انجیل مقدس

خدا کا فضل تحفہ
1. शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम — बिन — यूसियाह के चौथे बरस में यह कलाम ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
2. कि “किताब का एक तूमार ले और वह सब कलाम जो मैंने इस्राईल और यहूदाह और तमाम क़ौमों के ख़िलाफ़ तुझ से किया, उस दिन से लेकर जब से मैं तुझ से कलाम करने लगा, या'नी यूसियाह के दिन से आज के दिन तक उसमें लिख।
3. शायद यहूदाह का घराना उस तमाम मुसीबत का हाल जो मैं उन पर लाने का इरादा रखता हूँ सुने, ताकि वह सब अपनी बुरे चाल चलन से बाज़ आएँ; और मैं उनकी बदकिरदारी और गुनाह को मु'आफ़ करूँ।”
4. तब यरमियाह ने बारूक — बिन — नेयिरियाह को बुलाया, और बारूक ने ख़ुदावन्द का वह सब कलाम जो उसने यरमियाह से किया था, उसकी ज़बानी किताब के उस तूमार में लिखा।
5. और यरमियाह ने बारूक को हुक्म दिया और कहा, मैं तो मजबूर हूँ, मैं ख़ुदावन्द के घर में नहीं जा सकता;
6. लेकिन तू जा और ख़ुदावन्द का वह कलाम जो तूने मेरे मुँह से इस तूमार में लिखा है, ख़ुदावन्द के घर में रोज़े के दिन लोगों को पढ़ कर सुना; और तमाम यहूदाह के लोगों को भी जो अपने शहरों से आए हों, तू वही कलाम पढ़ कर सुना।
7. शायद वह ख़ुदा के सामने मिन्नत करें और सब के सब अपनी बुरे चाल चलन से बाज़ आएँ, क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर — ओ — ग़ज़ब जिसका उसने इन लोगों के ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है, शदीद है।
8. और बारूक — बिन — नेयिरियाह ने सब कुछ जैसा यरमियाह नबी ने उसको फ़रमाया था वैसा ही किया, और ख़ुदावन्द के घर में ख़ुदावन्द का कलाम उस किताब से पढ़ कर सुनाया।
9. और शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम — बिन — यूसियाह के पाँचवें बरस के नौवें महीने में यूँ हुआ कि येरूशलेम के सब लोगों ने और उन सब ने जो यहूदाह के शहरों से येरूशलेम में आए थे, ख़ुदावन्द के सामने रोज़े का 'ऐलान किया।
10. तब बारूक ने किताब से यरमियाह की बातें, ख़ुदावन्द के घर में जमरियाह — बिन — साफ़न मुन्शी की कोठरी में ऊपर के सहन के बीच, ख़ुदावन्द के घर के नये फाटक के मदख़ल पर सब लोगों के सामने पढ़ सुनाईं।
11. जब मीकायाह — बिन — जमरियाह — बिनसाफ़न ने ख़ुदावन्द का वह सब कलाम जो उस किताब में था सुना,
12. तो वह उतर कर बादशाह के घर मुन्शी की कोठरी में गया, और सब हाकिम या'नी इलीसमा' मुन्शी, और दिलायाह बिन समयाह और इलनातन बिन अकबूर और जमरियाह बिन साफ़न और सिदक़ियाह — बिन — हननियाह, और सब हाकिम वहाँ बैठे थे।
13. तब मीकायाह ने वह सब बातें जो उसने सुनी थीं, जब बारूक किताब से पढ़ कर लोगों को सुनाता था, उनसे बयान कीं।
14. और सब हाकिम ने यहूदी — बिन — नतनियाह — बिन — सलमियाह — बिन — कूशी को बारूक के पास यह कहकर भेजा, कि “वह तूमार जो तूने लोगों को पढ़कर सुनाया है, अपने हाथ में ले और चला आ।” तब बारूक — बिन — नेयिरियाह वह तूमार लेकर उनके पास आया।
15. और उन्होंने उसे कहा, कि “अब बैठ जा और हमको यह पढ़ कर सुना।” और बारूक ने उनको पढ़कर सुनाया।
16. जब उन्होंने वह सब बातें सुनीं, तो डरकर एक दूसरे का मुँह ताकने लगे और बारूक से कहा कि “हम यक़ीनन यह सब बातें बादशाह से बयान करेंगे।”
17. और उन्होंने यह कह कर बारूक से पूछा, हम से कह कि तूने यह सब बातें उसकी ज़बानी क्यूँकर लिखीं?
