انجیل مقدس

خدا کا فضل تحفہ
1. {ख़ुदा की भरोसेमंदी में उम्मीद } [PS]मैं ही वह शख़्स हूँ जिसने उसके ग़ज़ब की लाठी से दुख पाया।
2. वह मेरा रहबर हुआ, और मुझे रौशनी में नहीं, बल्कि तारीकी में चलाया;
3. यक़ीनन उसका हाथ दिन भर मेरी मुख़ालिफ़त करता रहा।
4. उसने मेरा गोश्त और चमड़ा ख़ुश्क कर दिया, और मेरी हड्डियाँ तोड़ डालीं,
5. उसने मेरे चारों तरफ़ दीवार खेंची और मुझे कड़वाहट और — मशक़्क़त से घेर लिया;
6. उसने मुझे लम्बे वक़्त से मुर्दों की तरह तारीक मकानों में रख्खा।
7. उसने मेरे गिर्द अहाता बना दिया, कि मैं बाहर नहीं निकल सकता; उसने मेरी ज़ंजीर भारी कर दी।
8. बल्कि जब मैं पुकारता और दुहाई देता हूँ, तो वह मेरी फ़रियाद नहीं सुनता।
9. उसने तराशे हुए पत्थरों से मेरे रास्तेबन्द कर दिए, उसने मेरी राहें टेढ़ी कर दीं।
10. वह मेरे लिए घात में बैठा हुआ रीछ और कमीनगाह का शेर — ए — बब्बर है।
11. उसने मेरी राहें तंग कर दीं और मुझे रेज़ा — रेज़ा करके बर्बाद कर दिया।
12. उसने अपनी कमान खींची और मुझे अपने तीरों का निशाना बनाया।
13. उसने अपने तर्कश के तीरों से मेरे गुर्दों को छेद डाला।
14. मैं अपने सब लोगों के लिए मज़ाक़, और दिन भर उनका चर्चा हूँ।
15. उसने मुझे तल्ख़ी से भर दिया और नाग़दोने से मदहोश किया।
16. उसने संगरेज़ों से मेरे दाँत तोड़े और मुझे ज़मीन की तह में लिटाया।
17. तू ने मेरी जान को सलामती से दूरकर दिया, मैं ख़ुशहाली को भूल गया;
18. और मैंने कहा, “मैं नातवाँ हुआ, और ख़ुदावन्द से मेरी उम्मीद जाती रही।”
19. मेरे दुख का ख़्याल कर; मेरी मुसीबत, या'नी तल्ख़ी और नाग़दोने को याद कर।
20. इन बातों की याद से मेरी जान मुझ में बेताब है।
21. मैं इस पर सोचता रहता हूँ, इसीलिए मैं उम्मीदवार हूँ।
22. ये ख़ुदावन्द की शफ़क़त है, कि हम फ़ना नहीं हुए, क्यूँकि उसकी रहमत ला ज़वाल है।
23. वह हर सुबह ताज़ा है; तेरी वफ़ादारी 'अज़ीम है
24. मेरी जान ने कहा, “मेरा हिस्सा ख़ुदावन्द है, इसलिए मेरी उम्मीद उसी से है।”
25. ख़ुदावन्द उन पर महरबान है, जो उसके मुन्तज़िर हैं; उस जान पर जो उसकी तालिब है।
26. ये खू़ब है कि आदमी उम्मीदवार रहे और ख़ामोशी से ख़ुदावन्द की नजात का इन्तिज़ार करे।
27. आदमी के लिए बेहतर है कि अपनी जवानी के दिनों में फ़रमॉबरदारी करे।
28. वह तन्हा बैठे और ख़ामोश रहे, क्यूँकि ये ख़ुदा ही ने उस पर रख्खा है।
29. वह अपना मुँह ख़ाक पर रख्खे, कि शायद कुछ उम्मीद की सूरत निकले।
30. वह अपना गाल उसकी तरफ़ फेर दे, जो उसे तमाँचा मारता है और मलामत से खू़ब सेर हो
31. क्यूँकि ख़ुदावन्द हमेशा के लिए रद्द न करेगा,
32. क्यूँकि अगरचे वह दुख़ दे, तोभी अपनी शफ़क़त की दरयादिली से रहम करेगा।
33. क्यूँकि वह बनी आदम पर खु़शी से दुख़ मुसीबत नहीं भेजता।
34. रू — ए — ज़मीन के सब कै़दियों को पामाल करना
35. हक़ ताला के सामने किसी इंसान की हक़ तल्फ़ी करना,
36. और किसी आदमी का मुक़द्दमा बिगाड़ना, ख़ुदावन्द देख नहीं सकता।
37. वह कौन है जिसके कहने के मुताबिक़ होता है, हालाँकि ख़ुदावन्द नहीं फ़रमाता?
