لُوقا 18 : 1 (IRVUR)
फिर उसने इस ग़रज़ से कि हर वक़्त दुआ करते रहना और हिम्मत हारना न चाहिए, उसने ये मिसाल कही:
لُوقا 18 : 2 (IRVUR)
“किसी शहर में एक क़ाज़ी था, न वो ख़ुदा से डरता, न आदमी की कुछ परवा करता था।
لُوقا 18 : 3 (IRVUR)
और उसी शहर में एक बेवा थी, जो उसके पास आकर ये कहा करती थी, 'मेरा इन्साफ़ करके मुझे मुद्द'ई से बचा।
لُوقا 18 : 4 (IRVUR)
उसने कुछ 'अरसे तक तो न चाहा, लेकिन आख़िर उसने अपने जी में कहा, 'गरचे मैं न ख़ुदा से डरता और न आदमियों की कुछ परवा करता हूँ।
لُوقا 18 : 5 (IRVUR)
तोभी इसलिए कि ये बेवा मुझे सताती है, मैं इसका इन्साफ़ करूँगा; ऐसा न हो कि ये बार — बार आकर आख़िर को मेरी नाक में दम करे।” [PE][PS]
لُوقا 18 : 6 (IRVUR)
ख़ुदावन्द ने कहा, “सुनो ये बेइन्साफ़ क़ाज़ी क्या कहता है?
لُوقا 18 : 7 (IRVUR)
पस क्या ख़ुदा अपने चुने हुए का इन्साफ़ न करेगा, जो रात दिन उससे फ़रियाद करते हैं?
لُوقا 18 : 8 (IRVUR)
मैं तुम से कहता हूँ कि वो जल्द उनका इन्साफ़ करेगा। तोभी जब इब्न — ए — आदम आएगा, तो क्या ज़मीन पर ईमान पाएगा?” [PE][PS]
لُوقا 18 : 9 (IRVUR)
फिर उसने कुछ लोगों से जो अपने पर भरोसा रखते थे, कि हम रास्तबाज़ हैं और बाक़ी आदमियों को नाचीज़ जानते थे, ये मिसाल कही,
لُوقا 18 : 10 (IRVUR)
“दो शख़्स हैकल में दू'आ करने गए: एक फ़रीसी, दूसरा महसूल लेनेवाला।
لُوقا 18 : 11 (IRVUR)
फ़रीसी खड़ा होकर अपने जी में यूँ दुआ करने लगा, 'ऐ ख़ुदा मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि बाक़ी आदमियों की तरह ज़ालिम, बेइन्साफ़, ज़िनाकार या इस महसूल लेनेवाले की तरह नहीं हूँ।
لُوقا 18 : 12 (IRVUR)
मैं हफ़्ते में दो बार रोज़ा रखता, और अपनी सारी आमदनी पर दसवाँ हिस्सा देता हूँ।” [PE][PS]
لُوقا 18 : 13 (IRVUR)
“लेकिन महसूल लेने वाले ने दूर खड़े होकर इतना भी न चाहा कि आसमान की तरफ़ आँख उठाए, बल्कि छाती पीट पीट कर कहा ऐ ख़ुदा। मुझ गुनहगार पर रहम कर।”
لُوقا 18 : 14 (IRVUR)
“मैं तुम से कहता हूँ कि ये शख़्स दूसरे की निस्बत रास्तबाज़ ठहरकर अपने घर गया, क्यूँकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा वो छोटा किया जाएगा और जो अपने आपको छोटा बनाएगा वो बड़ा किया जाएगा।” [PE][PS]
لُوقا 18 : 15 (IRVUR)
फिर लोग अपने छोटे बच्चों को भी उसके पास लाने लगे ताकि वो उनको छूए; और शागिर्दों ने देखकर उनको झिड़का।
لُوقا 18 : 16 (IRVUR)
मगर ईसा ने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो, और उन्हें मनह' न करो; क्यूँकि ख़ुदा की बादशाही ऐसों ही की है।
لُوقا 18 : 17 (IRVUR)
मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई ख़ुदा की बादशाही को बच्चे की तरह क़ुबूल न करे, वो उसमें हरगिज़ दाख़िल न होगा।” [PE][PS]
لُوقا 18 : 18 (IRVUR)
फिर किसी सरदार ने उससे ये सवाल किया, ऐ उस्ताद! मैं क्या करूँ ताकि हमेशा की ज़िन्दगी का वारिस बनूँ।
لُوقا 18 : 19 (IRVUR)
ईसा ने उससे कहा, “तू मुझे क्यूँ नेक कहता है? कोई नेक नहीं, मगर एक या'नी ख़ुदा।
لُوقا 18 : 20 (IRVUR)
तू हुक्मों को जानता है: ज़िना न कर, ख़ून न कर, चोरी न कर, झूठी गवाही न दे; अपने बाप और माँ की इज़्ज़त कर।”
لُوقا 18 : 21 (IRVUR)
उसने कहा, मैंने लड़कपन से इन सब पर 'अमल किया है।”
لُوقا 18 : 22 (IRVUR)
ईसा ने ये सुनकर उससे कहा, “अभी तक तुझ में एक बात की कमी है, अपना सब कुछ बेचकर ग़रीबों को बाँट दे; तुझे आसमान पर ख़ज़ाना मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।”
لُوقا 18 : 23 (IRVUR)
ये सुन कर वो बहुत ग़मगीन हुआ, क्यूँकि बड़ा दौलतमन्द था। [PE][PS]
لُوقا 18 : 24 (IRVUR)
ईसा ने उसको देखकर कहा, “दौलतमन्द का ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल होना कैसा मुश्किल है!
