انجیل مقدس

خدا کا فضل تحفہ
1. ऐ भाइयों! मैं तुम्हारा इस से नावाक़िफ़ रहना नहीं चाहता कि हमारे सब बाप दादा बादल के नीचे थे; और सब के सब लाल समुन्दर में से गुज़रे।
2. और सब ही ने उस बादल और समुन्दर में मूसा का बपतिस्मा लिया।
3. और सब ने एक ही रूहानी ख़ुराक खाई।
4. और सब ने एक ही रूहानी पानी पिया क्यूँकि वो उस रूहानी चट्टान में से पानी पीते थे जो उन के साथ साथ चलती थी और वो चट्टान मसीह था। [PE][PS]
5. मगर उन में अक्सरों से ख़ुदा राज़ी न हुआ चुनाँचे वो वीराने में ढेर हो गए।
6. ये बातें हमारे लिए इबरत ठहरीं, ताकि हम बुरी चीज़ों की ख़्वाहिश न करें, जैसे उन्हों ने की। [PE][PS]
7. और तुम बुतपरस्त न बनो जिस तरह कुछ उनमें से बन गए थे चुनाँचे लिखा है। “लोग खाने पीने को बैठे फिर नाचने कूदने को उठे।”
8. और हम हरामकारी न करें जिस तरह उनमें से कुछ ने की, और एक ही दिन में तेईस हज़ार मर गए। [PE][PS]
9. और हम ख़ुदा वन्द की आज़माइश न करें जैसे उन में से कुछ ने की और साँपों ने उन्हें हलाक किया।
10. और तुम बड़बड़ाओ नहीं जिस तरह उन में से कुछ बड़बड़ाए और हलाक करने वाले से हलाक हुए। [PE][PS]
11. ये बातें उन पर 'इबरत के लिए वाक़े' हुईं और हम आख़री ज़माने वालों की नसीहत के वास्ते लिखी गईं।
12. पस जो कोई अपने आप को क़ाईम समझता है, वो ख़बरदार रहे के गिर न पड़े।
13. तुम किसी ऐसी आज़माइश में न पड़े जो इंसान की आज़माइश से बाहर हो ख़ुदा सच्चा है वो तुम को तुम्हारी ताक़त से ज़्यादा आज़माइश में पड़ने न देगा, बल्कि आज़माइश के साथ निकलने की राह भी पैदा कर देगा, ताकि तुम बर्दाश्त कर सको। [PE][PS]
14. इस वजह से ऐ मेरे प्यारो! बुतपरस्ती से भागो।
15. मैं अक़्लमन्द जानकर तुम से कलाम करता हूँ; जो मैं कहता हूँ, तुम आप उसे परखो।
16. वो बर्क़त का प्याला जिस पर हम बर्क़त चाहते हैं क्या मसीह के ख़ून की शराकत नहीं? वो रोटी जिसे हम तोड़ते हैं क्या मसीह के बदन की शराकत नहीं?
17. चूँकि रोटी एक ही है इस लिए हम जो बहुत से हैं एक बदन हैं क्यूँकि हम सब उसी एक रोटी में शरीक होते हैं। [PE][PS]
18. जो जिस्म के ऐ'तिबार से इस्राईली हैं उन पर नज़र करो क्या क़ुर्बानी का गोश्त खानेवाले क़ुर्बानगाह के शरीक नहीं?
