिए खोल दे, और वो जवाब दे, 'मैं तुम को नहीं जानता कि कहाँ के हो।'
26. उस वक़्त तुम कहना शुरू करोगे, 'हम ने तो तेरे रु — ब — रु खाया — पिया और तू ने हमारे बाज़ारों में ता'लीम दी।'
27. मगर वो कहेगा, 'मैं तुम से कहता हूँ, कि मैं नहीं जानता तुम कहाँ के हो। ऐ बदकारो, तुम सब मुझ से दूर हो।
28. वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा; तुम अब्रहाम और इज़्हाक़ और याक़ूब और सब नबियों को ख़ुदा की बादशाही में शामिल, और अपने आपको बाहर निकाला हुआ देखोगे;
29. और पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्खिन से लोग आकर ख़ुदा की बादशाही की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे।
30. और देखो, कुछ आख़िर ऐसे हैं जो अव्वल होंगे और कुछ अव्वल हैं जो आख़िर होंगे।“ [PE][PS]
31. उसी वक़्त कुछ फ़रीसियों ने आकर उससे कहा, “निकल कर यहाँ से चल दे, क्यूँकि हेरोदेस तुझे क़त्ल करना चाहता है।”
32. उसने उनसे कहा, “जाकर उस लोमड़ी से कह दो कि देख, मैं आज और कल बदरूहों को निकालता और शिफ़ा का काम अन्जाम देता रहूँगा, और तीसरे दिन पूरा करूँगा।
33. मगर मुझे आज और कल और परसों अपनी राह पर चलना ज़रूर है, क्यूँकि मुम्किन नहीं कि नबी येरूशलेम से बाहर हलाक हो।“ [PE][PS]
34. “ऐ येरूशलेम! ऐ येरूशलेम! तू जो नबियों को क़त्ल करती है, और जो तेरे पास भेजे गए उन पर पथराव करती है। कितनी ही बार मैंने चाहा कि जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को परों तले जमा कर लेती है, उसी तरह मैं भी तेरे बच्चों को जमा कर लूँ, मगर तुम ने न चाहा।
35. देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे ही लिए छोड़ा जाता है, और मैं तुम से कहता हूँ, कि मुझ को उस वक़्त तक हरगिज़ न देखोगे जब तक न कहोगे, 'मुबारिक़ है वो, जो ख़ुदावन्द के नाम से आता है'।“ [PE]

Notes

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لُوقا 13:61
1. उस वक़्त कुछ लोग हाज़िर थे, जिन्होंने उसे उन ग़लतियों की ख़बर दी जिनका ख़ून पिलातुस ने उनके ज़बीहों के साथ मिलाया था।
2. उसने जवाब में उनसे कहा, “इन ग़लतियों ने ऐसा दुःख पाया, क्या वो इसलिए तुम्हारी समझ में और सब ग़लतियों से ज़्यादा गुनहगार थे?
3. मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं; बल्कि अगर तुम तौबा करोगे, तो सब इसी तरह हलाक होंगे।
4. या, क्या वो अठारह आदमी जिन पर शिलोख़ का गुम्बद गिरा और दब कर मर गए, तुम्हारी समझ में येरूशलेम के और सब रहनेवालों से ज़्यादा क़ुसूरवार थे?
5. मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं; बल्कि अगर तुम तौबा करोगे, तो सब इसी तरह हलाक होगे।” PEPS
6. फिर उसने ये मिसाल कही, “किसी ने अपने बाग़ में एक अंजीर का दरख़्त लगाया था। वो उसमें फल ढूँडने आया और पाया।
7. इस पर उसने बाग़बान से कहा, 'देख तीन बरस से मैं इस अंजीर के दरख़्त में फल ढूँडने आता हूँ और नहीं पाता। इसे काट डाल, ये ज़मीन को भी क्यूँ रोके रहे?
8. उसने जवाब में उससे कहा, 'ऐ ख़ुदावन्द, इस साल तू और भी उसे रहने दे, ताकि मैं उसके चारों तरफ़ थाला खोदूँ और खाद डालूँ।
9. अगर आगे फला तो ख़ैर, नहीं तो उसके बाद काट डालना।” PEPS
10. फिर वो सबत के दिन किसी 'इबादतख़ाने में ता'लीम देता था।
11. और देखो, एक 'औरत थी जिसको अठारह बरस से किसी बदरूह की वजह से कमज़ोरी थी; वो झुक गई थी और किसी तरह सीधी हो सकती थी।
12. ईसा ने उसे देखकर पास बुलाया और उससे कहा, “ऐ 'औरत, तू अपनी कमज़ोरी से छूट गई।”
13. और उसने उस पर हाथ रख्खे, उसी दम वो सीधी हो गई और ख़ुदा की बड़ाई करने लगी।
14. 'इबादतख़ाने का सरदार, इसलिए कि ईसा ने सबत के दिन शिफ़ा बख़्शी, ख़फ़ा होकर लोगों से कहने लगा, “छ: दिन हैं जिनमें काम करना चाहिए, पस उन्हीं में आकर शिफ़ा पाओ कि सबत के दिन।”
15. ख़ुदावन्द ने उसके जवाब में कहा, “'ऐ रियाकारो! क्या हर एक तुम में से सबत के दिन अपने बैल या गधे को खूंटे से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता?
