لُوقا 6 : 1 (IRVUR)
फिर सबत के दिन यूँ हुआ कि वो खेतों में से होकर जा रहा था, और उसके शागिर्द बालें तोड़ — तोड़ कर और हाथों से मल — मलकर खाते जाते थे।
لُوقا 6 : 2 (IRVUR)
और फ़रीसियों में से कुछ लोग कहने लगे, “तुम वो काम क्यूँ करते हो जो सबत के दिन करना ठीक नहीं।”
لُوقا 6 : 3 (IRVUR)
ईसा ने जवाब में उनसे कहा, “क्या तुम ने ये भी नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उसके साथी भूखे थे तो उसने क्या किया?
لُوقا 6 : 4 (IRVUR)
वो क्यूँकर ख़ुदा के घर में गया, और नज़्र की रोटियाँ लेकर खाई जिनको खाना काहिनों के सिवा और किसी को ठीक नहीं, और अपने साथियों को भी दीं।”
لُوقا 6 : 5 (IRVUR)
फिर उसने उनसे कहा, “इब्न — ए — आदम सबत का मालिक है।” [PE][PS]
لُوقا 6 : 6 (IRVUR)
और यूँ हुआ कि किसी और सबत को वो 'इबादतख़ाने में दाख़िल होकर ता'लीम देने लगा। वहाँ एक आदमी था जिसका दाहिना हाथ सूख गया था।
لُوقا 6 : 7 (IRVUR)
और आलिम और फ़रीसी उसकी ताक में थे, कि आया सबत के दिन अच्छा करता है या नहीं, ताकि उस पर इल्ज़ाम लगाने का मौक़ा' पाएँ।
لُوقا 6 : 8 (IRVUR)
मगर उसको उनके ख़याल मा'लूम थे; पस उसने उस आदमी से जिसका हाथ सूखा था कहा, “उठ, और बीच में खड़ा हो!“
لُوقا 6 : 9 (IRVUR)
ईसा ने उनसे कहा, “मैं तुम से ये पूछता हूँ कि आया सबत के दिन नेकी करना ठीक है या बदी करना? जान बचाना या हलाक करना?”
لُوقا 6 : 10 (IRVUR)
और उन सब पर नज़र करके उससे कहा, “अपना हाथ बढ़ा!” उसने बढ़ाया और उसका हाथ दुरुस्त हो गया।
لُوقا 6 : 11 (IRVUR)
वो आपे से बाहर होकर एक दूसरे से कहने लगे कि हम ईसा के साथ क्या करें। [PE][PS]
لُوقا 6 : 12 (IRVUR)
और उन दिनों में ऐसा हुआ कि वो पहाड़ पर दुआ करने को निकला और ख़ुदा से दुआ करने में सारी रात गुज़ारी।
لُوقا 6 : 13 (IRVUR)
जब दिन हुआ तो उसने अपने शागिर्दों को पास बुलाकर उनमें से बारह चुन लिए और उनको रसूल का लक़ब दिया:
لُوقا 6 : 14 (IRVUR)
या'नी शमौन जिसका नाम उसने पतरस भी रख्खा, और अन्द्रियास, और या'क़ूब, और यूहन्ना, और फ़िलिप्पुस, और बरतुल्माई,
لُوقا 6 : 15 (IRVUR)
और मत्ती, और तोमा, और हलफ़ी का बेटा या'क़ूब, और शमौन जो ज़ेलोतेस कहलाता था,
لُوقا 6 : 16 (IRVUR)
और या'क़ूब का बेटा यहुदाह, और यहुदाह इस्करियोती जो उसका पकड़वाने वाला हुआ। [PE][PS]
لُوقا 6 : 17 (IRVUR)
और वो उनके साथ उतर कर हमवार जगह पर खड़ा हुआ, और उसके शागिर्दों की बड़ी जमा'अत और लोगों की बड़ी भीड़ वहाँ थी, जो सारे यहुदिया और येरूशलेम और सूर और सैदा के बहरी किनारे से उसकी सुनने और अपनी बीमारियों से शिफ़ा पाने के लिए उसके पास आई थी।
لُوقا 6 : 18 (IRVUR)
और जो बदरूहों से दुःख पाते थे वो अच्छे किए गए।
