انجیل مقدس

خدا کا فضل تحفہ
1. यह कह कर ईसा अपने शागिर्दों के साथ निकला और वादी — ए — क़िद्रोन को पार करके एक बाग़ में दाख़िल हुआ।
2. यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करने वाला था वह भी इस जगह से वाक़िफ़ था, क्यूँकि ईसा वहाँ अपने शागिर्दों के साथ जाया करता था।
3. राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदाह को रोमी फ़ौजियों का दस्ता और बैत — उल — मुक़द्दस के कुछ पहरेदार दिए थे। अब यह मशा'लें, लालटैन और हथियार लिए बाग़ में पहुँचे।
4. ईसा को मालूम था कि उसे क्या पेश आएगा। चुनाँचे उस ने निकल कर उन से पूछा, “तुम किस को ढूँड रहे हो?”
5. उन्हों ने जवाब दिया, “ईसा नासरी को।” ईसा ने उन्हें बताया, “मैं ही हूँ।” यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करना चाहता था, वह भी उन के साथ खड़ा था।
6. जब ईसा ने एलान किया, “मैं ही हूँ,” तो सब पीछे हट कर ज़मीन पर गिर पड़े।
7. एक और बार ईसा ने उन से सवाल किया, “तुम किस को ढूँड रहे हो?”
8. उस ने कहा, “मैं तुम को बता चुका हूँ कि मैं ही हूँ। अगर तुम मुझे ढूँड रहे हो तो इन को जाने दो।”
9. यूँ उस की यह बात पूरी हुई, “मैं ने उन में से जो तू ने मुझे दिए हैं एक को भी नहीं खोया।”
10. शमौन पतरस के पास तलवार थी। अब उस ने उसे मियान से निकाल कर इमाम — ए — आज़म के ग़ुलाम का दहना कान उड़ा दिया (ग़ुलाम का नाम मलख़ुस था)
11. लेकिन ईसा ने पतरस से कहा, “तलवार को मियान में रख। क्या मैं वह प्याला न पियूँ जो बाप ने मुझे दिया है?” [PE][PS]
12. फिर फ़ौजी दस्ते, उन के अफ़्सर और बैत — उल — मुक़द्दस के यहूदी पहरेदारों ने ईसा को गिरफ़्तार करके बाँध लिया।
13. पहले वह उसे हन्ना के पास ले गए। हन्ना उस साल के इमाम — ए — आज़म काइफ़ा का ससुर था।
14. काइफ़ा ही ने यहूदियों को यह मशवरा दिया था कि बेहतर यह है कि एक ही आदमी उम्मत के लिए मर जाए। [PE][PS]
15. शमौन पतरस किसी और शागिर्द के साथ ईसा के पीछे हो लिया था। यह दूसरा शागिर्द इमाम — ए — आज़म का जानने वाला था, इस लिए वह ईसा के साथ इमाम — ए — आज़म के सहन में दाख़िल हुआ।
16. पतरस बाहर दरवाज़े पर खड़ा रहा। फिर इमाम — ए — आज़म का जानने वाला शागिर्द दुबारा निकल आया। उस ने दरवाज़े की निगरानी करने वाली औरत से बात की तो उसे पतरस को अपने साथ अन्दर ले जाने की इजाज़त मिली।
17. उस औरत ने पतरस से पूछा, “तुम भी इस आदमी के शागिर्द हो कि नहीं?” उस ने जवाब दिया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।”
18. ठन्डा थी, इस लिए ग़ुलामों और पहरेदारों ने लकड़ी के कोयलों से आग जलाई। अब वह उस के पास खड़े ताप रहे थे। पतरस भी उन के साथ खड़ा ताप रहा था। [PE][PS]
19. इतने में इमाम — ए — आज़म ईसा की पूछ — ताछ करके उस के शागिर्दों और तालीमों के बारे में पूछ — ताछ करने लगा।
20. ईसा ने जवाब में कहा, “मैं ने दुनियाँ में खुल कर बात की है। मैं हमेशा यहूदी इबादतख़ानों और हैकल में तालीम देता रहा, वहाँ जहाँ तमाम यहूदी जमा हुआ करते हैं। पोशीदगी में तो मैं ने कुछ नहीं कहा।
21. आप मुझ से क्यूँ पूछ रहे हैं? उन से दरयाफ़्त करें जिन्हों ने मेरी बातें सुनी हैं। उन को मालूम है कि मैं ने क्या कुछ कहा है।”
22. “इस पर साथ खड़े हैकल के पहरेदारों में से एक ने ईसा के मुँह पर थप्पड़ मार कर कहा, क्या यह इमाम — ए — आज़म से बात करने का तरीक़ा है जब वह तुम से कुछ पूछे?”
23. ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं ने बुरी बात की है तो साबित कर। लेकिन अगर सच कहा, तो तू ने मुझे क्यूँ मारा?”
24. फिर हन्ना ने ईसा को बँधी हुई हालत में इमाम — ए — आज़म काइफ़ा के पास भेज दिया। [PE][PS]
25. शमौन पतरस अब तक आग के पास खड़ा ताप रहा था। इतने में दूसरे उस से पूछने लगे, “तुम भी उस के शागिर्द हो कि नहीं?”
26. फिर इमाम — ए — आज़म का एक ग़ुलाम बोल उठा जो उस आदमी का रिश्तेदार था जिस का कान पतरस ने उड़ा दिया था, “क्या मैं ने तुम को बाग़ में उस के साथ नहीं देखा था?”
27. पतरस ने एक बार फिर इन्कार किया, और इन्कार करते ही मुर्ग़ की बाँग सुनाई दी। [PE][PS]
28. फिर यहूदी ईसा को काइफ़ा से ले कर रोमी गवर्नर के महल बनाम प्रैटोरियुम के पास पहुँच गए। अब सुबह हो चुकी थी और चूँकि यहूदी फ़सह की ईद के खाने में शरीक होना चाहते थे, इस लिए वह महल में दाख़िल न हुए, वर्ना वह नापाक हो जाते।
29. चुनाँचे पिलातुस निकल कर उन के पास आया और पूछा, “तुम इस आदमी पर क्या इल्ज़ाम लगा रहे हो?”
30. उन्हों ने जवाब दिया, “अगर यह मुजरिम न होता तो हम इसे आप के हवाले न करते।”
31. पिलातुस ने अगुवों से कहा, “फिर इसे ले जाओ और अपनी शरई अदालतों में पेश करो।” लेकिन यहूदियों ने एतराज़ किया, “हमें किसी को सज़ा-ए-मौत देने की इजाज़त नहीं।”
32. ईसा ने इस तरफ़ इशारा किया था कि वह किस तरह की मौत मरेगा और अब उस की यह बात पूरी हुई।
33. तब पिलातुस फिर अपने महल में गया। वहाँ से उस ने ईसा को बुलाया और उस से पूछा, “क्या तुम यहूदियों के बादशाह हो?”
34. ईसा ने पूछा, “क्या आप अपनी तरफ़ से यह सवाल कर रहे हैं, या औरों ने आप को मेरे बारे में बताया है?”
35. पिलातुस ने जवाब दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ?” तुम्हारी अपनी क़ौम और राहनुमा इमामों ही ने तुम्हें मेरे हवाले किया है। तुम से क्या कुछ हुआ है?
36. ईसा ने कहा, “मेरी बादशाही इस दुनियाँ की नहीं है। अगर वह इस दुनियाँ की होती तो मेरे ख़ादिम सख़्त जद्द — ओ — जह्द करते ताकि मुझे यहूदियों के हवाले न किया जाता। लेकिन ऐसा नहीं है। अब मेरी बादशाही यहाँ की नहीं है।”
37. पीलातुस ने कहा, “तो फिर तुम वाक़ई बादशाह हो?” ईसा ने जवाब दिया, “आप सहीह कहते हैं, मैं बादशाह हूँ। मैं इसी मक़्सद के लिए पैदा हो कर दुनिया में आया कि सच्चाई की गवाही दूँ। जो भी सच्चाई की तरफ़ से है वह मेरी सुनता है।”
38. पीलातुस ने पूछा, “सच्चाई क्या है?” फिर वह दुबारा निकल कर यहूदियों के पास गया। उस ने एलान किया, “मुझे उसे मुज्रिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली। [PE][PS]
39. “लेकिन तुम्हारी एक रस्म है जिस के मुताबिक़ मुझे ईद — ए — फ़सह के मौक़े पर तुम्हारे लिए एक क़ैदी को रिहा करना है। क्या तुम चाहते हो कि मैं ‘यहूदियों के बादशाह’ को रिहा कर दूँ?”