18. तब बारूक ने उनसे कहा, “वह यह सब बातें मुझे अपने मुँह से कहता गया और मैं स्याही से किताब में लिखता गया।”
19. तब हाकिम ने बारूक से कहा, “जा, अपने आपको और यरमियाह को छिपा, और कोई न जाने कि तुम कहाँ हो।”
20. और वह बादशाह के पास सहन में गए, लेकिन उस तूमार को इलीसमा' मुन्शी की कोठरी में रख गए, और वह बातें बादशाह को कह सुनाईं।
21. तब बादशाह ने यहूदी को भेजा कि तूमार लाए, और वह उसे इलीसमा' मुन्शी की कोठरी में से ले आया। और यहूदी ने बादशाह और सब हाकिम को जो बादशाह के सामने खड़े थे, उसे पढ़कर सुनाया।
22. और बादशाह ज़मिस्तानी महल में बैठा था, क्यूँकि नवाँ महीना था और उसके सामने अंगेठी जल रही थी।
23. जब यहूदी ने तीन चार वर्क़ पढ़े, तो उसने उसे मुन्शी के क़लम तराश से काटा और अंगेठी की आग में डाल दिया, यहाँ तक कि तमाम तूमार अंगेठी की आग में भसम हो गया।
24. लेकिन वह न डरे, न उन्होंने अपने कपड़े फाड़े, न बादशाह ने न उसके मुलाज़िमों में से किसी ने जिन्होंने यह सब बातें सुनी थीं।
25. लेकिन इलनातन, और दिलायाह, और जमरियाह ने बादशाह से 'अर्ज़ की कि तूमार को न जलाए, लेकिन उसने उनकी एक न सुनी।
26. और बादशाह ने शाहज़ादे यरहमिएल को और शिरायाह — बिन अज़रिएल और सलमियाह बिन अबदिएल को हुक्म दिया कि बारूक मुन्शी और यरमियाह नबी को गिरफ़्तार करें, लेकिन ख़ुदावन्द ने उनको छिपाया।
27. और जब बादशाह तूमार और उन बातों को जो बारूक ने यरमियाह की ज़बानी लिखी थीं, जला चुका तो ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
28. कि “तू दूसरा तूमार ले, और उसमें वह सब बातें लिख जो पहले तूमार में थीं, जिसे शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम ने जला दिया।
29. और शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम से कह कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: तूने तूमार को जला दिया और कहा है, तू ने उसमें यूँ क्यूँ लिखा कि शाह — ए — बाबुल यक़ीनन आएगा और इस मुल्क को हलाक करेगा, और न इसमें इंसान बाक़ी छोड़ेगा न हैवान?”