لُوقا 18 : 25 (IRVUR)
क्यूँकि ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना इससे आसान है, कि दौलतमन्द ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल हो।”
لُوقا 18 : 26 (IRVUR)
सुनने वालो ने कहा, तो फिर कौन नजात पा सकता है?
لُوقا 18 : 27 (IRVUR)
उसने कहा, “जो इंसान से नहीं हो सकता, वो ख़ुदा से हो सकता है।”
لُوقا 18 : 28 (IRVUR)
पतरस ने कहा, देख! हम तो अपना घर — बार छोड़कर तेरे पीछे हो लिए हैं।”
لُوقا 18 : 29 (IRVUR)
उसने उनसे कहा, “'मैं तुम से सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं जिसने घर या बीवी या भाइयों या माँ बाप या बच्चों को ख़ुदा की बादशाही की ख़ातिर छोड़ दिया हो;
لُوقا 18 : 30 (IRVUR)
और इस ज़माने में कई गुना ज़्यादा न पाए, और आने वाले 'आलम में हमेशा की ज़िन्दगी।” [PE][PS]
لُوقا 18 : 31 (IRVUR)
फिर उसने उन बारह को साथ लेकर उनसे कहा, “देखो, हम येरूशलेम को जाते हैं, और जितनी बातें नबियों के ज़रिए लिखी गईं हैं, इब्न — ए — आदम के हक़ में पूरी होंगी।
لُوقا 18 : 32 (IRVUR)
क्यूँकि वो ग़ैर क़ौम वालों के हवाले किया जाएगा; और लोग उसको ठठ्ठों में उड़ाएँगे और बे'इज़्ज़त करेंगे, और उस पर थूकेंगे,
لُوقا 18 : 33 (IRVUR)
और उसको कोड़े मारेंगे और क़त्ल करेंगे और वो तीसरे दिन जी उठेगा।”
لُوقا 18 : 34 (IRVUR)
लेकिन उन्होंने इनमें से कोई बात न समझी, और ये कलाम उन पर छिपा रहा और इन बातों का मतलब उनकी समझ में न आया। [PE][PS]
لُوقا 18 : 35 (IRVUR)
जो वो चलते — चलते यरीहू के नज़दीक पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि एक अन्धा रास्ते के किनारे बैठा हुआ भीख माँग रहा था।
لُوقا 18 : 36 (IRVUR)
वो भीड़ के जाने की आवाज़ सुनकर पूछने लगा, ये क्या हो रहा है?”
لُوقا 18 : 37 (IRVUR)
उन्होंने उसे ख़बर दी, “ईसा नासरी जा रहा है।”
لُوقا 18 : 38 (IRVUR)
उसने चिल्लाकर कहा, “ऐ ईसा इब्न — ए — दाऊद, मुझ पर रहम कर!”
لُوقا 18 : 39 (IRVUR)
जो आगे जाते थे, वो उसको डाँटने लगे कि चुप रह; मगर वो और भी चिल्लाया, “'ऐ इब्न — ए — दा, ऊद, मुझ पर रहम कर!”
لُوقا 18 : 40 (IRVUR)
'ईसा ने खड़े होकर हुक्म दिया कि उसको मेरे पास ले आओ, जब वो नज़दीक आया तो उसने उससे ये पूंछा।
لُوقا 18 : 41 (IRVUR)
“तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?” उसने कहा, “ऐ ख़ुदावन्द! मैं देखने लगूं।”
لُوقا 18 : 42 (IRVUR)
ईसा ने उससे कहा, “बीना हो जा, तेरे ईमान ने तुझे अच्छा किया,”
لُوقا 18 : 43 (IRVUR)
वो उसी वक़्त देखने लगा, और ख़ुदा की बड़ाई करता हुआ उसके पीछे हो लिया; और सब लोगों ने देखकर ख़ुदा की तारीफ़ की। [PE]

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