40. लेकिन जवाब में लोग चिल्लाने लगे, “नहीं, इस को नहीं बल्कि बर — अब्बा को।” (बर — अब्बा डाकू था) [PE]

Notes

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یُوحنّا 18:14
1 यह कह कर ईसा अपने शागिर्दों के साथ निकला और वादी — ए — क़िद्रोन को पार करके एक बाग़ में दाख़िल हुआ। 2 यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करने वाला था वह भी इस जगह से वाक़िफ़ था, क्यूँकि ईसा वहाँ अपने शागिर्दों के साथ जाया करता था। 3 राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदाह को रोमी फ़ौजियों का दस्ता और बैत — उल — मुक़द्दस के कुछ पहरेदार दिए थे। अब यह मशा'लें, लालटैन और हथियार लिए बाग़ में पहुँचे। 4 ईसा को मालूम था कि उसे क्या पेश आएगा। चुनाँचे उस ने निकल कर उन से पूछा, “तुम किस को ढूँड रहे हो?” 5 उन्हों ने जवाब दिया, “ईसा नासरी को।” ईसा ने उन्हें बताया, “मैं ही हूँ।” यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करना चाहता था, वह भी उन के साथ खड़ा था। 6 जब ईसा ने एलान किया, “मैं ही हूँ,” तो सब पीछे हट कर ज़मीन पर गिर पड़े। 7 एक और बार ईसा ने उन से सवाल किया, “तुम किस को ढूँड रहे हो?” 8 उस ने कहा, “मैं तुम को बता चुका हूँ कि मैं ही हूँ। अगर तुम मुझे ढूँड रहे हो तो इन को जाने दो।” 9 यूँ उस की यह बात पूरी हुई, “मैं ने उन में से जो तू ने मुझे दिए हैं एक को भी नहीं खोया।” 10 शमौन पतरस के पास तलवार थी। अब उस ने उसे मियान से निकाल कर इमाम — ए — आज़म के ग़ुलाम का दहना कान उड़ा दिया (ग़ुलाम का नाम मलख़ुस था) 11 लेकिन ईसा ने पतरस से कहा, “तलवार को मियान में रख। क्या मैं वह प्याला न पियूँ जो बाप ने मुझे दिया है?” 12 फिर फ़ौजी दस्ते, उन के अफ़्सर और बैत — उल — मुक़द्दस के यहूदी पहरेदारों ने ईसा को गिरफ़्तार करके बाँध लिया। 13 पहले वह उसे हन्ना के पास ले गए। हन्ना उस साल के इमाम — ए — आज़म काइफ़ा का ससुर था। 14 काइफ़ा ही ने यहूदियों को यह मशवरा दिया था कि बेहतर यह है कि एक ही आदमी उम्मत के लिए मर जाए। 15 शमौन पतरस किसी और शागिर्द के साथ ईसा के पीछे हो लिया था। यह दूसरा शागिर्द इमाम — ए — आज़म का जानने वाला था, इस लिए वह ईसा के साथ इमाम — ए — आज़म के सहन में दाख़िल हुआ। 16 पतरस बाहर दरवाज़े पर खड़ा रहा। फिर इमाम — ए — आज़म का जानने वाला शागिर्द दुबारा निकल आया। उस ने दरवाज़े की निगरानी करने वाली औरत से बात की तो उसे पतरस को अपने साथ अन्दर ले जाने की इजाज़त मिली। 17 उस औरत ने पतरस से पूछा, “तुम भी इस आदमी के शागिर्द हो कि नहीं?” उस ने जवाब दिया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।” 18 ठन्डा थी, इस लिए ग़ुलामों और पहरेदारों ने लकड़ी के कोयलों से आग जलाई। अब वह उस के पास खड़े ताप रहे थे। पतरस भी उन के साथ खड़ा ताप रहा था। 19 इतने में इमाम — ए — आज़म ईसा की पूछ — ताछ करके उस के शागिर्दों और तालीमों के बारे में पूछ — ताछ करने लगा। 20 ईसा ने जवाब में कहा, “मैं ने दुनियाँ में खुल कर बात की है। मैं हमेशा यहूदी इबादतख़ानों और हैकल में तालीम देता रहा, वहाँ जहाँ तमाम यहूदी जमा हुआ करते हैं। पोशीदगी में तो मैं ने कुछ नहीं कहा। 