انجیل مقدس

خدا کا فضل تحفہ
1. {या'क़ूब का के भाईयों का मिस्र को जाना } [PS]और या'क़ूब को मा'लूम हुआ कि मिस्र में ग़ल्ला है, तब उसने अपने बेटों से कहा कि तुम क्यूँ एक दूसरे का मुँह ताकते हो?
2. देखो, मैंने सुना है कि मिस्र में ग़ल्ला है। तुम वहाँ जाओ और वहाँ से हमारे लिए अनाज मोल ले आओ, ताकि हम ज़िन्दा रहें और हलाक न हों।
3. तब यूसुफ़ के दस भाई ग़ल्ला मोल लेने को मिस्र में आए।
4. लेकिन या'क़ूब ने यूसुफ़ के भाई बिनयमीन को उसके भाइयों के साथ न भेजा, क्यूँकि उसने कहा, कि कहीं उस पर कोई आफ़त न आ जाए।
5. इसलिए जो लोग ग़ल्ला खरीदने आए उनके साथ इस्राईल के बेटे भी आए, क्यूँकि कनान के मुल्क में काल था।
6. और यूसुफ़ मुल्क — ए — मिस्र का हाकिम था और वही मुल्क के सब लोगों के हाथ ग़ल्ला बेचता था। तब यूसुफ़ के भाई आए और अपने सिर ज़मीन पर टेक कर उसके सामने आदाब बजा लाए।
7. यूसुफ़ अपने भाइयों को देख कर उनको पहचान गया; लेकिन उसने उनके सामने अपने आप को अन्जान बना लिया और उनसे सख़्त लहजे में पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?” उन्होंने कहा, “कना'न के मुल्क से अनाज मोल लेने को।”
8. यूसुफ़ ने तो अपने भाइयों को पहचान लिया था लेकिन उन्होंने उसे न पहचाना।
9. और यूसुफ़ उन ख़्वाबों को जो उसने उनके बारे में देखे थे याद करके उनसे कहने लगा कि तुम जासूस हो। तुम आए हो कि इस मुल्क की बुरी हालत दरियाफ़्त करो।
10. उन्होंने उससे कहा, “नहीं ख़ुदावन्द! तेरे ग़ुलाम अनाज मोल लेने आए हैं।
11. हम सब एक ही शख़्स के बेटे हैं। हम सच्चे हैं; तेरे ग़ुलाम जासूस नहीं हैं।”
12. उसने कहा, “नहीं; बल्कि तुम इस मुल्क की बुरी हालत दरियाफ़्त करने को आए हो।”
13. तब उन्होंने कहा, “तेरे ग़ुलाम बारह भाई एक ही शख़्स के बेटे हैं जो मुल्क — ए — कना'न में है। सबसे छोटा इस वक़्त हमारे बाप के पास है और एक का कुछ पता नहीं।”
14. तब यूसुफ़ ने उनसे कहा, “मैं तो तुम से कह चुका कि तुम जासूस हो।
15. इसलिए तुम्हारी आज़माइश इस तरह की जाएगी कि फ़िर'औन की हयात की क़सम, तुम यहाँ से जाने न पाओगे; जब तक तुम्हारा सबसे छोटा भाई यहाँ न आ जाए।
16. इसलिए अपने में से किसी एक को भेजो कि वह तुम्हारे भाई को ले आए और तुम क़ैद रहो, ताकि तुम्हारी बातों की तसदीक़ हो कि तुम सच्चे हो या नहीं; वरना फ़िर'औन की हयात की क़सम तुम ज़रूर ही जासूस हो।”
17. और उसने उन सब को तीन दिन तक इकट्ठे नज़रबन्द रख्खा।
18. और तीसरे दिन यूसुफ़ ने उनसे कहा, “एक काम करो तो ज़िन्दा रहोगे; क्यूँकि मुझे ख़ुदा का ख़ौफ़ है।
19. अगर तुम सच्चे हो तो अपने भाइयों में से एक को क़ैद खाने में बन्द रहने दो, और तुम अपने घरवालों के खाने के लिए अनाज ले जाओ।
20. और अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास ले आओ, यूँ तुम्हारी बातों की तस्दीक़ हो जाएगी और तुम हलाक न होगे।” इसलिए उन्होंने ऐसा ही किया।
