زبُور 120 : 1 (IRVUR)
मैंने मुसीबत में ख़ुदावन्द से फ़रियाद की, और उसने मुझे जवाब दिया।
زبُور 120 : 2 (IRVUR)
झूटे होंटों और दग़ाबाज़ ज़बान से, ऐ ख़ुदावन्द, मेरी जान को छुड़ा।
زبُور 120 : 3 (IRVUR)
ऐ दग़ाबाज़ ज़बान, तुझे क्या दिया जाए? और तुझ से और क्या किया जाए?
زبُور 120 : 4 (IRVUR)
ज़बरदस्त के तेज़ तीर, झाऊ के अंगारों के साथ।
زبُور 120 : 5 (IRVUR)
मुझ पर अफ़सोस कि मैं मसक में बसता, और क़ीदार के ख़ैमों में रहता हूँ।
زبُور 120 : 6 (IRVUR)
सुलह के दुश्मन के साथ रहते हुए, मुझे बड़ी मुद्दत हो गई।
زبُور 120 : 7 (IRVUR)
मैं तो सुलह दोस्त हूँ। लेकिन जब बोलता हूँ तो वह जंग पर आमादा हो जाते हैं।

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