21 आप मुझ से क्यूँ पूछ रहे हैं? उन से दरयाफ़्त करें जिन्हों ने मेरी बातें सुनी हैं। उन को मालूम है कि मैं ने क्या कुछ कहा है।” 22 “इस पर साथ खड़े हैकल के पहरेदारों में से एक ने ईसा के मुँह पर थप्पड़ मार कर कहा, क्या यह इमाम — ए — आज़म से बात करने का तरीक़ा है जब वह तुम से कुछ पूछे?” 23 ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं ने बुरी बात की है तो साबित कर। लेकिन अगर सच कहा, तो तू ने मुझे क्यूँ मारा?” 24 फिर हन्ना ने ईसा को बँधी हुई हालत में इमाम — ए — आज़म काइफ़ा के पास भेज दिया। 25 शमौन पतरस अब तक आग के पास खड़ा ताप रहा था। इतने में दूसरे उस से पूछने लगे, “तुम भी उस के शागिर्द हो कि नहीं?” 26 फिर इमाम — ए — आज़म का एक ग़ुलाम बोल उठा जो उस आदमी का रिश्तेदार था जिस का कान पतरस ने उड़ा दिया था, “क्या मैं ने तुम को बाग़ में उस के साथ नहीं देखा था?” 27 पतरस ने एक बार फिर इन्कार किया, और इन्कार करते ही मुर्ग़ की बाँग सुनाई दी। 28 फिर यहूदी ईसा को काइफ़ा से ले कर रोमी गवर्नर के महल बनाम प्रैटोरियुम के पास पहुँच गए। अब सुबह हो चुकी थी और चूँकि यहूदी फ़सह की ईद के खाने में शरीक होना चाहते थे, इस लिए वह महल में दाख़िल न हुए, वर्ना वह नापाक हो जाते। 29 चुनाँचे पिलातुस निकल कर उन के पास आया और पूछा, “तुम इस आदमी पर क्या इल्ज़ाम लगा रहे हो?” 30 उन्हों ने जवाब दिया, “अगर यह मुजरिम न होता तो हम इसे आप के हवाले न करते।” 31 पिलातुस ने अगुवों से कहा, “फिर इसे ले जाओ और अपनी शरई अदालतों में पेश करो।” लेकिन यहूदियों ने एतराज़ किया, “हमें किसी को सज़ा-ए-मौत देने की इजाज़त नहीं।” 32 ईसा ने इस तरफ़ इशारा किया था कि वह किस तरह की मौत मरेगा और अब उस की यह बात पूरी हुई। 33 तब पिलातुस फिर अपने महल में गया। वहाँ से उस ने ईसा को बुलाया और उस से पूछा, “क्या तुम यहूदियों के बादशाह हो?” 34 ईसा ने पूछा, “क्या आप अपनी तरफ़ से यह सवाल कर रहे हैं, या औरों ने आप को मेरे बारे में बताया है?” 35 पिलातुस ने जवाब दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ?” तुम्हारी अपनी क़ौम और राहनुमा इमामों ही ने तुम्हें मेरे हवाले किया है। तुम से क्या कुछ हुआ है? 36 ईसा ने कहा, “मेरी बादशाही इस दुनियाँ की नहीं है। अगर वह इस दुनियाँ की होती तो मेरे ख़ादिम सख़्त जद्द — ओ — जह्द करते ताकि मुझे यहूदियों के हवाले न किया जाता। लेकिन ऐसा नहीं है। अब मेरी बादशाही यहाँ की नहीं है।” 37 पीलातुस ने कहा, “तो फिर तुम वाक़ई बादशाह हो?” ईसा ने जवाब दिया, “आप सहीह कहते हैं, मैं बादशाह हूँ। मैं इसी मक़्सद के लिए पैदा हो कर दुनिया में आया कि सच्चाई की गवाही दूँ। जो भी सच्चाई की तरफ़ से है वह मेरी सुनता है।” 38 पीलातुस ने पूछा, “सच्चाई क्या है?” फिर वह दुबारा निकल कर यहूदियों के पास गया। उस ने एलान किया, “मुझे उसे मुज्रिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली। 39 “लेकिन तुम्हारी एक रस्म है जिस के मुताबिक़ मुझे ईद — ए — फ़सह के मौक़े पर तुम्हारे लिए एक क़ैदी को रिहा करना है। क्या तुम चाहते हो कि मैं ‘यहूदियों के बादशाह’ को रिहा कर दूँ?” 40 लेकिन जवाब में लोग चिल्लाने लगे, “नहीं, इस को नहीं बल्कि बर — अब्बा को।” (बर — अब्बा डाकू था)
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