30. इसलिए शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम के बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: उसकी नसल में से कोई न रहेगा जो दाऊद के तख़्त पर बैठे, और उसकी लाश फेंकी जाएगी, ताकि दिन की गर्मी में और रात को पाले में पड़ी रहे;
31. और मैं उसको और उसकी नसल को और उसके मुलाज़िमों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दूँगा। मैं उन पर और येरूशलेम के बाशिन्दों पर और यहूदाह के लोगों पर वह सब मुसीबत लाऊँगा, जिसका मैंने उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया लेकिन उन्होंने न सुना।
32. तब यरमियाह ने दूसरा तूमार लिया और बारूक — बिन — नेयिरियाह मुन्शी को दिया, और उसने उस किताब की सब बातें जिसे शाह — ए — यहूदाह यहूयक़ीम ने आग में जलाया था, यरमियाह की ज़बानी उसमें लिखीं और उनके अलावा वैसी ही और बहुत सी बातें उनमें बढ़ा दी गईं। [PE]

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یرمیاہ 36:12
1. शाह यहूदाह यहूयक़ीम बिन यूसियाह के चौथे बरस में यह कलाम ख़ुदावन्द की तरफ़ से यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
2. कि “किताब का एक तूमार ले और वह सब कलाम जो मैंने इस्राईल और यहूदाह और तमाम क़ौमों के ख़िलाफ़ तुझ से किया, उस दिन से लेकर जब से मैं तुझ से कलाम करने लगा, या'नी यूसियाह के दिन से आज के दिन तक उसमें लिख।
3. शायद यहूदाह का घराना उस तमाम मुसीबत का हाल जो मैं उन पर लाने का इरादा रखता हूँ सुने, ताकि वह सब अपनी बुरे चाल चलन से बाज़ आएँ; और मैं उनकी बदकिरदारी और गुनाह को मु'आफ़ करूँ।”
4. तब यरमियाह ने बारूक बिन नेयिरियाह को बुलाया, और बारूक ने ख़ुदावन्द का वह सब कलाम जो उसने यरमियाह से किया था, उसकी ज़बानी किताब के उस तूमार में लिखा।
5. और यरमियाह ने बारूक को हुक्म दिया और कहा, मैं तो मजबूर हूँ, मैं ख़ुदावन्द के घर में नहीं जा सकता;
6. लेकिन तू जा और ख़ुदावन्द का वह कलाम जो तूने मेरे मुँह से इस तूमार में लिखा है, ख़ुदावन्द के घर में रोज़े के दिन लोगों को पढ़ कर सुना; और तमाम यहूदाह के लोगों को भी जो अपने शहरों से आए हों, तू वही कलाम पढ़ कर सुना।
7. शायद वह ख़ुदा के सामने मिन्नत करें और सब के सब अपनी बुरे चाल चलन से बाज़ आएँ, क्यूँकि ख़ुदावन्द का क़हर ग़ज़ब जिसका उसने इन लोगों के ख़िलाफ़ 'ऐलान किया है, शदीद है।
8. और बारूक बिन नेयिरियाह ने सब कुछ जैसा यरमियाह नबी ने उसको फ़रमाया था वैसा ही किया, और ख़ुदावन्द के घर में ख़ुदावन्द का कलाम उस किताब से पढ़ कर सुनाया।
9. और शाह यहूदाह यहूयक़ीम बिन यूसियाह के पाँचवें बरस के नौवें महीने में यूँ हुआ कि येरूशलेम के सब लोगों ने और उन सब ने जो यहूदाह के शहरों से येरूशलेम में आए थे, ख़ुदावन्द के सामने रोज़े का 'ऐलान किया।
10. तब बारूक ने किताब से यरमियाह की बातें, ख़ुदावन्द के घर में जमरियाह बिन साफ़न मुन्शी की कोठरी में ऊपर के सहन के बीच, ख़ुदावन्द के घर के नये फाटक के मदख़ल पर सब लोगों के सामने पढ़ सुनाईं।
11. जब मीकायाह बिन जमरियाह बिनसाफ़न ने ख़ुदावन्द का वह सब कलाम जो उस किताब में था सुना,
12. तो वह उतर कर बादशाह के घर मुन्शी की कोठरी में गया, और सब हाकिम या'नी इलीसमा' मुन्शी, और दिलायाह बिन समयाह और इलनातन बिन अकबूर और जमरियाह बिन साफ़न और सिदक़ियाह बिन हननियाह, और सब हाकिम वहाँ बैठे थे।
13. तब मीकायाह ने वह सब बातें जो उसने सुनी थीं, जब बारूक किताब से पढ़ कर लोगों को सुनाता था, उनसे बयान कीं।
14. और सब हाकिम ने यहूदी बिन नतनियाह बिन सलमियाह बिन कूशी को बारूक के पास यह कहकर भेजा, कि “वह तूमार जो तूने लोगों को पढ़कर सुनाया है, अपने हाथ में ले और चला आ।” तब बारूक बिन नेयिरियाह वह तूमार लेकर उनके पास आया।
15. और उन्होंने उसे कहा, कि “अब बैठ जा और हमको यह पढ़ कर सुना।” और बारूक ने उनको पढ़कर सुनाया।
16. जब उन्होंने वह सब बातें सुनीं, तो डरकर एक दूसरे का मुँह ताकने लगे और बारूक से कहा कि “हम यक़ीनन यह सब बातें बादशाह से बयान करेंगे।”
17. और उन्होंने यह कह कर बारूक से पूछा, हम से कह कि तूने यह सब बातें उसकी ज़बानी क्यूँकर लिखीं?