38. क्या भलाई और बुराई हक़ ताला ही के हुक्म से नहीं हैं?
39. इसलिए आदमी जीते जी क्यूँ शिकायत करे, जब कि उसे गुनाहों की सज़ा मिलती हो?
40. हम अपनी राहों को ढूंडें और जाँचें, और ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरें।
41. हम अपने हाथों के साथ दिलों को भी ख़ुदा के सामने आसमान की तरफ़ उठाएँ:
42. हम ने ख़ता और सरकशी की, तूने मु'आफ़ नहीं किया।
43. तू ने हम को क़हर से ढाँपा और रगेदा; तूने क़त्ल किया, और रहम न किया।
44. तू बादलों में मस्तूर हुआ, ताकि हमारी दुआ तुझ तक न पहुँचे।
45. तूने हम को क़ौमों के बीच कूड़े करकट और नजासत सा बना दिया।
46. हमारे सब दुश्मन हम पर मुँह पसारते हैं;
47. ख़ौफ़ — और — दहशत और वीरानी — और — हलाकत ने हम को आ दबाया।
48. मेरी दुख़्तर — ए — क़ौम की तबाही के ज़रिए' मेरी आँखों से आँसुओं की नहरें जारी हैं।
49. मेरी ऑखें अश्कबार हैं और थमती नहीं, उनको आराम नहीं,
50. जब तक ख़ुदावन्द आसमान पर से नज़र करके न देखे;
51. मेरी आँखें मेरे शहर की सब बेटियों के लिए मेरी जान को आज़ुर्दा करती हैं।
52. मेरे दुश्मनों ने बे वजह मुझे परिन्दे की तरह दौड़ाया;
53. उन्होंने चाह — ए — ज़िन्दान में मेरी जान लेने को मुझ पर पत्थर रख्खा;
54. पानी मेरे सिर से गुज़र गया, मैंने कहा, 'मैं मर मिटा।
55. ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तह दिल से तेरे नाम की दुहाई दी;
56. तू ने मेरी आवाज़ सुनी है, मेरी आह — ओ — फ़रियाद से अपना कान बन्द न कर।
57. जिस रोज़ मैने तुझे पुकारा, तू नज़दीक आया; और तू ने फ़रमाया, “परेशान न हो!”