21. और वह आपस में कहने लगे, “हम दरअसल अपने भाई की वजह से मुजरिम ठहरे हैं; क्यूँकि जब उसने हम से मिन्नत की तो हम ने यह देखकर भी, कि उसकी जान कैसी मुसीबत में है उसकी न सुनी; इसी लिए यह मुसीबत हम पर आ पड़ी है।”
22. तब रूबिन बोल उठा, “क्या मैंने तुम से न कहा था कि इस बच्चे पर ज़ुल्म न करो, और तुम ने न सुना; इसलिए देख लो, अब उसके ख़ून का बदला लिया जाता है।”
23. और उनको मा'लूम न था कि यूसुफ़ उनकी बातें समझता है, इसलिए कि उनके बीच एक तरजुमान था।
24. तब वह उनके पास से हट गया और रोया, और फिर उनके पास आकर उनसे बातें कीं और उनमें से शमौन को लेकर उनकी आँखों के सामने उसे बन्धवा दिया।
25. फिर यूसुफ़ ने हुक्म किया, कि उनके बोरों में अनाज भरें और हर शख़्स की नकदी उसी के बोरे में रख दें, और उनको सफ़र का सामान भी दे दें। चुनांचे उनके लिए ऐसा ही किया गया।
26. और उन्होंने अपने गधों पर ग़ल्ला लाद लिया और वहाँ से रवाना हुए।
27. जब उनमें से एक ने मन्जिल पर अपने गधे को चारा देने के लिए अपना बोरा खोला, तो अपनी नक़दी बोरे के मुँह में रख्खी देखी।
28. तब उसने अपने भाइयों से कहा कि मेरी नक़दी वापस कर दी गई है, वह मेरे बोरे में है, देख लो!' फिर तो वह घबरा गए और हक्का — बक्का होकर एक दूसरे को देखने और कहने लगे, ख़ुदा ने हम से यह क्या किया?
29. और वह मुल्क — ए — कना'न में अपने बाप या'क़ूब के पास आए, और सारी वारदात उसे बताई और कहने लगे कि
30. उस शख़्स ने जो उस मुल्क का मालिक है हम से सख़्त लहजे में बातें कीं, और हम को उस मुल्क के जासूस समझा।
31. हम ने उससे कहा कि हम सच्चे आदमी हैं; हम जासूस नहीं।
32. हम बारह भाई एक ही बाप के बेटे हैं; हम में से एक का कुछ पता नहीं और सबसे छोटा इस वक़्त हमारे बाप के पास मुल्क — ए — कना'न में है।
33. तब उस शख़्स ने जो मुल्क का मालिक है हम से कहा, 'मैं इसी से जान लूँगा कि तुम सच्चे हो कि अपने भाइयों में से किसी को मेरे पास छोड़ दो और अपने घरवालों के खाने के लिए अनाज लेकर चले जाओ।
34. और अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास ले आओ; तब मैं जान लूँगा कि तुम जासूस नहीं बल्कि सच्चे आदमी हो। और मैं तुम्हारे भाई को तुम्हारे हवाले कर दूँगा, फिर तुम मुल्क में सौदागरी करना'।
35. और यूँ हुआ कि जब उन्होंने अपने अपने बोरे खाली किए तो हर शख़्स की नक़दी की थैली उसी के बोरे में रख्खी देखी, और वह और उनका बाप नक़दी की थैलियाँ देख कर डर गए।
36. और उनके बाप या'क़ूब ने उनसे कहा, “तुम ने मुझे बेऔलाद कर दिया। यूसुफ़ नहीं रहा और शमौन भी नहीं है, और अब बिनयमीन को भी ले जाना चाहते ही। ये सब बातें मेरे ख़िलाफ़ हैं।”
37. तब रूबिन ने अपने बाप से कहा, “अगर मैं उसे तेरे पास न ले आऊँ तो तू मेरे दोनों बेटों को क़त्ल कर डालना। उसे मेरे हाथ में सौंप दे और मैं उसे फिर तेरे पास पहुँचा दूँगा।”
38. उसने कहा, मेरा बेटा तुम्हारे साथ नहीं जाएगा; क्यूँकि उसका भाई मर गया और वह अकेला रह गया है। अगर रास्ते में जाते — जाते उस पर कोई आफ़त आ पड़े तो तुम मेरे सफ़ेद बालों को ग़म के साथ क़ब्र में उतारोगे। [PE]
