غزلُ الغزلات 2 : 1 (IRVUR)
{जवान औरत } मैं शारून की नर्गिस, और वादियों की सोसन हूँ।
غزلُ الغزلات 2 : 2 (IRVUR)
जैसी सोसन झाड़ियों में, वैसी ही मेरी महबूबा कुँवारियों में है।
غزلُ الغزلات 2 : 3 (IRVUR)
जैसा सेब का दरख़्त जंगल के दरख़्तों में, वैसा ही मेरा महबूब नौजवानों में है। मैं निहायत शादमानी से उसके साये में बैठी, और उसका फल मेरे मुँह में मीठा लगा।
غزلُ الغزلات 2 : 4 (IRVUR)
वह मुझे मयख़ाने के अंदर लाया, और उसकी मुहब्बत का झंडा मेरे ऊपर था।
غزلُ الغزلات 2 : 5 (IRVUR)
किशमिश से मुझे क़रार दो, सेबों से मुझे ताज़ादम करो, क्यूँकि मैं इश्क की बीमार हूँ।
غزلُ الغزلات 2 : 6 (IRVUR)
उसका बायाँ हाथ मेरे सिर के नीचे है, और उसका दहना हाथ मुझे गले से लगाता है।
غزلُ الغزلات 2 : 7 (IRVUR)
ऐ येरूशलेम की बेटियो, मैं तुम को ग़ज़ालों और मैदान की हिरनीयों की क़सम देती हूँ तुम मेरे प्यारे को न जगाओ न उठाओ, जब तक कि वह उठना न चाहे।
غزلُ الغزلات 2 : 8 (IRVUR)
मेरे महबूब की आवाज़! देख, वह आ रहा है। पहाड़ों पर से कूदता और टीलों पर से फाँदता हुआ चला आता है।
غزلُ الغزلات 2 : 9 (IRVUR)
मेरा महबूब आहू या जवान ग़ज़ाल की तरह है। देख, वह हमारी दीवार के पीछे खड़ा है, वह खिड़कियों से झाँकता है, वह झाड़ियों से ताकता है।
غزلُ الغزلات 2 : 10 (IRVUR)
“मेरे महबूब ने मुझ से बातें कीं और कहा, उठ मेरी प्यारी, मेरी नाज़नीन चली आ!
غزلُ الغزلات 2 : 11 (IRVUR)
क्यूँकि देख जाड़ा गुज़र गया, मेंह बरस चुका और निकल गया।
غزلُ الغزلات 2 : 12 (IRVUR)
ज़मीन पर फूलों की बहार है, परिन्दों के चहचहाने का वक़्त आ पहुँचा, और हमारी सरज़मीन में कुमरियों की आवाज़ सुनाई देने लगी।
غزلُ الغزلات 2 : 13 (IRVUR)
अंजीर के दरख़्तों में हरे अंजीर पकने लगे, और ताकें फूलने लगीं; उनकी महक फैल रही है। इसलिए उठ मेरी प्यारी, मेरी जमीला, चली आ।
غزلُ الغزلات 2 : 14 (IRVUR)
ऐ मेरी कबूतरी, जो चट्टानों की दरारों में और कड़ाड़ों की आड़ में छिपी है; मुझे अपना चेहरा दिखा, मुझे अपनी आवाज़ सुना, क्यूँकि तू माहजबीन और तेरी आवाज़ मीठी है।
غزلُ الغزلات 2 : 15 (IRVUR)
हमारे लिए लोमड़ियों को पकड़ो, उन लोमड़ी बच्चों को जो खजूर के बाग़ को ख़राब करते हैं; क्यूँकि हमारी ताकों में फूल लगे हैं।”
غزلُ الغزلات 2 : 16 (IRVUR)
मेरा महबूब मेरा है और मैं उसकी हूँ, वह सोसनों के बीच चराता है।
غزلُ الغزلات 2 : 17 (IRVUR)
जब तक दिन ढले और साया बढ़े, तू फिर आ ऐ मेरे महबूब। तू ग़ज़ाल या जवान हिरन की तरह होकर आ, जो बातर के पहाड़ों पर है।
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