لُوقا 6 : 19 (IRVUR)
और सब लोग उसे छूने की कोशिश करते थे, क्यूँकि क़ूव्वत उससे निकलती और सब को शिफ़ा बख़्शती थी। [PE][PS]
لُوقا 6 : 20 (IRVUR)
फिर उसने अपने शागिर्दों की तरफ़ नज़र करके कहा, [QBR] “मुबारिक़ हो तुम जो ग़रीब हो, [QBR] क्यूँकि ख़ुदा की बादशाही तुम्हारी है।” [QBR]
لُوقا 6 : 21 (IRVUR)
“मुबारिक़ हो तुम जो अब भूखे हो, [QBR] क्यूँकि आसूदा होगे [QBR] “मुबारिक़ हो तुम जो अब रोते हो, [QBR] क्यूँकि हँसोगे [QBR]
لُوقا 6 : 22 (IRVUR)
“जब इब्न — ए — आदम की [QBR] वजह से लोग तुम से 'दुश्मनी रख्खेंगे, [QBR] और तुम्हें निकाल देंगे, और ला'न — ता'न करेंगे।” [PE][PS]
لُوقا 6 : 23 (IRVUR)
“उस दिन ख़ुश होना और ख़ुशी के मारे उछलना, इसलिए कि देखो आसमान पर तुम्हारा अज्र बड़ा है; क्यूँकि उनके बाप — दादा नबियों के साथ भी ऐसा ही किया करते थे। [QBR]
لُوقا 6 : 24 (IRVUR)
“मगर अफ़सोस तुम पर जो दौलतमन्द हो, [QBR] क्यूँकि तुम अपनी तसल्ली पा चुके। [QBR]
لُوقا 6 : 25 (IRVUR)
“अफ़सोस तुम पर जो अब सेर हो, [QBR] क्यूँकि भूखे होगे। [QBR] “अफ़सोस तुम पर जो अब हँसते हो, [QBR] क्यूँकि मातम करोगे और रोओगे। [QBR]
لُوقا 6 : 26 (IRVUR)
“अफ़सोस तुम पर जब सब लोग तुम्हें अच्छा कहें, [QBR] क्यूँकि उनके बाप — दादा झूठे नबियों के साथ भी ऐसा ही किया करते थे।” [PE][PS]
لُوقا 6 : 27 (IRVUR)
“लेकिन मैं सुनने वालों से कहता हूँ कि अपने दुश्मनों से मुहब्बत रख्खो, जो तुम से 'दुश्मनी रख्खें उसके साथ नेकी करो।
لُوقا 6 : 28 (IRVUR)
जो तुम पर ला'नत करें उनके लिए बर्क़त चाहो, जो तुमसे नफ़रत करें उनके लिए दुआ करो।
لُوقا 6 : 29 (IRVUR)
जो तेरे एक गाल पर तमाचा मारे दूसरा भी उसकी तरफ़ फेर दे, और जो तेरा चोग़ा ले उसको कुरता लेने से भी मनह' न कर।
لُوقا 6 : 30 (IRVUR)
जो कोई तुझ से माँगे उसे दे, और जो तेरा माल ले ले उससे तलब न कर।
لُوقا 6 : 31 (IRVUR)
और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।” [PE][PS]
لُوقا 6 : 32 (IRVUR)
“अगर तुम अपने मुहब्बत रखनेवालों ही से मुहब्बत रख्खो, तो तुम्हारा क्या अहसान है? क्यूँकि गुनाहगार भी अपने मुहब्बत रखनेवालों से मुहब्बत रखते हैं।
لُوقا 6 : 33 (IRVUR)
और अगर तुम उन ही का भला करो जो तुम्हारा भला करें, तो तुम्हारा क्या अहसान है? क्यूँकि गुनहगार भी ऐसा ही करते हैं।
لُوقا 6 : 34 (IRVUR)
और अगर तुम उन्हीं को क़र्ज़ दो जिनसे वसूल होने की उम्मीद रखते हो, तो तुम्हारा क्या अहसान है? गुनहगार भी गुनहगारों को क़र्ज़ देते हैं ताकि पूरा वसूल कर लें
لُوقا 6 : 35 (IRVUR)