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1 {या'क़ूब का के भाईयों का मिस्र को जाना } और या'क़ूब को मा'लूम हुआ कि मिस्र में ग़ल्ला है, तब उसने अपने बेटों से कहा कि तुम क्यूँ एक दूसरे का मुँह ताकते हो? 2 देखो, मैंने सुना है कि मिस्र में ग़ल्ला है। तुम वहाँ जाओ और वहाँ से हमारे लिए अनाज मोल ले आओ, ताकि हम ज़िन्दा रहें और हलाक न हों। 3 तब यूसुफ़ के दस भाई ग़ल्ला मोल लेने को मिस्र में आए। 4 लेकिन या'क़ूब ने यूसुफ़ के भाई बिनयमीन को उसके भाइयों के साथ न भेजा, क्यूँकि उसने कहा, कि कहीं उस पर कोई आफ़त न आ जाए। 5 इसलिए जो लोग ग़ल्ला खरीदने आए उनके साथ इस्राईल के बेटे भी आए, क्यूँकि कनान के मुल्क में काल था। 6 और यूसुफ़ मुल्क — ए — मिस्र का हाकिम था और वही मुल्क के सब लोगों के हाथ ग़ल्ला बेचता था। तब यूसुफ़ के भाई आए और अपने सिर ज़मीन पर टेक कर उसके सामने आदाब बजा लाए। 7 यूसुफ़ अपने भाइयों को देख कर उनको पहचान गया; लेकिन उसने उनके सामने अपने आप को अन्जान बना लिया और उनसे सख़्त लहजे में पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?” उन्होंने कहा, “कना'न के मुल्क से अनाज मोल लेने को।” 8 यूसुफ़ ने तो अपने भाइयों को पहचान लिया था लेकिन उन्होंने उसे न पहचाना। 9 और यूसुफ़ उन ख़्वाबों को जो उसने उनके बारे में देखे थे याद करके उनसे कहने लगा कि तुम जासूस हो। तुम आए हो कि इस मुल्क की बुरी हालत दरियाफ़्त करो। 10 उन्होंने उससे कहा, “नहीं ख़ुदावन्द! तेरे ग़ुलाम अनाज मोल लेने आए हैं। 11 हम सब एक ही शख़्स के बेटे हैं। हम सच्चे हैं; तेरे ग़ुलाम जासूस नहीं हैं।” 12 उसने कहा, “नहीं; बल्कि तुम इस मुल्क की बुरी हालत दरियाफ़्त करने को आए हो।” 13 तब उन्होंने कहा, “तेरे ग़ुलाम बारह भाई एक ही शख़्स के बेटे हैं जो मुल्क — ए — कना'न में है। सबसे छोटा इस वक़्त हमारे बाप के पास है और एक का कुछ पता नहीं।” 14 तब यूसुफ़ ने उनसे कहा, “मैं तो तुम से कह चुका कि तुम जासूस हो। 15 इसलिए तुम्हारी आज़माइश इस तरह की जाएगी कि फ़िर'औन की हयात की क़सम, तुम यहाँ से जाने न पाओगे; जब तक तुम्हारा सबसे छोटा भाई यहाँ न आ जाए। 16 इसलिए अपने में से किसी एक को भेजो कि वह तुम्हारे भाई को ले आए और तुम क़ैद रहो, ताकि तुम्हारी बातों की तसदीक़ हो कि तुम सच्चे हो या नहीं; वरना फ़िर'औन की हयात की क़सम तुम ज़रूर ही जासूस हो।” 17 और उसने उन सब को तीन दिन तक इकट्ठे नज़रबन्द रख्खा। 18 और तीसरे दिन यूसुफ़ ने उनसे कहा, “एक काम करो तो ज़िन्दा रहोगे; क्यूँकि मुझे ख़ुदा का ख़ौफ़ है। 19 अगर तुम सच्चे हो तो अपने भाइयों में से एक को क़ैद खाने में बन्द रहने दो, और तुम अपने घरवालों के खाने के लिए अनाज ले जाओ। 20 और अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास ले आओ, यूँ तुम्हारी बातों की तस्दीक़ हो जाएगी और तुम हलाक न होगे।” इसलिए उन्होंने ऐसा ही किया। 