زبُور 55 : 1 (IRVUR)
ऐ खु़दा! मेरी दुआ पर कान लगा; और मेरी मिन्नत से मुँह न फेर।
زبُور 55 : 2 (IRVUR)
मेरी तरफ़ मुतवज्जिह हो और मुझे जवाब दे; मैं ग़म से बेक़रार होकर कराहता हूँ।
زبُور 55 : 3 (IRVUR)
दुश्मन की आवाज़ से, और शरीर के जु़ल्म की वजह; क्यूँकि वह मुझ पर बदी लादते, और क़हर में मुझे सताते हैं।
زبُور 55 : 4 (IRVUR)
मेरा दिल मुझ में बेताब है; और मौत का हौल मुझ पर छा गया है।
زبُور 55 : 5 (IRVUR)
ख़ौफ़ और कपकपी मुझ पर तारी है, डर ने मुझे दबा लिया है;
زبُور 55 : 6 (IRVUR)
और मैंने कहा, “काश कि कबूतर की तरह मेरे पर होते तो मैं उड़ जाता और आराम पाता!
زبُور 55 : 7 (IRVUR)
फिर तो मैं दूर निकल जाता, और वीरान में बसेरा करता। सिलाह
زبُور 55 : 8 (IRVUR)
मैं आँधी के झोंके और तूफ़ान से, किसी पनाह की जगह में भाग जाता।”
زبُور 55 : 9 (IRVUR)
ऐ ख़ुदावन्द! उनको हलाक कर, और उनकी ज़बान में तफ़रिक़ा डाल; क्यूँकि मैंने शहर में जु़ल्म और झगड़ा देखा है।
زبُور 55 : 10 (IRVUR)
दिन रात वह उसकी फ़सील पर गश्त लगाते हैं; बदी और फ़साद उसके अंदर हैं।
زبُور 55 : 11 (IRVUR)
शरारत उसके बीच में बसी हुई है; सितम और फ़रेब उसके कूचों से दूर नहीं होते।
زبُور 55 : 12 (IRVUR)
जिसने मुझे मलामत की वह दुश्मन न था, वरना मैं उसको बर्दाश्त कर लेता; और जिसने मेरे ख़िलाफ़ तकब्बुर किया वह मुझ से 'अदावत रखने वाला न था, नहीं तो मैं उससे छिप जाता।
زبُور 55 : 13 (IRVUR)
बल्कि वह तो तू ही था जो मेरा हमसर, मेरा रफ़ीक और दिली दोस्त था।
زبُور 55 : 14 (IRVUR)
हमारी आपसी गुफ़्तगू शीरीन थी; और हुजूम के साथ ख़ुदा के घर में फिरते थे।
زبُور 55 : 15 (IRVUR)
उनकी मौत अचानक आ दबाए; वह जीते जी पाताल में उतर जाएँ:क्यूँकि शरारत उनके घरों में और उनके अन्दर है।
زبُور 55 : 16 (IRVUR)
लेकिन मैं तो ख़ुदा को पुकारूँगा; और ख़ुदावन्द मुझे बचा लेगा।
زبُور 55 : 17 (IRVUR)
सुबह — ओ — शाम और दोपहर को मैं फ़रियाद करूँगा और कराहता रहूँगा, और वह मेरी आवाज़ सुन लेगा।
زبُور 55 : 18 (IRVUR)
उसने उस लड़ाई से जो मेरे ख़िलाफ़ थी, मेरी जान को सलामत छुड़ा लिया। क्यूँकि मुझसे झगड़ा करने वाले बहुत थे।
زبُور 55 : 19 (IRVUR)
ख़ुदा जो क़दीम से है, सुन लेगा और उनको जवाब देगा। यह वह हैं जिनके लिए इन्क़लाब नहीं, और जो ख़ुदा से नहीं डरते।
زبُور 55 : 20 (IRVUR)
उस शख़्स ने ऐसों पर हाथ बढ़ाया है, जो उससे सुल्ह रखते थे। उसने अपने 'अहद को तोड़ दिया है।
زبُور 55 : 21 (IRVUR)
उसका मुँह मख्खन की तरह चिकना था, लेकिन उसके दिल में जंग थी। उसकी बातें तेल से ज़्यादा मुलायम, लेकिन नंगी तलवारें थीं।
زبُور 55 : 22 (IRVUR)
अपना बोझ ख़ुदावन्द पर डाल दे, वह तुझे संभालेगा। वह सादिक़ को कभी जुम्बिश न खाने देगा।
زبُور 55 : 23 (IRVUR)
लेकिन ऐ ख़ुदा! तू उनको हलाकत के गढ़े में उतारेगा। खू़नी और दग़ाबाज़ अपनी आधी उम्र तक भी ज़िन्दा न रहेंगे। लेकिन मैं तुझ पर भरोसा करूँगा। [PE]

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