18. तब बारूक ने उनसे कहा, “वह यह सब बातें मुझे अपने मुँह से कहता गया और मैं स्याही से किताब में लिखता गया।”
19. तब हाकिम ने बारूक से कहा, “जा, अपने आपको और यरमियाह को छिपा, और कोई जाने कि तुम कहाँ हो।”
20. और वह बादशाह के पास सहन में गए, लेकिन उस तूमार को इलीसमा' मुन्शी की कोठरी में रख गए, और वह बातें बादशाह को कह सुनाईं।
21. तब बादशाह ने यहूदी को भेजा कि तूमार लाए, और वह उसे इलीसमा' मुन्शी की कोठरी में से ले आया। और यहूदी ने बादशाह और सब हाकिम को जो बादशाह के सामने खड़े थे, उसे पढ़कर सुनाया।
22. और बादशाह ज़मिस्तानी महल में बैठा था, क्यूँकि नवाँ महीना था और उसके सामने अंगेठी जल रही थी।
23. जब यहूदी ने तीन चार वर्क़ पढ़े, तो उसने उसे मुन्शी के क़लम तराश से काटा और अंगेठी की आग में डाल दिया, यहाँ तक कि तमाम तूमार अंगेठी की आग में भसम हो गया।
24. लेकिन वह डरे, उन्होंने अपने कपड़े फाड़े, बादशाह ने उसके मुलाज़िमों में से किसी ने जिन्होंने यह सब बातें सुनी थीं।
25. लेकिन इलनातन, और दिलायाह, और जमरियाह ने बादशाह से 'अर्ज़ की कि तूमार को जलाए, लेकिन उसने उनकी एक सुनी।
26. और बादशाह ने शाहज़ादे यरहमिएल को और शिरायाह बिन अज़रिएल और सलमियाह बिन अबदिएल को हुक्म दिया कि बारूक मुन्शी और यरमियाह नबी को गिरफ़्तार करें, लेकिन ख़ुदावन्द ने उनको छिपाया।
27. और जब बादशाह तूमार और उन बातों को जो बारूक ने यरमियाह की ज़बानी लिखी थीं, जला चुका तो ख़ुदावन्द का यह कलाम यरमियाह पर नाज़िल हुआ:
28. कि “तू दूसरा तूमार ले, और उसमें वह सब बातें लिख जो पहले तूमार में थीं, जिसे शाह यहूदाह यहूयक़ीम ने जला दिया।
29. और शाह यहूदाह यहूयक़ीम से कह कि 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: तूने तूमार को जला दिया और कहा है, तू ने उसमें यूँ क्यूँ लिखा कि शाह बाबुल यक़ीनन आएगा और इस मुल्क को हलाक करेगा, और इसमें इंसान बाक़ी छोड़ेगा हैवान?”
30. इसलिए शाह यहूदाह यहूयक़ीम के बारे में ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: उसकी नसल में से कोई रहेगा जो दाऊद के तख़्त पर बैठे, और उसकी लाश फेंकी जाएगी, ताकि दिन की गर्मी में और रात को पाले में पड़ी रहे;
31. और मैं उसको और उसकी नसल को और उसके मुलाज़िमों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दूँगा। मैं उन पर और येरूशलेम के बाशिन्दों पर और यहूदाह के लोगों पर वह सब मुसीबत लाऊँगा, जिसका मैंने उनके ख़िलाफ़ 'ऐलान किया लेकिन उन्होंने सुना।
32. तब यरमियाह ने दूसरा तूमार लिया और बारूक बिन नेयिरियाह मुन्शी को दिया, और उसने उस किताब की सब बातें जिसे शाह यहूदाह यहूयक़ीम ने आग में जलाया था, यरमियाह की ज़बानी उसमें लिखीं और उनके अलावा वैसी ही और बहुत सी बातें उनमें बढ़ा दी गईं। PE
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