58. ऐ ख़ुदावन्द, तूने मेरी जान की हिमायत की और उसे छुड़ाया।
59. ऐ ख़ुदावन्द, तू ने मेरी मज़लूमी देखी; मेरा इन्साफ़ कर।
60. तूने मेरे ख़िलाफ़ उनके तमाम इन्तक़ामऔर सब मन्सूबों को देखा है।
61. ऐ ख़ुदावन्द, तूने मेरे ख़िलाफ़ उनकी मलामत और उनके सब मन्सूबों को सुना है;
62. जो मेरी मुख़ालिफ़त को उठे उनकी बातें और दिन भर मेरी मुख़ालिफ़त में उनके मन्सूबे।
63. उनकी महफ़िल — ओ — बरख़ास्त को देख कि मेरा ही ज़िक्र है।
64. ऐ ख़ुदावन्द, उनके 'आमाल के मुताबिक़ उनको बदला दे।
65. उनको कोर दिल बना कि तेरी ला'नत उन पर हो।
66. हे यहोवा, क़हर से उनको भगा और रू — ए — ज़मीन से नेस्त — ओ — नाबूद कर दे। [PE]
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1 {ख़ुदा की भरोसेमंदी में उम्मीद } मैं ही वह शख़्स हूँ जिसने उसके ग़ज़ब की लाठी से दुख पाया। 2 वह मेरा रहबर हुआ, और मुझे रौशनी में नहीं, बल्कि तारीकी में चलाया; 3 यक़ीनन उसका हाथ दिन भर मेरी मुख़ालिफ़त करता रहा। 4 उसने मेरा गोश्त और चमड़ा ख़ुश्क कर दिया, और मेरी हड्डियाँ तोड़ डालीं, 5 उसने मेरे चारों तरफ़ दीवार खेंची और मुझे कड़वाहट और — मशक़्क़त से घेर लिया; 6 उसने मुझे लम्बे वक़्त से मुर्दों की तरह तारीक मकानों में रख्खा। 7 उसने मेरे गिर्द अहाता बना दिया, कि मैं बाहर नहीं निकल सकता; उसने मेरी ज़ंजीर भारी कर दी। 8 बल्कि जब मैं पुकारता और दुहाई देता हूँ, तो वह मेरी फ़रियाद नहीं सुनता। 9 उसने तराशे हुए पत्थरों से मेरे रास्तेबन्द कर दिए, उसने मेरी राहें टेढ़ी कर दीं। 10 वह मेरे लिए घात में बैठा हुआ रीछ और कमीनगाह का शेर — ए — बब्बर है। 11 उसने मेरी राहें तंग कर दीं और मुझे रेज़ा — रेज़ा करके बर्बाद कर दिया। 12 उसने अपनी कमान खींची और मुझे अपने तीरों का निशाना बनाया। 13 उसने अपने तर्कश के तीरों से मेरे गुर्दों को छेद डाला। 14 मैं अपने सब लोगों के लिए मज़ाक़, और दिन भर उनका चर्चा हूँ। 15 उसने मुझे तल्ख़ी से भर दिया और नाग़दोने से मदहोश किया। 16 उसने संगरेज़ों से मेरे दाँत तोड़े और मुझे ज़मीन की तह में लिटाया। 17 तू ने मेरी जान को सलामती से दूरकर दिया, मैं ख़ुशहाली को भूल गया; 18 और मैंने कहा, “मैं नातवाँ हुआ, और ख़ुदावन्द से मेरी उम्मीद जाती रही।” 19 मेरे दुख का ख़्याल कर; मेरी मुसीबत, या'नी तल्ख़ी और नाग़दोने को याद कर। 20 इन बातों की याद से मेरी जान मुझ में बेताब है। 21 मैं इस पर सोचता रहता हूँ, इसीलिए मैं उम्मीदवार हूँ। 22 ये ख़ुदावन्द की शफ़क़त है, कि हम फ़ना नहीं हुए, क्यूँकि उसकी रहमत ला ज़वाल है। 23 वह हर सुबह ताज़ा है; तेरी वफ़ादारी 'अज़ीम है 24 मेरी जान ने कहा, “मेरा हिस्सा ख़ुदावन्द है, इसलिए मेरी उम्मीद उसी से है।” 25 ख़ुदावन्द उन पर महरबान है, जो उसके मुन्तज़िर हैं; उस जान पर जो उसकी तालिब है। 26 ये खू़ब है कि आदमी उम्मीदवार रहे और ख़ामोशी से ख़ुदावन्द की नजात का इन्तिज़ार करे। 27 आदमी के लिए बेहतर है कि अपनी जवानी के दिनों में फ़रमॉबरदारी करे। 