मगर तुम अपने दुश्मनों से मुहब्बत रख्खो, और नेकी करो, और बग़ैर न उम्मीद हुए क़र्ज़ दो तो तुम्हारा अज्र बड़ा होगा और तुम ख़ुदा के बेटे ठहरोगे, क्यूँकि वो न — शुक्रों और बदों पर भी महरबान है।
لُوقا 6 : 36 (IRVUR)
जैसा तुम्हारा आसमानी बाप रहीम है तुम भी रहम दिल हो।” [PE][PS]
لُوقا 6 : 37 (IRVUR)
“'ऐबजोई ना करो, तुम्हारी भी 'ऐबजोई न की जाएगी। मुजरिम न ठहराओ, तुम भी मुजरिम ना ठहराए जाओगे। इज्ज़त दो, तुम भी इज्ज़त पाओगे।
لُوقا 6 : 38 (IRVUR)
दिया करो, तुम्हें भी दिया जाएगा। अच्छा पैमाना दाब — दाब कर और हिला — हिला कर और लबरेज़ करके तुम्हारे पल्ले में डालेंगे, क्यूँकि जिस पैमाने से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा।“ [PE][PS]
لُوقا 6 : 39 (IRVUR)
“और उसने उनसे एक मिसाल भी दी “क्या अंधे को अंधा राह दिखा सकता है? क्या दोनों गड्ढे में न गिरेंगे?”
لُوقا 6 : 40 (IRVUR)
शागिर्द अपने उस्ताद से बड़ा नहीं, बल्कि हर एक जब कामिल हुआ तो अपने उस्ताद जैसा होगा।
لُوقا 6 : 41 (IRVUR)
तू क्यूँ अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है, और अपनी आँख के शहतीर पर ग़ौर नहीं करता?
لُوقا 6 : 42 (IRVUR)
और जब तू अपनी आँख के शहतीर को नहीं देखता तो अपने भाई से क्यूँकर कह सकता है, कि भाई ला उस तिनके को जो तेरी आँख में है निकाल दूँ? ऐ रियाकार। पहले अपनी आँख में से तो शहतीर निकाल, फिर उस तिनके को जो तेरे भाई की आँख में है अच्छी तरह देखकर निकाल सकेगा। [PE][PS]
لُوقا 6 : 43 (IRVUR)
“क्यूँकि कोई अच्छा दरख़्त नहीं जो बुरा फल लाए, और न कोई बुरा दरख़्त है जो अच्छा फल लाए।”
لُوقا 6 : 44 (IRVUR)
हर दरख़्त अपने फल से पहचाना जाता है, क्यूँकि झाड़ियों से अंजीर नहीं तोड़ते और न झड़बेरी से अंगूर।
لُوقا 6 : 45 (IRVUR)
“अच्छा आदमी अपने दिल के अच्छे ख़ज़ाने से अच्छी चीज़ें निकालता है, और बुरा आदमी बुरे ख़ज़ाने से बुरी चीज़ें निकालता है; क्यूँकि जो दिल में भरा है वही उसके मुँह पर आता है।” [PE][PS]
لُوقا 6 : 46 (IRVUR)
“जब तुम मेरे कहने पर 'अमल नहीं करते तो क्यूँ मुझे 'ख़ुदावन्द, ख़ुदावन्द' कहते हो।
لُوقا 6 : 47 (IRVUR)
जो कोई मेरे पास आता और मेरी बातें सुनकर उन पर 'अमल करता है, मैं तुम्हें बताता हूँ कि वो किसकी तरह है।
لُوقا 6 : 48 (IRVUR)
वो उस आदमी की तरह है जिसने घर बनाते वक़्त ज़मीन गहरी खोदकर चट्टान पर बुनियाद डाली, जब तूफ़ान आया और सैलाब उस घर से टकराया, तो उसे हिला न सका क्यूँकि वो मज़बूत बना हुआ था।
لُوقا 6 : 49 (IRVUR)
लेकिन जो सुनकर 'अमल में नहीं लाता वो उस आदमी की तरह है जिसने ज़मीन पर घर को बे — बुनियाद बनाया, जब सैलाब उस पर ज़ोर से आया तो वो फ़ौरन गिर पड़ा और वो घर बिल्कुल बरबाद हुआ।” [PE]

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