21 और वह आपस में कहने लगे, “हम दरअसल अपने भाई की वजह से मुजरिम ठहरे हैं; क्यूँकि जब उसने हम से मिन्नत की तो हम ने यह देखकर भी, कि उसकी जान कैसी मुसीबत में है उसकी न सुनी; इसी लिए यह मुसीबत हम पर आ पड़ी है।” 22 तब रूबिन बोल उठा, “क्या मैंने तुम से न कहा था कि इस बच्चे पर ज़ुल्म न करो, और तुम ने न सुना; इसलिए देख लो, अब उसके ख़ून का बदला लिया जाता है।” 23 और उनको मा'लूम न था कि यूसुफ़ उनकी बातें समझता है, इसलिए कि उनके बीच एक तरजुमान था। 24 तब वह उनके पास से हट गया और रोया, और फिर उनके पास आकर उनसे बातें कीं और उनमें से शमौन को लेकर उनकी आँखों के सामने उसे बन्धवा दिया। 25 फिर यूसुफ़ ने हुक्म किया, कि उनके बोरों में अनाज भरें और हर शख़्स की नकदी उसी के बोरे में रख दें, और उनको सफ़र का सामान भी दे दें। चुनांचे उनके लिए ऐसा ही किया गया। 26 और उन्होंने अपने गधों पर ग़ल्ला लाद लिया और वहाँ से रवाना हुए। 27 जब उनमें से एक ने मन्जिल पर अपने गधे को चारा देने के लिए अपना बोरा खोला, तो अपनी नक़दी बोरे के मुँह में रख्खी देखी। 28 तब उसने अपने भाइयों से कहा कि मेरी नक़दी वापस कर दी गई है, वह मेरे बोरे में है, देख लो!' फिर तो वह घबरा गए और हक्का — बक्का होकर एक दूसरे को देखने और कहने लगे, ख़ुदा ने हम से यह क्या किया? 29 और वह मुल्क — ए — कना'न में अपने बाप या'क़ूब के पास आए, और सारी वारदात उसे बताई और कहने लगे कि 30 उस शख़्स ने जो उस मुल्क का मालिक है हम से सख़्त लहजे में बातें कीं, और हम को उस मुल्क के जासूस समझा। 31 हम ने उससे कहा कि हम सच्चे आदमी हैं; हम जासूस नहीं। 32 हम बारह भाई एक ही बाप के बेटे हैं; हम में से एक का कुछ पता नहीं और सबसे छोटा इस वक़्त हमारे बाप के पास मुल्क — ए — कना'न में है। 33 तब उस शख़्स ने जो मुल्क का मालिक है हम से कहा, 'मैं इसी से जान लूँगा कि तुम सच्चे हो कि अपने भाइयों में से किसी को मेरे पास छोड़ दो और अपने घरवालों के खाने के लिए अनाज लेकर चले जाओ। 34 और अपने सबसे छोटे भाई को मेरे पास ले आओ; तब मैं जान लूँगा कि तुम जासूस नहीं बल्कि सच्चे आदमी हो। और मैं तुम्हारे भाई को तुम्हारे हवाले कर दूँगा, फिर तुम मुल्क में सौदागरी करना'। 35 और यूँ हुआ कि जब उन्होंने अपने अपने बोरे खाली किए तो हर शख़्स की नक़दी की थैली उसी के बोरे में रख्खी देखी, और वह और उनका बाप नक़दी की थैलियाँ देख कर डर गए। 36 और उनके बाप या'क़ूब ने उनसे कहा, “तुम ने मुझे बेऔलाद कर दिया। यूसुफ़ नहीं रहा और शमौन भी नहीं है, और अब बिनयमीन को भी ले जाना चाहते ही। ये सब बातें मेरे ख़िलाफ़ हैं।” 37 तब रूबिन ने अपने बाप से कहा, “अगर मैं उसे तेरे पास न ले आऊँ तो तू मेरे दोनों बेटों को क़त्ल कर डालना। उसे मेरे हाथ में सौंप दे और मैं उसे फिर तेरे पास पहुँचा दूँगा।” 38 उसने कहा, मेरा बेटा तुम्हारे साथ नहीं जाएगा; क्यूँकि उसका भाई मर गया और वह अकेला रह गया है। अगर रास्ते में जाते — जाते उस पर कोई आफ़त आ पड़े तो तुम मेरे सफ़ेद बालों को ग़म के साथ क़ब्र में उतारोगे।
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