28 वह तन्हा बैठे और ख़ामोश रहे, क्यूँकि ये ख़ुदा ही ने उस पर रख्खा है। 29 वह अपना मुँह ख़ाक पर रख्खे, कि शायद कुछ उम्मीद की सूरत निकले। 30 वह अपना गाल उसकी तरफ़ फेर दे, जो उसे तमाँचा मारता है और मलामत से खू़ब सेर हो 31 क्यूँकि ख़ुदावन्द हमेशा के लिए रद्द न करेगा, 32 क्यूँकि अगरचे वह दुख़ दे, तोभी अपनी शफ़क़त की दरयादिली से रहम करेगा। 33 क्यूँकि वह बनी आदम पर खु़शी से दुख़ मुसीबत नहीं भेजता। 34 रू — ए — ज़मीन के सब कै़दियों को पामाल करना 35 हक़ ताला के सामने किसी इंसान की हक़ तल्फ़ी करना, 36 और किसी आदमी का मुक़द्दमा बिगाड़ना, ख़ुदावन्द देख नहीं सकता। 37 वह कौन है जिसके कहने के मुताबिक़ होता है, हालाँकि ख़ुदावन्द नहीं फ़रमाता? 38 क्या भलाई और बुराई हक़ ताला ही के हुक्म से नहीं हैं? 39 इसलिए आदमी जीते जी क्यूँ शिकायत करे, जब कि उसे गुनाहों की सज़ा मिलती हो? 40 हम अपनी राहों को ढूंडें और जाँचें, और ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरें। 41 हम अपने हाथों के साथ दिलों को भी ख़ुदा के सामने आसमान की तरफ़ उठाएँ: 42 हम ने ख़ता और सरकशी की, तूने मु'आफ़ नहीं किया। 43 तू ने हम को क़हर से ढाँपा और रगेदा; तूने क़त्ल किया, और रहम न किया। 44 तू बादलों में मस्तूर हुआ, ताकि हमारी दुआ तुझ तक न पहुँचे। 45 तूने हम को क़ौमों के बीच कूड़े करकट और नजासत सा बना दिया। 46 हमारे सब दुश्मन हम पर मुँह पसारते हैं; 47 ख़ौफ़ — और — दहशत और वीरानी — और — हलाकत ने हम को आ दबाया। 48 मेरी दुख़्तर — ए — क़ौम की तबाही के ज़रिए' मेरी आँखों से आँसुओं की नहरें जारी हैं। 49 मेरी ऑखें अश्कबार हैं और थमती नहीं, उनको आराम नहीं, 50 जब तक ख़ुदावन्द आसमान पर से नज़र करके न देखे; 51 मेरी आँखें मेरे शहर की सब बेटियों के लिए मेरी जान को आज़ुर्दा करती हैं। 52 मेरे दुश्मनों ने बे वजह मुझे परिन्दे की तरह दौड़ाया; 53 उन्होंने चाह — ए — ज़िन्दान में मेरी जान लेने को मुझ पर पत्थर रख्खा; 54 पानी मेरे सिर से गुज़र गया, मैंने कहा, 'मैं मर मिटा। 55 ऐ ख़ुदावन्द, मैंने तह दिल से तेरे नाम की दुहाई दी; 56 तू ने मेरी आवाज़ सुनी है, मेरी आह — ओ — फ़रियाद से अपना कान बन्द न कर। 57 जिस रोज़ मैने तुझे पुकारा, तू नज़दीक आया; और तू ने फ़रमाया, “परेशान न हो!” 58 ऐ ख़ुदावन्द, तूने मेरी जान की हिमायत की और उसे छुड़ाया। 59 ऐ ख़ुदावन्द, तू ने मेरी मज़लूमी देखी; मेरा इन्साफ़ कर। 60 तूने मेरे ख़िलाफ़ उनके तमाम इन्तक़ामऔर सब मन्सूबों को देखा है। 61 ऐ ख़ुदावन्द, तूने मेरे ख़िलाफ़ उनकी मलामत और उनके सब मन्सूबों को सुना है; 62 जो मेरी मुख़ालिफ़त को उठे उनकी बातें और दिन भर मेरी मुख़ालिफ़त में उनके मन्सूबे। 63 उनकी महफ़िल — ओ — बरख़ास्त को देख कि मेरा ही ज़िक्र है। 64 ऐ ख़ुदावन्द, उनके 'आमाल के मुताबिक़ उनको बदला दे। 65 उनको कोर दिल बना कि तेरी ला'नत उन पर हो। 66 हे यहोवा, क़हर से उनको भगा और रू — ए — ज़मीन से नेस्त — ओ — नाबूद कर दे।
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