19. पस मैं क्या ये कहता हूँ कि बुतों की क़ुर्बानी कुछ चीज़ है या बुत कुछ चीज़ है? [PE][PS]
20. नहीं बल्कि मैं ये कहता हूँ कि जो क़ुर्बानी ग़ैर क़ौमें करती हैं शयातीन के लिए क़ुर्बानी करती हैं; न कि ख़ुदा के लिए, और मैं नहीं चाहता कि तुम शयातीन के शरीक हो।
21. तुम ख़ुदावन्द के प्याले और शयातीन के प्याले दोनों में से नहीं पी सकते; ख़ुदावन्द के दस्तरख़्वान और शयातीन के दस्तरख़्वान दोनों पर शरीक नहीं हो सकते।
22. क्या हम ख़ुदावन्द की ग़ैरत को जोश दिलाते हैं? क्या हम उस से ताक़तवर हैं? [PE][PS]
23. सब चीज़ें जाएज़ तो हैं, मगर सब चीज़ें मुफ़ीद नहीं; जाएज़ तो हैं मगर तरक़्क़ी का ज़रिया नहीं।
24. कोई अपनी बेहतरी न ढूँडे बल्कि दूसरे की। [PE][PS]
25. जो कुछ क़स्साबों की दुकानों में बिकता है वो खाओ और दीनी इम्तियाज़ की वजह से कुछ न पूछो।
26. “क्यूँकि ज़मीन और उसकी मा'मूरी ख़ुदावन्द की है।”
27. अगर बे'ईमानों में से कोई तुम्हारी दा'वत करे और तुम जाने पर राज़ी हो तो जो कुछ तुम्हारे आगे रख्खा जाए उसे खाओ और दीनी इम्तियाज़ की वजह से कुछ न पूछो। [PE][PS]
28. लेकिन अगर कोई तुम से कहे; ये क़ुर्बानी का गोश्त है, तो उस की वजह से न खाओ।
29. दीनी इम्तियाज़ से मेरा मतलब तेरा इम्तियाज़ नहीं बल्कि उस दूसरे का; भला मेरी आज़ादी दूसरे शख़्स के इम्तियाज़ से क्यूँ परखी जाए?
30. अगर मैं शुक्र कर के खाता हूँ तो जिस चीज़ पर शुक्र करता हूँ उसकी वजह से किस लिए बदनाम किया जाता हूँ? [PE][PS]
31. पस तुम खाओ या पियो जो कुछ करो ख़ुदा के जलाल के लिए करो।
32. तुम न यहूदियों के लिए ठोकर का ज़रिया बनो; न यूनानियों के लिए, न ख़ुदा की कलीसिया के लिए।
33. चुनाँचे मैं भी सब बातों में सब को ख़ुश करता हूँ और अपना नहीं बल्कि बहुतों का फ़ाइदा ढूँडता हूँ, ताकि वो नजात पाएँ। [PE]

Notes

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کُرنتھِیوں ۱ 10:1
1. भाइयों! मैं तुम्हारा इस से नावाक़िफ़ रहना नहीं चाहता कि हमारे सब बाप दादा बादल के नीचे थे; और सब के सब लाल समुन्दर में से गुज़रे।
2. और सब ही ने उस बादल और समुन्दर में मूसा का बपतिस्मा लिया।
3. और सब ने एक ही रूहानी ख़ुराक खाई।
4. और सब ने एक ही रूहानी पानी पिया क्यूँकि वो उस रूहानी चट्टान में से पानी पीते थे जो उन के साथ साथ चलती थी और वो चट्टान मसीह था। PEPS
5. मगर उन में अक्सरों से ख़ुदा राज़ी हुआ चुनाँचे वो वीराने में ढेर हो गए।
6. ये बातें हमारे लिए इबरत ठहरीं, ताकि हम बुरी चीज़ों की ख़्वाहिश करें, जैसे उन्हों ने की। PEPS
7. और तुम बुतपरस्त बनो जिस तरह कुछ उनमें से बन गए थे चुनाँचे लिखा है। “लोग खाने पीने को बैठे फिर नाचने कूदने को उठे।”
8. और हम हरामकारी करें जिस तरह उनमें से कुछ ने की, और एक ही दिन में तेईस हज़ार मर गए। PEPS
9. और हम ख़ुदा वन्द की आज़माइश करें जैसे उन में से कुछ ने की और साँपों ने उन्हें हलाक किया।
10. और तुम बड़बड़ाओ नहीं जिस तरह उन में से कुछ बड़बड़ाए और हलाक करने वाले से हलाक हुए। PEPS
11. ये बातें उन पर 'इबरत के लिए वाक़े' हुईं और हम आख़री ज़माने वालों की नसीहत के वास्ते लिखी गईं।
12. पस जो कोई अपने आप को क़ाईम समझता है, वो ख़बरदार रहे के गिर पड़े।
13. तुम किसी ऐसी आज़माइश में पड़े जो इंसान की आज़माइश से बाहर हो ख़ुदा सच्चा है वो तुम को तुम्हारी ताक़त से ज़्यादा आज़माइश में पड़ने देगा, बल्कि आज़माइश के साथ निकलने की राह भी पैदा कर देगा, ताकि तुम बर्दाश्त कर सको। PEPS
14. इस वजह से मेरे प्यारो! बुतपरस्ती से भागो।
15. मैं अक़्लमन्द जानकर तुम से कलाम करता हूँ; जो मैं कहता हूँ, तुम आप उसे परखो।
16. वो बर्क़त का प्याला जिस पर हम बर्क़त चाहते हैं क्या मसीह के ख़ून की शराकत नहीं? वो रोटी जिसे हम तोड़ते हैं क्या मसीह के बदन की शराकत नहीं?