16. पस क्या वाजिब था कि ये जो अब्रहाम की बेटी है जिसको शैतान ने अठारह बरस से बाँध कर रख्खा था, सबत के दिन इस क़ैद से छुड़ाई जाती?”
17. जब उसने ये बातें कहीं तो उसके सब मुख़ालिफ़ शर्मिन्दा हुए, और सारी भीड़ उन 'आलीशान कामों से जो उससे होते थे, ख़ुश हुई। PEPS
18. पस वो कहने लगा, “ख़ुदा की बादशाही किसकी तरह है? मैं उसको किससे मिसाल दूँ?”
19. वो राई के दाने की तरह है, जिसको एक आदमी ने लेकर अपने बाग़ में डाल दिया: वो उगकर बड़ा दरख़्त हो गया, और हवा के परिन्दों ने उसकी डालियों पर बसेरा किया।“
20. उसने फिर कहा, “मैं ख़ुदा की बादशाही को किससे मिसाल दूँ?”
21. वो ख़मीर की तरह है, जिसे एक 'औरत ने तीन पैमाने आटे में मिलाया, और होते होते सब ख़मीर हो गया।“ PEPS
22. वो शहर शहर और गाँव गाँव ता'लीम देता हुआ येरूशलेम का सफ़र कर रहा था।
23. किसी शख़्स ने उससे पुछा, “ऐ ख़ुदावन्द! क्या नजात पाने वाले थोड़े हैं?”
24. उसने उनसे कहा, “मेहनत करो कि तंग दरवाज़े से दाख़िल हो, क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत से दाख़िल होने की कोशिश करेंगे और हो सकेंगे।
25. जब घर का मालिक उठ कर दरवाज़ा बन्द कर चुका हो, और तुम बाहर खड़े दरवाज़ा खटखटाकर ये कहना शुरू' करो, 'ऐ ख़ुदावन्द! हमारे लिए खोल दे, और वो जवाब दे, 'मैं तुम को नहीं जानता कि कहाँ के हो।'
26. उस वक़्त तुम कहना शुरू करोगे, 'हम ने तो तेरे रु रु खाया पिया और तू ने हमारे बाज़ारों में ता'लीम दी।'
27. मगर वो कहेगा, 'मैं तुम से कहता हूँ, कि मैं नहीं जानता तुम कहाँ के हो। बदकारो, तुम सब मुझ से दूर हो।
28. वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा; तुम अब्रहाम और इज़्हाक़ और याक़ूब और सब नबियों को ख़ुदा की बादशाही में शामिल, और अपने आपको बाहर निकाला हुआ देखोगे;
29. और पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्खिन से लोग आकर ख़ुदा की बादशाही की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे।
30. और देखो, कुछ आख़िर ऐसे हैं जो अव्वल होंगे और कुछ अव्वल हैं जो आख़िर होंगे।“ PEPS
31. उसी वक़्त कुछ फ़रीसियों ने आकर उससे कहा, “निकल कर यहाँ से चल दे, क्यूँकि हेरोदेस तुझे क़त्ल करना चाहता है।”
32. उसने उनसे कहा, “जाकर उस लोमड़ी से कह दो कि देख, मैं आज और कल बदरूहों को निकालता और शिफ़ा का काम अन्जाम देता रहूँगा, और तीसरे दिन पूरा करूँगा।
33. मगर मुझे आज और कल और परसों अपनी राह पर चलना ज़रूर है, क्यूँकि मुम्किन नहीं कि नबी येरूशलेम से बाहर हलाक हो।“ PEPS
34. “ऐ येरूशलेम! येरूशलेम! तू जो नबियों को क़त्ल करती है, और जो तेरे पास भेजे गए उन पर पथराव करती है। कितनी ही बार मैंने चाहा कि जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को परों तले जमा कर लेती है, उसी तरह मैं भी तेरे बच्चों को जमा कर लूँ, मगर तुम ने चाहा।
35. देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे ही लिए छोड़ा जाता है, और मैं तुम से कहता हूँ, कि मुझ को उस वक़्त तक हरगिज़ देखोगे जब तक कहोगे, 'मुबारिक़ है वो, जो ख़ुदावन्द के नाम से आता है'।“ PE
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