1. {वो गुनाह जिनके लिये हदिया देना है } [PS]और अगर कोई इस तरह ख़ता करे कि वह गवाह हो और उसे क़सम दी जाए कि जैसे उसने कुछ देखा या उसे कुछ मा'लूम है, और वह न बताए, तो उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।
2. या अगर कोई शख़्स किसी [* रस्मी तोर से — नापाक ]नापाक चीज़ को छू ले, चाहे वह नापाक जानवर या नापाक चौपाये या नापाक रेंगनेवाले जानदार की लाश हो, तो चाहे उसे मा'लूम भी न हो कि वह नापाक हो गया है तो भी वह मुजरिम ठहरेगा।
3. या अगर वह इंसान की उन नजासतों में से जिनसे वह नजिस हो जाता है, किसी नजासत को छू ले और उसे मा'लूम न हो, तो वह उस वक़्त मुजरिम ठहरेगा जब उसे मा'लूम हो जाएगा। [† 12 से 14 बाब देखें ]
4. या अगर कोई बगै़र सोचे अपनी ज़बान से बुराई या भलाई करने की क़सम खाले, तो क़सम खा कर वह आदमी चाहे कैसी ही बात बग़ैर सोचे कह दे, बशर्ते कि उसे मा'लूम न हो, तो ऐसी बात में मुजरिम उस वक़्त ठहरेगा जब उसे मा'लूम हो जाएगा।
5. और जब वह इन बातों में से किसी में मुजरिम हो, तो जिस अम्र में उससे ख़ता हुई है वह उसका इक़रार करे,
6. और ख़ुदावन्द के सामने अपने जुर्म की क़ुर्बानी लाए; या'नी जो ख़ता उससे हुई है उसके लिए रेवड़ में से एक मादा, या'नी एक भेड़ या बकरी ख़ता की क़ुर्बानी के तौर पर पेश करे, और काहिन उसकी ख़ता का कफ़्फ़ारा दे
7. “और अगर उसे भेड़ देने का मक़दूर न हो, तो वह अपनी ख़ता के लिए जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे ख़ुदावन्द के सामने पेश करे; एक ख़ता की क़ुर्बानी के लिए और दूसरा सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए।
8. वह उन्हें काहिन के पास ले आए जो पहले उसे जो ख़ता की क़ुर्बानी के लिए है पेश करे, और उसका सिर गर्दन के पास से मरोड़ डाले पर उसे अलग न करे,
9. और ख़ता की क़ुर्बानी का कुछ ख़ून मज़बह के पहलू पर छिड़के और बाक़ी ख़ून को मज़बह के पाये पर गिर जाने दे; यह ख़ता की क़ुर्बानी है।
10. और दूसरे परिन्दे को [‡ जो दिया गया था जोड़ें ]हुक्म के मुवाफ़िक़ सोख़्तनी क़ुर्बानी के तौर पर अदा करे यूँ काहिन उसकी ख़ता का जो उसने की है कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
11. और अगर उसे दो कुमरियाँ या कबूतर के दो बच्चे लाने का भी मक़दूर न हो, तो अपनी ख़ता के लिए अपने हदिये के तौर पर, [§ 1 किलोग्राम ] ऐफ़ा के दसवें हिस्से के बराबर मैदा ख़ता की क़ुर्बानी के लिए लाए। उस पर न तो वह तेल डाले, न लुबान रख्खे, क्यूँकि यह ख़ता की क़ुर्बानी है।
12. वह उसे काहिन के पास लाए, और काहिन उसमें से अपनी मुट्ठी भर कर उसकी यादगारी का हिस्सा मज़बह पर ख़ुदावन्द की आतिशीन क़ुर्बानी के ऊपर जलाए। यह ख़ता की क़ुर्बानी है।
13. यूँ काहिन उसके लिए इन बातों में से, जिस किसी में उससे ख़ता हुई है उस ख़ता का कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी; और जो कुछ बाक़ी रह जाएगा, वह नज़्र की क़ुर्बानी की तरह काहिन का होगा।” [PE]
14. {ख़ता की कुर्बानी के कायदे } [PS]और ख़ुदावन्द ने मूसा से कहा कि;
15. अगर ख़ुदावन्द की पाक चीज़ों में किसी से तक़सीर हो और वह अनजाने में ख़ता करे, तो वह अपने जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर रेवड़ में से बे — 'ऐब मेंढा ख़ुदावन्द के सामने अदा करे। [* या दोबारा अदाएगी की क़ुरबानी ]जुर्म की क़ुर्बानी के लिए उसकी क़ीमत हैकल की मिस्क़ाल के हिसाब से चाँदी की उतनी ही मिस्क़ालें हों, जितनी तू मुक़र्रर कर दे।
16. और जिस पाक चीज़ में उससे तक़सीर हुई है वह उसका मु'आवज़ा दे, और उसमें पाँचवाँ हिस्सा और बढ़ा कर उसे काहिन के हवाले करे। यूँ काहिन जुर्म की क़ुर्बानी का मेंढा पेश कर उसका कफ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
17. 'और अगर कोई ख़ता करे, और उन कामों में से जिन्हें ख़ुदावन्द ने मना' किया है किसी काम को करे, तो चाहे वह यह बात जानता भी न हो तो भी मुजरिम ठहरेगा; और उसका गुनाह उसी के सिर लगेगा।
18. तब वह रेवड़ में से एक बे — 'ऐब मेंढा उतने ही दाम का, जो तू मुक़र्रर कर दे, जुर्म की क़ुर्बानी के तौर पर काहिन के पास लाए। यूँ काहिन उसकी उस बात का, जिसमें उससे अनजाने में चूक हो गई क़फ़्फ़ारा दे, तो उसे मु'आफ़ी मिलेगी।
19. यह जुर्म की क़ुर्बानी है, क्यूँकि वह यक़ीनन ख़ुदावन्द के आगे मुजरिम है।” [PE]