17. चूँकि रोटी एक ही है इस लिए हम जो बहुत से हैं एक बदन हैं क्यूँकि हम सब उसी एक रोटी में शरीक होते हैं। PEPS
18. जो जिस्म के ऐ'तिबार से इस्राईली हैं उन पर नज़र करो क्या क़ुर्बानी का गोश्त खानेवाले क़ुर्बानगाह के शरीक नहीं?
19. पस मैं क्या ये कहता हूँ कि बुतों की क़ुर्बानी कुछ चीज़ है या बुत कुछ चीज़ है? PEPS
20. नहीं बल्कि मैं ये कहता हूँ कि जो क़ुर्बानी ग़ैर क़ौमें करती हैं शयातीन के लिए क़ुर्बानी करती हैं; कि ख़ुदा के लिए, और मैं नहीं चाहता कि तुम शयातीन के शरीक हो।
21. तुम ख़ुदावन्द के प्याले और शयातीन के प्याले दोनों में से नहीं पी सकते; ख़ुदावन्द के दस्तरख़्वान और शयातीन के दस्तरख़्वान दोनों पर शरीक नहीं हो सकते।
22. क्या हम ख़ुदावन्द की ग़ैरत को जोश दिलाते हैं? क्या हम उस से ताक़तवर हैं? PEPS
23. सब चीज़ें जाएज़ तो हैं, मगर सब चीज़ें मुफ़ीद नहीं; जाएज़ तो हैं मगर तरक़्क़ी का ज़रिया नहीं।
24. कोई अपनी बेहतरी ढूँडे बल्कि दूसरे की। PEPS
25. जो कुछ क़स्साबों की दुकानों में बिकता है वो खाओ और दीनी इम्तियाज़ की वजह से कुछ पूछो।
26. “क्यूँकि ज़मीन और उसकी मा'मूरी ख़ुदावन्द की है।”
27. अगर बे'ईमानों में से कोई तुम्हारी दा'वत करे और तुम जाने पर राज़ी हो तो जो कुछ तुम्हारे आगे रख्खा जाए उसे खाओ और दीनी इम्तियाज़ की वजह से कुछ पूछो। PEPS
28. लेकिन अगर कोई तुम से कहे; ये क़ुर्बानी का गोश्त है, तो उस की वजह से खाओ।
29. दीनी इम्तियाज़ से मेरा मतलब तेरा इम्तियाज़ नहीं बल्कि उस दूसरे का; भला मेरी आज़ादी दूसरे शख़्स के इम्तियाज़ से क्यूँ परखी जाए?
30. अगर मैं शुक्र कर के खाता हूँ तो जिस चीज़ पर शुक्र करता हूँ उसकी वजह से किस लिए बदनाम किया जाता हूँ? PEPS
31. पस तुम खाओ या पियो जो कुछ करो ख़ुदा के जलाल के लिए करो।
32. तुम यहूदियों के लिए ठोकर का ज़रिया बनो; यूनानियों के लिए, ख़ुदा की कलीसिया के लिए।
33. चुनाँचे मैं भी सब बातों में सब को ख़ुश करता हूँ और अपना नहीं बल्कि बहुतों का फ़ाइदा ढूँडता हूँ, ताकि वो नजात पाएँ। PE
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